Apr 11, 2016

कोल्लमः आस्था पर भारी अव्यवस्था

प्रभुनाथ शुक्ल

भारत में धर्म और आस्था को लेकर लोगों का खूब अटूट विश्वास है। धार्मिक भीरुता भी हादसों का करण बनती हैं। हम एक भूखे, नंगे और मजबूर की सहायता के बजाय दोनों हाथों से धार्मिक उत्सवों में दान करते हैं और अनीति, अधर्म और अनैतिकता का कार्य करते हुए भी हम भगवान और देवताओं से यह अपेक्षा रखते हैं कि हमारे सारे पापों धो डालेंगे। जिसका नतीजा होता है कि हादसे बढ़ते हैं और बेमौत लोग मारे जाते हैं। निश्चित तौर पर धर्म हमारी आस्था से जुड़ा है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हम धर्म की अंध श्रद्धा में अपनी और परिवार की जिंदगी ही दांव लगा बैठे। आस्था पर एक बार भी अव्यवस्था भारी पड़ गयी। केरल राज्य स्थित कोल्लम के परवूर पुत्तिंगल मंदिर में आतिशबाजी के चलते 110 से अधिक भक्तों की जहां मौत हो गयी। वहीं 350 से अधिक लोग घायल हो गए। इस देवी मंदिर परिसर में भक्तों और आस्थावानों की भीड़ धार्मिक उत्सव मनाने जुटी थी लेकिन विधाता को यह मंजूर नहीं था।


यह एक प्राचीन देवी मंदिर है। वहीं धार्मिक स्थल का एक भाग पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी घटना की खबर लगते ही कोल्लम पहंुच गए। निश्चित तौर पर यह उनकी नैतिक जिम्मेदारी बनती है जिसका उन्होंने अनुपालन किया। प्रधानमंत्री अस्पताल पहुंच कर जहां घायलों का हाल जाना वहीं घटना की जानकारी ली। लेकिन सवाल उठता है कि धार्मिक उत्सव में इतनी लापरवाही क्यों बरती जाती हैं जिससे आस्थावानों पर इतना कहर टूटता है। आयोजक इस पर गौर क्यों नहीं करते हैं। देश और दुनिया भर में धार्मिक आयोजनों के दौरान बेगुनाहों की जान जाती है। इस घटना पर पाकिस्तान, रुस और दूसरे मुल्कों के राष्टाध्यक्षों ने महामहिम और पीएम को फोन कर शोक जताया है। हमारे लिए यह किसी राष्टीय त्रासदी से कम नहीं है। घटना के न्यायायिक जांच के आदेश भी दिए गए हैं।

लेकिन सवाल उठता है कि इन जांचों और आदेशों से क्या होगा। लापरवाही की जिस वजह से लोग बेमौत मारे गए क्या वे लौट आएंगे। फिर जांच का क्या होगा। जांच और आयोग तो इस देश की नीयति बन गयी है। सवाल उठता है कि इतनी भीड़ के बीच पटाखे क्यों फोड़े गए। उस स्थिति में जब लोकल प्रशासन से आतिशबाजी की अनुमति नहीं ली गयी थी। बगैर अनुमति लिए इस तरह का काम क्यों किया गया। भला हो हमारी सेना का जिसकी जांबाजी से और लोगों की जान बच गयी बरना स्थिति और भयावह और बुरी होती। हलांकि मृतकों के परिजनों को 10 लाख का मुआवजा दिया गया है जबकि घायलों को दो लोख और पचास हजार की राशि मुहैया करायी गयी है। लेकिन इस प्रश्न का जबाब किसी के पास नहीं है कि इतनी भीड़ के बाद आतिशबाजी में सावधानी क्यों नहीं बरती गयी।

निश्चित तौर पर इसके लिए मंदिर प्रशासन से जुड़ी आयोजन समिति जिम्मेदार और जबाबदेह है। लेकिन क्या दोषियों को सजा मिलेगी। यहां भी वोट बैंक की राजनीति हावी हो जाएगी। कल फिर हमारे सामने आस्था और धर्म की आड़ में एक और नयी लापरवाही सामने आएगी और हमारा ध्यान इस गलती से हट जाएगा। देश में यह कोई नयी घटना नहीं है। इसके पहले हादसे हो चुके हैं। लेकिन हम हादसों से सबक नहीं लेते हैं। यही हमारी सबसे बड़ी भूल है। धार्मिक स्थलों पर हादसे हमारी व्यवस्था पर सवाल खड़ा करते हैं। धार्मिक आयोजनों में बेगुनाहों की मौत अपने आप में एक बड़ा सवाल है। धार्मिक स्थलों पर उमड़ी भीड़ के साथ इस तरह के हादसे दुनिया भर में होते हैं। लेकिन हादसे न हों अभी तक ऐसी कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं हो सकी है। जिससे बेगुनाहों की मौत होती है। भीड़ को नियंत्रित करने का हमारे पास कोई सुव्यवस्थित तंत्र नहीं है।

