पुरुषोत्तम असनोड़ा
उत्तराखण्ड में प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक आय एक लाख चौवन हजार आठ सौ अठ्ठारह रु अनुमान है जो गत वर्ष की 139184रु से 7.6 प्रतिशत अधिक है। 7.65 प्रतिशत विकास दर ंसे राष्ट्रीय औसत के लगभग है जबकि प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से राष्ट्रीय औसत 93231रु है। अर्थ एवं संख्या निदेशालय के आंकडे 2011-12 से लगातार बढोतरी प्रदर्शित कर रहे हैं। 2011-12 में उत्तराखण्ड की प्रति व्यक्ति औसत आय 85372रु थी।
आय में यह वृद्धि तब छठें वेतनमान से राज्य कर्मियों और शिक्षकों को हुए लाभ का कारण बताया गया था। सातवें बेतन आयोग लागू होने के बाद अगले वर्ष यह व्द्धि और और आगे जायेगी। अंाकडे तो आंकडे हैं कृषि विकास दर 3.09 प्रतिशत की वृद्धि बताती है कि उनकी सच्चाई क्या है? गांव खली हुए खेत बंजर हो गये, जंगली जानवरों का आतंक बढ गया, मैदानों में पहाड के पलायन का असर वहां की कृषि भूमि में रिहायशी मकान बनने से सिकुडाहाट हुई, और विकास दर बढ गयी?
सडक, बिजली, पानी,यातायात, शिक्षा, चिकित्सा कार्यालयों के काम काज पर आय वृद्धि का असर क्यों नही दिख रहा है? 338 गांवों जो के दौर से रहने के योग्य नही रहे हैं और विस्थापन व पुनर्वास की आवश्यकता के लिए धन और भूमि मुहैया नही हो रही है। सरकारी आंकडे पहाडी जिलों डेढ लाख घरों में ताले लटके होने की बात स्वीकार रहे हैं। सडकों की हालत एक दशक पहले जो थी वह नही सुधरी है। शिक्षा में कई प्रयोगों के बावजूद सरकारी विद्यालय इसलिए बन्द हो रहे हैं कि वहीं छात्र नहीं हैं। चिकित्सालयों में डाक्टरों को ला पाना तो दूर सरकार खुद कहती है चिकित्सक पहाड नही चढना चाहते। रोज नई घोषणाऐं और फिर धनाभाव का रोना, अजब- गजब का प्रदश हो गया है उत्तराखण्ड।
विकास और शिक्षा की कहानी नैनीसार से शुरु हो गयी जिन्हें विकास और शिक्षा चाहिए वे जिन्दल जैसे माफिया को जमीन देने पर एतराज न करें जो करेंगे वे विकास व शिक्षा के विरोधी हैं। माधोसिंह मलेठा की कर्म भूमि में क्रेसर लगाने वाले उत्तराखण्ड की अर्थ व्यवस्था के मित्र हैं और जो मलेथा की उपजाऊ भूमि जिसके लिए वीर माधोसिंह ने अपने पुत्र की बलि दे दी थी को बंजर बनने से बचाने वालों को जेल ठूंस दो। मुख्य मंत्री द्वारा प्रारम्भ की गयी यात्रा रुकने वाली नही है जो उन्होंने हलद्वानी में कह दिया है।
निर्जन गांव की आखिर कहानी है क्या? वही विकास, वही शिक्षा-चिकित्सा, सडक, पानी, बिजली और रोजगार। उत्तराखण्ड के जिन घरों में ताले लगे उन्हें अपने घर बन्द करने का शौक नही रहा होगा। अभी गांव की जमीन पर माफिया बिठा दो, कल उन घरों में, अगले दिन देश की सीमा के गांवों में विदेशी बसाओ और किस्सा खत्म। सब निर्जन हो रहा है इसलिए किसी को विकास, किसी को शिक्षा, किसी को रोजगार और जो बचे उसे गुण्डागर्दी के लिए ही सही दे दो उत्तराखण्ड की जमीन, हवा-पानी। दे भी दिया है जल विद्युत परियोजनाऐं ने लूट तो लिए हैं संसाधन।
शायद उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के 15 सालों में जनता ने खुश रहने का प्रयास नही किया। जनता जल विद्युत योजनाओं की खिलाफत करते रहे और लूटने और लुटवाने में मसगूल रहे।
जनता पिटती रही और वे पीटते रहे। उन्हें खनन-शराब से आ रही अकूत संम्पदा की फिक्र थी और जनता को उसे बचाने की। जब रास्ते अलग थे टकराव कीं न कही होना थ। वह मलेथा या नैनीसार कहीं भी हो सकता था। सत्ता पहले ही दहाड रही थी- खाता न वही हम ही सही, अब तो आंकडे भी हैं- सबको डेढ लखिया बना दिया अब भी रोते हो रोओ। हम तो अपनी मन की करेंगे ही, चाहे उत्तराखण्ड जिसके हाथ बिक जाये।
लेखक पुरुषोत्तम असनोड़ा उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार हैं.
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