Jun 3, 2016

उन्नाव में जिला पंचायत का तमाशा, 19 साल कराई बंधुआ नौकरी

यूपी के उन्नाव जिला पंचायत की सियासी राजनीति व अधिकारियों की मनमर्जी ने एक सेवानिवृत कर्मचारी की पूरी जिंदगी बदल कर रख दिया है। आज बुढापे में पति-पत्नी किस तरह जिंदगी बसर कर रहे हैं, यह तो उनका दिल या रब ही जानता है। उत्तर प्रदेश सरकार के आधीन जिला पंचायत उन्नाव में अधिकारियों की मनमानी नियुक्ति पर असरकारक रहती है। यही कारण है कि जिला पंचायत उन्नाव को अधिकारियों व जिला पंचायत अध्यक्षों ने एक कर्मचारी से 35 साल 10 माह नौकरी करवाई और नियुक्ति की समयावधि 16 साल की दिखाई है। 19 साल की नौकरी को बंधुआ समझ कर घोट दिया गया।


यह बंधुआ मजदूरी जिला पंचायत में सेवानिवृत कर्मचारी कमलेश कुमार दीक्षित से कराई गई है। सन 1978 में तत्कालीन जिलाधिकारी के आदेश पर चयन समिति के जरिए कमलेश कुमार दीक्षित का पेड अपरेंटिस पद पर नियुक्ति की गई। जिला पंचायत की गाइड लाइन के मुताबिक जब कभी पदोन्नति की बात आएगी तो पेड अपरेंटिस को प्रथम वरीयता दी जाएगी। लेकिन कमलेश कुमार दीक्षित के मामले में एेसा नहीं हुआ। अधिकारियों ने सांठगाठ कर अपने मन से नियुक्ति की। सन 1981 में पहली चयन समिति बैठी तो तीन लिपिक पद रिक्त थे एेसे में कमलेश कुमार दीक्षित को प्रथम वरीयता मिलनी थी लेकिन अपर मुख्य अधिकारी राम नवल वर्मा ने अपनी मर्जी से अपने चहते को लिपिक पद नियुक्त कर दिया। खास बात यह है कि डीएम ने चयन समिति की तिथि निर्धारित कर प्रक्रिया को पूरा करने के निर्देश दिए थे। वहीं अपर मुख्य अधिकारी ने डीएम को गुमराह किया और लिपिक की नियुक्त कर दी गई। डीएम ने भी इस बात पर गौर करने की जरूरत नहीं समझी कि बिना उनकी रजामंदी के नियुक्ति कैसे हो गई। उस दौरान कांग्रेस का शासनकाल था और अपर मुख्यअधिकारी की शासन में अच्छी पैठ थी। इसेक बाद सन 1986 में दूसरी बार चयन समिति ने कमलेश कुमार दीक्षित के कार्य व योग्यता को दरकिनार कर दिया।  सिलसिला यही नहीं थमा सन 1990 में चयन समिति ने कमलेश कुमार दीक्षित से जूनियर दो लिपिक की पदोन्नति कर दी। इस पर कमलेश कुमार दीक्षित ने आयुक्त लखनऊ के यहां प्रत्यावेदन दिया जिस पर आयुक्त ने जिला पंचायत को आदेश दिया कि अब पुराने निरस्त किए जाते है तथा अब जब कभी भी पदोन्नति होगी तो कमलेश कुमार दीक्षित को प्रथम वरीयता दी जाएगी।

आयुक्त के आदेश की उड़ी धज्जियां
जिला पंचायत के अधिकारी व अध्यक्ष इतने घाघ निकले उन्होंने आयुक्त के आदेश की धज्जियां उड़ाते हुए सन 1993 में दो तथा 1995 में  में चार नई भर्ती कर ली। चारों भर्ती लिपिक पद पर की गईं। कमलेश कुमार दीक्षित के मामले में कोई गौर नहीं किया गया।

