लखनऊ
: मायावती ने राज्यसभा में मांग की है कि उत्तर प्रदेश की 17 अति-पिछड़ी
जातियों को अनुसूचित जाति की सूचि में शामिल किया जाये और गरीब सवर्णों को
आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाये. मायावती की यह मांग दलित विरोधी है. यह
बात आज एस.आर. दारापुरी पूर्व पुलिस महानिरीक्षक एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता,
आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट ने प्रेस को जारी की गयी विज्ञप्ति में कही है.
उन्होंने आगे बताया कि मायावती यह मांग उठा कर अति पिछड़ी जातियों को केवल
वोट लेने के लिए गुमराह कर रही है.
वह इससे पहले 2007 में भी इसी
प्रकार का प्रस्ताव केंद्र को भेज चुकी हैं जो कि रद्द हो चुका है. अब उस
ने इस मांग को पुनः उठाया है क्योंकि मुलायम सिंह यादव ने भी इस मांग को
उठाया है. मायावती और मुलायम सिंह पूरी तरह से इस बात को जानते हैं कि ऐसा
होना संभव नहीं है क्योंकि यह जातियां अनुसूचित जाति के अछूतपन की शर्त को
पूरा नहीं करती हैं. यह दोनों नेता अगर पिछड़ी जातियों को वास्तव में कोई
लाभ देना चाहते हैं तो उन्हें इन जातियों को पिछड़ी जातियों के 27% कोटा में
से डॉ. छेदी लाल साथी सर्वाधिक पिछड़ा वर्ग आयोग की संस्तुतियों के अनुसार
अलग कोटा देना चाहिए.
मायावती की सवर्णों में गरीब लोगों के लिए
आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की मांग भी संविधान विरोधी एवं दलित विरोधी है
क्योंकि वर्तमान संवैधानिक व्यवस्था के अंतर्गत किसी भी वर्ग को आर्थिक
आधार पर आरक्षण देना संभव नहीं है. आरक्षण का आधार जातिगत पिछड़ापन है न कि
आर्थिक पिछड़ापन. मायावती की यह मांग भी सर्वजन की राजनीति द्वारा सवर्णों
को गुमराह करने की राजनीतिक चाल है. यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि वर्तमान
में बेरोज़गारी मुख्य समस्या है जिस का हल आरक्षण नहीं बल्कि रोज़गार के
अवसरों का सृजन है. इस के इलावा रोज़गार को मौलिक अधिकार बनाये जाने की भी
ज़रुरत है. उसकी यह मांग दलित विरोधी भी है क्योंकि इस से आरक्षण विरोधियों
को आरक्षण का आधार जाति के स्थान पर आर्थिक करने की मांग उठाने का मौका मिल
जाता है. अतः आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट मायावती की आर्थिक आधार पर आरक्षण
और अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल करने की मांग
का विरोध करता है.
एस.आर. दारापुरी
पूर्व पुलिस महानिरीक्षक एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता,
आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट
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