-भंवर मेघवंशी
जब कतारों में
तब्दील हो गया हो देश
पल प्रतिपल जारी होते हो
तुगलकी सन्देश
तब भला कोई
कैसे रच सकता है कवितायेँ !
दम तोड़ रहे हो नवजात
भूख ने पसार लिये हो पांव
दूध के लिये भी तरस रहे हो अबोध
तब भला कैसे कोई गा सकता है ?
शिफ़ा खाने मौत बाँट रहे हो
दवाई के बिना मरीज दम तोड़ रहे हो
अनाज तक न हो घर में
बच्चों की क्षुधा मिटाने को
तब भला कोई माँ ,कैसे नाच सकती है ?
अपने ही गाँठ का धन
जमा करवा कर
उसी बैंक के बाहर खड़ा हो
भिखारी बनकर
बेटी ब्याहने को आतुर बाप ,
तब भला कैसे गूंज सकते है शहनाई के स्वर !
सड़कों पर जब पूरा मुल्क
खा रहा हो धक्के
पुलिस फटकार रही हो डंडे
कहीं भी बची ना हो कोई आश
तब भला कोई कैसे नृत्य कर सकता है ?
बात सिर्फ हजार पांच सौ के
नोट की नहीं है,
बात ज़िन्दगी जीने की
जद्दोजहद की है .
बात सिर्फ काले पीले
नीले धन की भी नहीं है,
मुल्क के रहबर के पागलपन की है
सत्ता के सनकीपन की है .
सब लोगों को करके दुखी
तब भला कोई सुख की नींद कैसे सो सकता है ?
लोपामुद्रा के इस ज़माने में
जबकि विलोपित कर दी गई हो
मुद्रा रातों रात
और मुल्क से बेवफाई कर रहे
रहबर को छोड़ कर
“सोनम गुप्ता बेवफा है“
जैसी बेहूदी बातें होने लगी हो
तब भला कोई कैसे पूछ सकता है
असहज करने वाले तीखे सवाल ?
जब जनता की पीड़ा को
देशभक्ति के तराजू पर तोला जाने लगा हो
और निजी सनक ,दलीय पागलपन को
राष्ट्र की सेवा कहा जाने लगा हो
तब भला कोई कैसे देश भक्त हो सकता है ?
अब मेरे मुल्क में शायद
गीत गाने के
कविता सुनाने के ,
शादियाँ रचाने के
इलाज कराने के ,
भर पेट खाने के
फसलें उगाने के ,
प्रश्न पूछे जाने के
मौसम नहीं बचे है .
सोनम गुप्ता और सनम बेवफा तक
इस मुल्क के वफादार हो गये है ,
मगर गद्दीनशीन ही गद्दार हो गया है .
मसीहा बनकर आया था ,
आज रहजनों का यार हो गया है .
इसलिये देश का नागरिक
अब नागरिक नहीं रहा
वह सिर्फ कतार हो गया है .
कतार में खड़े हो कर
वोट डालने की एक भूल की
मुल्क इतनी बड़ी सजा पा रहा है !
कि आज पूरा देश ही
कतार में खड़ा नजर आ रहा है !!
-भंवर मेघवंशी
(स्वतंत्र पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता)
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