Mar 1, 2016

बजट, किसान और भ्रष्टाचार

विवेक दत्त मथुरिया

मोदी सरकार का दूसरा बजट देश के सामने है और उसे किसान हितैषी बजट माना जा रहा है। बड़ा सवाल यही है कि वाकई बजट में किसानों को होने वाली परेशानियों का निदान हो पाएगा? दवा का जिक्र तो है पर प्रभाव और निदान की गारंटी नजर नहीं आ रही है। कारण योजनाओं में भ्रष्टाचार। सरकार भ्रष्टाचार के इलाज को लेकर खामोश है। बैंकों को दलालों से मुक्त करना होगा, जिसकी कोई प्रभावी कार्य योजना सरकार के पास नहीं है। यही वजह है कि किसानों से जुड़ी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ जरूरतमंद किसानों तक पहुंचने की बजाय दलाल और योजना से जुड़े संबंधित विभाग के भ्रष्ट बाबुओं और अधिकारियों के बीच बंदर बांट हो जाती हैं।


महाराष्ट्र से लेकर बुंदेलखंड तक योजनाओं का सच देखा और परखा जा सकता है। हजारों-लाखों करोड़ की योजनाओं के बाद भी किसानों द्वारा आत्महत्या किए जाने का सिलसिला जारी है। सरकार को चाहिए कि वह इस बात की गारंटी तय करे कि योजना का लाभ बिना किसी व्यवधान के जरूरतमंद किसानों तक पहुचे।  बैंकों में दलाल राज देखा जा सकता है। दलालों से बैंक अधिकारियों व कर्मचारियों की सांठगांठ किसी से छुपी नहीं है। योजनाओं में भ्रष्टाचार के चलते सरकार चाहकर भी किसानों का भला नहीं कर सकती। गांव के गरीबों के कल्याण से जुड़ी मनरेगा का भ्रष्टाचार जग जाहिर है।

इस योजना के भ्रष्टाचार का खुलासा सीएजी अॉडिट में हो चुका है। मनरेगा के भ्रष्टाचार से जुड़ी जांचे किसी अंजाम तक नहीं पहुंच पा रही हैं। मनरेगा में ग्राम प्रधान, पंचायत सेक्रेटरी से लेकर जिले के ग्रामीण विकास से जुड़े आला अधिकारी तक शामिल होने के कारण मनरेगा के भ्रष्टाचार से जुड़ी जांचे कछुआ गति से चल रही हैं। बजट में किसानों की बेहतरी की योजनाएं किसानों का भला करने की बजाय दलाल और सरकारी मशीनरी के कल्याण की योजना बनकर रह जाती हैं। योजनाओं का लाभ लेने में गरीब किसान दूर ही बने रहते हैं। कारण बैंक की औपचारिकताओं को पूरा करने में गरीब किसान अपने को असमर्थ पाते हैं।

इसके अलावा बैंककर्मी भी जिस शैली और अंदाज में किसानों से बात करते हैं, वह किसानों को हतोत्साहित ही करता। यही कारण है कि किसानों की बेहतरी से जुड़े सरकारी प्रयास लाख कोशिशों के बावजूद भी परवान नहीं चढ़ पाते। सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि योजनाओं का लाभ जरूरतमंद किसानों तक कैसे पहुंचे? सरकारों के पास इसका कोई ठोस ब्लू प्रिंट नहीं है, यही सरकार की सबसे बड़ी लाचारी और बेबसी है, जिसका तोड़ देने में सरकार विफल है। योजनाओं में भ्रष्टाचार किसानों की तरक्की की राह का सबसे बड़ा अवरोध है। इस अवरोध को हटाने केंद्र और राज्य सरकारें नाकाम ही हैं। योजना और किसान, किसान और बाजार के बीच दलाल खड़े हुए हैं, जो किसानों के श्रम का वाजिब हक हड़पने का काम आजादी के बाद से लेकर आज तक करते चले आ रहे हैं। भ्रष्टाचार के कारण ही  बजट में किसानों के हित की बात अंततः कागजी हिसाब से ज्यादा कुछ नहीं रह जाती।

लेखक विवेक दत्त मथुरिया मथुरा के प्रखर पत्रकार हैं. 

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