Dec 19, 2014

जापान के डॉ. तोमियो ने बताया हिंदी ज्ञान का राज

उसे देखा और हिंदी सीखने की इच्छा जाग उठी.!
जापान के डॉ. तोमियो ने बताया हिंदी ज्ञान का राज
हमारी राजनयिक भाषा जापानी
उन्होंने उतने ही दु:ख से इस बात को रेखांकित किया जितना कोई भारतीय कर सकता है कि भारत की राजनयिक भाषा हिंदी नहीं बन पाई है. यहां अंग्रेजी में लिखे संविधान को अधिक विश्‍वसनीय माना जाता है. यदि कोर्ट में किसी फैसले की दो प्रतियां मौलिक मानी जा रही हो तो उसमें भी अंग्रेजी की प्रति अधिक सही मानी जाती है. जबकि हमारे यहां की राजनयिक प्रति जापानी भाषा में है. जापानी छात्रों का हिंदी नाटक
उन्होंने बताया कि ओसाका के प्रधान भारतीय कोंस्लावास के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक सम्बंध परिषद को अनुरोध पत्र लिखा. उत्तर मिला कि जापान में प्रस्तुत हिंदी नाटक का वीडियो भेजें, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के मूल्यांकन के अनुसार फैसला होगा. सो, हमने अपने नाटक 'प्यार कैसे होता है' का वीडियो भेजा. काफी देर तक कोई उत्तर नहीं आया था, इसलिए हम आशा छोड. चुके थे. लेकिन जब भारत सरकार से औपचारिक स्वीकृति का उत्तर मिला तो मारे खुशी के फुले न समाए . इस प्रकार राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय का आमंत्रण पाकर 23 दिसंबर 1997 से जनवरी 5 1998 तक ओसाका विश्‍वविद्यालय के इच्छुक छात्रों के हिंदी नाटक दल ने पहली बार भारत के चार शहरों (दिल्ली , वाराणसी, आगरा तथा मुंबई )में दो हिंदी नाटक (उक्त प्यार कैसे होता और राजेंद्र शर्मा कृत हास्य नाटक परदा उठने से पहले ) का मंचन करके भारतीय दर्शकों का दिल जीत लिया था. यह जापान की हिंदी नाटक मंचन की परंपरा के लिए एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना थी. विदेशों में मंचन करने का यह सिलिसला 2007 तक हर साल चलता रहा और इस बीच कुल मिलाकर भारत समेत छह देशों और 38 शहरों में 79 बार मंचन हुआ था . स्वरांगी साने। पुणे, 16 दिसंबर
विदेशी पर्यटक की तरह उनके गले में भी कैमरा था और जिस जगह वे जाते उसकी तस्वीर कैद कर लेते थे. उनकी भाव-भंगिमा, कद-काठी और चेहरे-मोहरे से कोई भी कह सकता था कि वे जापानी हैं. लेकिन उनकी हंसी हर किसी को अपनी-सी करने वाली थी. जापान के 72 वर्षीय डॉ. तोमियो मिजोकामि से बात करना बहुत आसान है. बिना किसी दुभाषिए के आप उनसे बात कर सकते हैं इसलिए नहीं कि उन्हें अंग्रेजी आती है बल्कि इसलिए कि उन्हें हिंदी भी आती है.
ओसाका यूनिवर्सिटीज ऑफ फॉरेन स्टडीज में उन्होंने हिंदी के सैकड.ों छात्रों को तैयार किया है. उन्हें न केवल हिंदी बल्कि पंजाबी, बांग्ला, संस्कृत, अंग्रेजी और जापानी भाषा आती है. तिलक महाराष्ट्र विवि गुलटेकडी में भाषण देने आए मिजोकामि ने लोकमत समाचार से लंबी बातचीत की.
ओसाका विश्‍वविद्यालय के छात्रों द्वारा डॉक्टर योगी रचित नाटक 'हिंदी क्यों पढ.ते हैं?' का मंचन विवि में किया था, जिसका मार्गदर्शन मिजोकामी ने किया. उनसे पहला सवाल यही पूछा कि आपने हिंदी क्यों पढी? इस पर उन्होंने बताया कि मेरा जन्म पश्‍चिम जापान के दूसरे बडे. शहर कोबे में हुआ. यह टोकियो से 500 किमी की दूरी पर है. इस शहर में भारतीयों की संख्या सबसे ज्यादा है. किशोरावस्था में एक दिन मैंने एक सुंदर सी महिला को साडी पहने सड.क से जाते देखा. मुझे उसकी वेशभूषा और भाषा मनमोहक लगी. मैंने तय किया कि इस भाषा को सीखना है. तब पं. जवाहर लाल नेहरू का भी विश्‍व भर में रुतबा था. उनकी प्रेरणा ने भी मुझे हिंदी की ओर आकृष्ट किया.
चार साल का डिग्री कोर्स और फिर दो साल के पोस्ट डिग्री कोर्स ने हिंदी व्याकरण तो सीखा दी, लेकिन उसका सही इस्तेमाल करने के लिए ज्यादा से ज्यादा बोलना जरूरी था. मैं भारतीयों के साथ रहने लगा और हिंदी का अधिकतम प्रयोग करता रहा. उनका कहना था ,अंग्रेजी आप जरूरत के लिए सीखते हैं, लेकिन जो भाषा कौतुहल और जिज्ञासा के लिए जानी जाती है वो मान-सम्मान, प्रतिष्ठा दिलाती है. मैंने लाल बहादुर शास्त्रीजी को इंदिरा गांधीजी को बहुत करीब से देखा क्योंकि मैं हिंदी जानता था और वे हिंदी को जानने वालों की कद्र करना जानते थे. हिंदी आ गई तो भारत आने की भी इच्छा हुई. सबसे पहले 1965 में इलाहाबाद आया. वहां इतनी सुंदर हिंदी सुनकर मन प्रसन्न हो गया. पुणे में ही मैं 5-6 बार आ चुका हूं. मुझे याद है 1999 में बाल गंधर्व रंग मंदिर में हमने हिंदी नाटक प्रस्तुत किया था और मंचन हाउस फुल था. दूसरे दिन उसी रंग मंदिर में मराठी नाटक था वो भी पु.ल. देशपांडे का, लेकिन हॉल आधा ही भरा था. वो अभिभूत होने का क्षण था कि जापानियों की हिंदी ने लोगों को अपनी ओर खींचा था. मेरे द्वारा किए गए हिंदी शिक्षा में नाटकों के प्रयोग को सारी दुनिया में सराहा गया यह मेरे लिए बहुत बडी बात है. उन्होंने बडी विनम्रता से कहा कि हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जापान यात्रा के समय मैंने उसने हिंदी में बोलने का आग्रह किया जिसे उन्होंने स्वीकार भी किया. कभी जापान देशभक्ति के लिए जाना जाता था. इस पर डॉ. मिजोकामि ने कहा, अब सारी दुनिया के युवा एक जैसे हो गए हैं-निर्मोही.
लोकमत समाचार, पुणे से साभार
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हिंदी खबर दक्षिण अफ्रीका का नवंबर अंक संलग्न है।
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