देश में आए दिन इस तरह की घटनाएं होती रहती हैं। जिससे दर्जनों बेगुनाहों की जान चली जाती है। सरकार की ओर से लोगों को मुआवजा देकर अपने दायित्वों की इतिश्री कर ली जाती है। लेकिन सरकार या व्यवस्था से जुड़े लोगों का ध्यान फिर इस ओर से हट जाता है। यहीं लापरवाही हमें दोबारा दूसरे हादसों के लिए जिम्मेदार बनाती है। अखिरकार सवाल उठता है कि धार्मिक उत्सवों और आयोजनों में ही क्यों भगदड़ मचती है। क्यों निर्दोष लोग मारे जाते हैं। इस तहर के हादसे कई परिवारों को ऐसे मोड़ पर ला खड़ा करते हैं जहां से वे पुनः अपनी दुनिया में नहीं लौट पाते हैं। अकारण की परिवार का मुखिया, बेटी, पत्नी, मां, या पिता शिकार हो जाते हैं। जिन पर पूरी जिंदगी के सपने टिके होते हैं। हमारे देश में इस तरह की घटनाए आम हैं। यहां धर्म के नाम पर लोगों जरुरत से अधिक छूट मिल जाती है।

इसे राजनीति का मसला भी बना लिया जाता है। जिहाजा आयोजन स्थलों पर सुरक्षा और संरक्षा को लेकर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता है। भीड़ बढती जाती है। बाद में किसी की ओर से बेसिर पैर की अफवाहें उड़ा दी जाती हैं। जिससे भगदड़ मचने से हजारों लोगों की जान चली जाती है। दो साल पहले ं बिहार की राजधानी पटना में दशहरा उत्सव के दौरान मची भगदड़ में 33 बेगुनाहों की मौत हमें विचलित करती है। हमारी प्रशासनिक व्यवस्था और उसकी कार्य क्षमता पर भी सवाल खड़े करती है। यह हमारी आधुनिक और सुविधा से सुसज्जित राज्य व्यस्था के शर्म की बात है। धार्मिक उत्सवों और आयोजनों में इस तरह की घटना केवल पटना में हुई है ऐसी बात नहीं है।

इंटर नेशनल जर्नल आफ डिजास्टर रिस्क रिडक्शन में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार देश में 79 फीसदी हादसे धार्मिक अयोजनों में मची भगदड़ और अफवाहों से होते हैं। 15 राज्यों में पांच दशकों में 34 से अधिक घटनाएं हुई हैं।  जिसमें हजरों लोगों को जान गवांनी पड़ी है। दूसरे नम्बर पर जहां अधिक भीड़ जुटती हैं वहां 18 फीसदी घटनाएं भगदड़ से हुई हैं। तीसरे पायदान पर राजनैतिक आयोन हैं जहां भगदड़ और अव्वस्था से तीन फीसदी लोगों की जान जाती है। नेशनल क्राइम ब्यूरो के अनुसार देश 2000 से 2012 तक भगदड़ में 1823 से अधिक लोगों जान गवांनी पड़ी हैं। 2013 में तीर्थराज प्रयाग में आयोजित महाकुंभ के दौरान इलाहाबाद स्टेशन पर मची भगदड़ के दौरान 36 लोगों अपनी जान गवांनी पड़ी थी। जबकि 1954 में इसी आयोजन में 800 लोगों की मौत हुई थी। उस दौरान कुंभ में 50 लाख लोगों की भीड़ आयी थी।

2005 से लेकर 2011 तक धार्मिक स्थल पर अफवाहों से मची भगदड़ में 300 लोग मारे जा चुके हैं। राजस्थान के चामंुडा देवी, हिमांचल के नैना देवी, केरल के सबरीमाला और महाराष्ट के मंडहर देवी मंदिर में इस तरह की घटनाएं हुई हैं। हलांकि इस तरह की घटनाएं केवल भारत में ही नहीं अपितु पूरी दुनिया में हुईं हैं। भविष्य में इस तरह की घटनाएं न हो इसके लिए हमें खुद सतर्कता बरती होगी। जिससे इस तरह के हादसों पर रोक लगायी जा सके। सरकार को भी इस तरह के हादसों पर नियंत्रण रखने के लिए मास्टर प्लान तैयार करना होगा। आयोजन स्थलों पर भीड़ की आमद को भी संयमित और संरक्षित करना होगा। जिससे बेगुनाहों की मौत को रोका जा सके। हमें धर्म के नाम पर खुली छूट देकर मौत से खिलवाड़ बंद करना होगा।

लेखक प्रभुनाथ शुक्ल स्वतंत्र पत्रकार हैं. संपर्क 892400544

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