आखिर क्यो बर्बाद की जिंदगी
पेड अपेरेंटिस का नियम है कि यदि उन्हें एक साल में स्थाई नहीं किया जाता है तो फिर बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। कमलेश कुमार दीक्षित के मामले में एेसा नहीं हुआ। जिला पंचायत के अधिकारियों ने इनसे हर सीट पर काम लिया और बतौर लिपिक बनाए रखा। चुनाव से लेकर जनसंख्या तक में डयूटी लगाई गई लेकिन पदोन्नति नहीं दी गई। सवाल यह है कि जब पेड अपरेंटिस रखना था तो फिर हर सीट पर काम क्यों कराया तथा पेड अपरेंटिस को जब पदोन्नति नहीं देनी थी तो उसे बाहर क्यों नहीं निकाला गया। इस सवाल का जवाब किया के पास नहीं है।

16 साल 4 माह की मिल रही पेंशन
जिला पंचायत के घाघ अधिकारी अपनी मर्जी से काम करते रहे और शासन में भी कभी इस बात की छानबीन नहीं की गई की आयुक्त के आदेश को क्यों नकार दिया गया। 3 मार्च 1978 को कमेलश दीक्षित की जिला पंचायत में पेड अपरेंटिस पद पर नियुक्ति हुई थी और ६ सितंबर 1997 को इन्हे लिपिक बनाया गया जबकि इस बीच कई बार चयम समिति बैठी और कई कर्मचारियों की पदोन्नति तथा नियुक्ति हुई। इस अनदेखी के कारण कमलेश कुमार दीक्षित को 16 साल 4 माह की पेंशन मिल रही जो उनके और पत्नी के भरण पोषण में नाकाफी है।

सरकारी गाइड लाइन घुटने टेकने पर हुई मजबूर
कमलेश कुमार दीक्षित सेवानिवृत 31 जनवरी 2014 को सेवानिवृत हुए तो उसके बाद जो फंड मिला वह  16 साल 4 माह की था।  19 साल की नौकरी को जिला पंचायत उन्नाव ने जोड़ा़ ही नहीं। आखिर यह सरकार की किस गाइड लाइन में है कि नौकरी 30 साल कराओ और नियुक्ति 16 साल की दिखाओ।  35 साल जिंदगी के नौकरी में खपा दिए उसे ध्यान में नहीं रखा गया। 19 साल जो पेड अपरेंडिस का समयाकाल था उसे अधिकारियों ने नकार दिया है। हालांकि इलाहाबाद से उन्नाव जिला पंचायत के कर्ताधर्ताओं से जवाब मांगा गया है लेकिन कोई जवाब नहीं दे रहा है। पिछले एक साल से वह मात्र 7 हजार की पेशन में गुजर बसर कर  रहें हैं। खुद को डायबिटीज है तो पत्नी को बीपी की शिकायत, इतनी कम पेंशन दोनों को जिला पंचायत ने बुढापे में चैन से जीने के लिए भी नहीं छोड़ा है। यह कहानी साफ बता रही है कि शासन और सत्ता की जुगलबंदी में किस तरह एक आम कर्मचारी की पूरी जिंदगी तबाह हो गई अब बुढापे में जिम्मेदार तबाही की कहानी में ताबूत की कील ठोंकने में लगे हैं।

नौकरी ने पति पत्नी को किया बीमार
जिला पंचायत के जिम्मेदारों ने जो गुल खिलाया उसका नतीजा यह है कि कमलेश कुमार दीक्षित पिछले 34 साल से डायबिटीज से पीड़ित हैं तो वहीं उनकी पत्नी ब्लड प्रेशर की मरीज हैं। दोनों का कहना है कि न जाने किस बात की सजा मिली है, यह कैसा सरकार राज जहां सरकारी नौकरी में बंधुआ बना दिया गया। शायद यही कारण है कि उनके तीन बेटे होनहार होने के बाद भी सरकारी नौकरी में नहीं गए। कारण पिता के दर्द को आंखों से देखा है। जिसकी टीस सभी के जेहन में ताउम्र बनी रहेगी

alok dixit
alok.repoter@gmail.com

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