गजल — अतुल कन्नौजवी
एक करतब दूसरे करतब से भारी देखकर
मुल्क भी हैरान है ऐसा मदारी देखकर,
जिनके चेहरे साफ दिखते हैं मगर दामन नहीं
शक उन्हें भी है तेरी ईमानदारी देखकर,
उम्रभर जो भी कमाया मिल गया सब खाक में
चढ गया फांसी के फंदे पर उधारी देखकर,
मुल्क के हालात कैसे हैं पता चल जाएगा
देखकर कश्मीर या कन्याकुमारी देखकर,
सर्द मौसम में यहां तो धूप भी बिकने लगी
हो रही हैरत तेरी दूकानदारी देखकर,
इस तरह के नोट चूरन में निकलते थे कभी
सब यही कहते दिखे कल दो हजारी देखकर,
देखने सूरत गया था आइने के सामने
आईना रोने लगा हालत हमारी देखकर।।
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