Feb 4, 2016

अथश्री दलाल कथा

-विवेक दत्त मथुरिया- 
दलाली अपने आप में एक विलक्षण पेशा है। इस पेशे की सबसे बड़ी विलक्षणता है कि इसमें किसी तरह के आर्थिक निवेश की जरूरत नहीं है। यह काम पूरी तरह से बौद्धिक श्रम पर आधारित है। यह सेवा प्रदाता पेशा है। आज दलाली बाजार द्वारा मान्यता प्राप्त ग्लोबल कारोबार बन चुका है। भारत में अब इसे सामाजिक मान्यता शनै: शनै: मिलती जा रही है। कोई भी सरकारी दफ्तर हो, थाना हो, तहसील हो यह दलाल रूपी समाज सेवकों के ये सक्रिय अड्डे हैं। जिस काम के लिए आप महीनों से चक्कर काट-काट कर परेशान होकर काम होने की आस छोड़  चुके हों, वही काम दलाली से एेसे संपन्न होते हैं, जैसे ईश्वर की अहतुकी कृपा हो गई हो। यह शुल्क के बदले सुविधा योजना है।


दलाल का मेहनताना मतलब कमीशन दीए जाने वाले सुविधा शुल्क में ही निहित होता है। दलाली में इतना दम है कि बाबू द्वारा लगाई की कानून-कायदे संबंधी आपत्तियां सुविधा शुल्क प्राप्ति के साथ ऐसे गायब हो जाती हैं जैसे गधा के सिर से सींग। इसके लिए किसी तरह की अकादमिक योग्यता की जरूरत नहीं है। सारा काम की गॉड गिफ्टेड लोमड़ी छाप भेजे पर निर्भर करता है। राजनीतिक गलियारे से लेकर धार्मिक जगत भी दलाली के महते योगदान का एहसानमंद है। अगर दलाल रूपी समाज सेवक न हों तो न जाने कितने लोग सरकारी दफ्तरों की चौखटों पर दम तोड़ चुके होते। दलाल सही मायनों में सेकुलर नेताओं से ज्यादा सेकुलर और जात-पांत जैसे सामाजिक और राजनीतिक विकारों से मुक्त होता है।

दलाल एक सहिष्णु जीव होता है, किसी के भी प्रति वह असहिष्णु नहीं होता। दलाल की अपने पेशे को लेकर  ठोस मान्यता है कि आखिर दुनिया गोल है, कब किस से कहां काम पड़ जाए। दलाल के मुख पर दिल को लुभाने वाली चितवन व्यक्तित्व की आभा को बनाए रखती है। गजब का भाषा सौंदर्य। स्वर और संबोधन में अमूल मक्खन का सा स्वाद। मतलब के लिए गधा को पिता जी कहने में देर नहीं लगाते।

अगर आपकी तारीफ पर उतर आएं तो आदिकाल के चारण भाट भी इनके सामने पानी भरते नजर आएंगे। सत्ता बदलने के साथ ही ये अपना रंग बदलने में देर नहीं लगाते। हर दल के नेता से इनकी आत्मीयता देखते ही बनती है। रसूखदार लोग इनके लिए प्रभु स्वरूप होते हैं। उनकी चरण सेवा किसी मुक्ति द्वार से कम नहीं होती। अपने लाभ के लिए ये किसी भी हद तक जा सकते हैं, चाहें किसी भी रिश्ते की बलि ही क्यों न चढ़ानी पड़े। दलाल कथा 'हरि अनंत हरि कथा अनंता' जैसी है।

इस व्यंग्य के लेखक विवेक दत्त मथुरिया मथुरा के जाने माने पत्रकार हैं. 

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