Apr 11, 2016

प्रसारण मंत्रालय ने 60 टीवी चैनलों को लाइसेंस दिए 2015 में, पिछले तीन साल में सबसे ज्यादा

मुंबई : सुरक्षा मंज़ूरी को लेकर स्थाई नीति व्यवस्था बनाने पर केंद्रीय गृह मंत्रालय के साथ सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का संवाद लगता है कि अपना असर दिखाने लगा है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने 2015 में 60 टीवी चैनलों को लाइसेंस दिए हैं। यह संख्या पिछले तीन सालों में दिए गए लाइसेंसों से कहीं ज्यादा है। मंत्रालय ने बीते साल के दौरान 53 अपलिंकिं और सात डाउनलिंकिंग स्वीकृतियां दी हैं। 31 दिसंबर 2015 तक देश में 847 चैनलों को अपलिंकिंग व डाउनलिंकिंग अनुमतियां मिली हुई थीं। इनमें से 52 प्रतिशत न्यूज़ चैनल हैं, जबकि बाकी इससे भिन्न विषयों के चैनल हैं। पिछले एक साल में गृह मंत्रालय ने सुरक्षा मंजूरी देने, उसके आकलन, वैधता और अतिरिक्त सुविधा के संदर्भ में बहुत सारे निर्देश जारी किए हैं।


प्रसारण मंत्रालय ऐसी नीति व्यवस्था विकसित करने के लिए गृह मंत्रालय के साथ बराबर संवाद कर रहा है जो सुरक्षा के पहलू को कमज़ोर किए बगैर बिजनेस करने की आसानी को सुनिश्चित कर सके। मंत्रालय ने लाइसेंस देने में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए अन्य महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। उसका कहना है कि हर महीने की 20 तारीख को ब्रॉडकास्टरों के साथ की जानेवाली खुली बैठक बहुत उपयोगी साबित हुई है। ध्यान देने योग्य बात है कि इन बैठकों में भाग लेनेवाले ब्रॉडकास्टरों की संख्या में पिछले एक साल में काफी ज्यादा बढ गई है। मंत्रालय का कहना है कि इन बैठकों में मिली फीडबैक ने मंजूरी में तेजी लाने और अधिक पारदर्शिता लाने के लिए नई पहल करने में मदद की है। प्रसारण मंत्रालय का कहना है कि अब नए व स्वीकृत टीवी चैनलों, टेलिपोर्ट, एसएनजी / डीएसएनडी वैन के उपयोग, अस्थायी अपलिंकिंग मामलों, सैटेलाइट बदलने, नाम व लोगो बदलने, शेयरधारिता पैटर्न में बदलाव, नए निदेशकों को लेने और एफआईपीबी की मंजूरी जैसे विषयों से जुड़े तमाम मुद्दों पर ब्रॉडकास्टरों के साथ खुले और निष्पक्ष ढंग से चर्चा की जाने लगी है।

मंत्रालय ने यह भी कहा है कि इन बैठकों ने न केवल आवेदकों को मंत्रालय के अधिकारियों के साथ सीधी बातचीत का मौका दिया है, बल्कि इन्होंने सीधे आवेदक तक सूचनाएं पहुंचाने में मदद की है जिससे किसी बिचौलिये की जरूरत ही खत्म हो गई। इसके अतिरिक्त, सीधी बातचीत ने सिस्टम में विश्वास पैदा किया है और अनावश्यक पत्राचार व फोन कॉल पर निर्भरता घटा दी है। मंजूरी प्रक्रिया में तेज़ी लाने के लिए मंत्रालय अब इनसैट सेक्शन से ही दस दिनों के भीतर इस चरण पर अनुमोदन मिलने का इंतज़ार किए बगैर प्रस्तावों को सीधे केंद्रीय गृह मंत्रालय, अंतरिक्ष विभाग व लेखा विभाग के पास एक साथ भेज देता है। इससे देरी की गुंजाइश काफी कम हो जाती है। केबल टीवी की बात करें तो मंत्रालय ने 27 जनवरी 2016 तक 676 एमएसओ लाइसेंस दिए हैं। इनमें से 445 एमएसओ को अनंतिम पंजीकरण की अनुमति दी गई है, जबकि बाकी को स्थायी पंजीकरण मिल गया है। मई 2015 में ही गृह मंत्रालय ने प्रसारण मंत्रालय को सूचित किया था कि एमएसओ के लिए सुरक्षा मंजूरी आवश्यक नहीं है।

चूंकि केबल नियमों में एमएसओ पंजीकरण जारी करने के लिए सुरक्षा मंज़ूरी को अनिवार्य आवश्यकता माना गया है, इसलिए जब तक उन्हें गृह मंत्रालय की सोच के अनुरूप बदला नहीं जाता, तब तक आवेदकों को अनंतिम पंजीकरण जारी करने के लिए हलफनामे के साथ अनुरोध पेश करने को कहा गया। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मॉनिटरिंग सेंटर (ईएमएमसी) फिलहाल 400 टीवी चैनलों की निगरानी कर रहा है। उम्मीद की जा रही है कि यही सेंटर 600 टीवी चैनलों पर भी नजर रखेगा। 12वीं योजना में ‘इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मॉनिटरिंग सेंटर को मजबूत करने’ के लिए पेश की गई स्कीम के अनुसार, 2012-17 के दौरान ईएमएमसी की क्षमता 1500 चैनलों को मॉनिटर करने लायक बढ़ा दी जाएगी। स्कीम को लागू करने के लिए मंत्राल ने 90 करोड़ रुपए की फंडिंग मंज़ूर की है। इसके अलावा ईएमएमसी में एफएम चैनलों और सामुदायिक रेडियो स्टेशनों (सीआरएस) की नज़र रखने के लिए केंद्रीयकृत मॉनिटरिंग प्रणाली लगाई जाएगी। इस समय ईएमएमसी केबल टेलिविज़न नेटवर्क विनियमन अधिनियम 1995 में निर्धारित कार्यक्रम व विज्ञापन संहिता के उल्लंघन के सिलसिले में सैटेलाइट टीवी चैनलों के कंटेंट की निगरानी करता है। वो लाइसेंस की शर्तों और कंटेंट की गुणवत्ता के संबंध में निजी एफएम चैनलों पर भी नज़र रखता है।

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