Jun 17, 2016

मोदी सरकार को पत्रकार पुष्प शर्मा पर गुस्सा क्यूँ आया?

21 जून को "अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस" घोषित किया गया। 11 दिसम्बर 2014
को संयुक्त राष्ट्र में 193 सदस्यों द्वारा 21 जून को " अंतर्राष्ट्रीय
योग दिवस" को मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली। प्रधानमंत्री मोदी के इस
प्रस्ताव को 90 दिन के अंदर पूर्ण बहुमत से पारित किया गया, जो संयुक्त
राष्ट्र संघ में किसी दिवस प्रस्ताव के लिए सबसे कम समय है।

मोदी सरकार ने पूरी ताकत लगाकर योग के बाजार पर सरकार की ब्रांडिंग की
ताकि हिन्दू वोट बेंक पर ओर मजबूत कब्जा किया जा सके. योग तो एक छलावा था
मकसद तो वोट पर क़ब्ज़ा था.



"अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस" कैसे "अंतर्राष्ट्रीय सांप्रदायिक दिवस" बन गया ?

मेरे एक लेख ने ये साबित किया - सरकारी नीति के तहेत मुस्लिम को योग
प्रशिक्षु की नौकरी नही मिलती है.

ये "अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस" ना बनकर फिर "अंतर्राष्ट्रीय
सांप्रदायिक दिवस" के रूप मे दिखाई दिया.

पूरी सरकार बचाव मे आ गयी ओर विदेशो मैं हुई किरकिरी से बचने के लिए
सरकार के लिए पत्रकार को गिरफ्तार करना जरूरी हो गया ताकि बदनामी से बचा
जा सके. मेरे पास स्वीडन , अमेरिका ओर इंग्लेंड से मेल ओर काल आ गये.

सरकार नाराज़ थी क्यूँकि कोई मुस्लिम कभी चुना नही ये बात सच थी. इसलिए
एक तरीका था पत्रकार को गिरफ्तार करके उस पर इल्ज़ाम लगा देना ....मगर
यहाँ भी अमेरिकन संस्था ( कमेटी टू प्रोटेकट जर्नलिस्ट ) ने मेरा साथ
दिया.

https://cpj.org/…/india-jails-reporter-for-accusing-governm…

सरकार के पास दो रास्ते थे मुझे गलत साबित करने के

1.या तो किसी मुस्लिम का नाम सामने लाना ताकि मेरा लेख झुटा साबित किया जा सके

2. या फिर मेरे उपर ही इल्ज़ाम लगा देना.

मेरे उपर इल्ज़ाम लगा देने से कुछ पल की राहत तो मिली मगर सवाल आज भी वही
बना हुआ है अगर किसी मुस्लिम को कभी चुना गया तो वो सरकार वो नाम बताए
वरना स्वीकार करे " उसने ऐसी नीति बना रखी थी / है जिसमे मुस्लिम नही
चुने जाते".

" अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस " मेरे एक लेख से "अंतर्राष्ट्रीय सांप्रदायिक
दिवस" बन गया ओर यही कारण बना सरकार के नाराज होने का. सरकार दोनो तराफ
से घिर गयी. ना सबूत दे सकती थी - क्यूँकि कभी किसी मुस्लिम को वास्तव मे
चुना ही नही गया ...तो नाम कहाँ से लाती?

ओर विश्व भर मे मेरा ये एक आर्टिकल सरकारी नीति की पोल खोल रहा था. इसलिए
मुझ पर एक क्रिमिनल केस कर दिया गया ताकि पब्लिक परसेप्शन का बुलबुला
फुलाया जा सके.

सरकार की जो फजीहत हो रही थी उससे बचा जा सके. ओर सवाल पूछने वालेको ही
झुटा साबित किया जा सके.

लेख लिखने के नाम पर गिरफ्तार तो कर लिया मगर सरकार ने जैसे पहले कहा था
उन्होने मुस्लिमो का चयन किया ओर योग प्रशिक्षु का पद दिया ...इसको साबित
करने को आज तक कोई नाम नही बताया , किसे ओर कब नौकरी दी....... ओर आएगा
भी नही.


अब अगला टॉपिक - पुलिसिया गुंडागर्दी -कैसे मुझे डराया गया

1. डराने की साफ वजेह थी मेरा एक मुस्लिम संपादक ओर अखबार के लिए लिखना
ओर उनका एक ही दबाव था किसी तरेह से भी इसमे किसी मुस्लिम संघठन या
व्यक्ति का नाम आ जाए ताकि उसको आतंकवाद से जोड़कर प्रायोजित झूटी ख़बरे
फैलाई जा सकें. पर ये साबित नही किया जा सका के लश्कर ने मुझे आर्टिकल
लिखने के लिए करोड़ो रुपये दिए हो. मेरे बेंक मैं जमा राशि की जानकारी
जुटाई गयी ताकि ज्यादा पैसा जमा या निकाला ग्या हो उसे इस तरेह से फैलाया
जा सके के मुझे ऐसा आर्टिकल लिखने के एवज़ बड़ी रकम मिली है.

मगर अफसोस ये हो ना सका ........

2. मुझे लेख लिखने के लिए एक मामूली रकम मिली थी ओर वो भी चेक से , इसलिए
मुझे भड़काया गया ये कहकर ....बस तू इतने (****) से पैसो के लिए मुल्लो
के हाथो बिक गया ......उनका इशारा मेरे संपादक ओर अखबार की ओर था.

मेरा जवाब था ...मैं पत्रकारिता रोटी कमाने के लिए नही करता बल्कि ये
मेरा शोक है ओर शोक को पैसो मैं नही तोला जाता. फिर गलियों का दोर
क्यूँकि मेरा बेबाकी से जवाब देना उनकी पुलिसिया हनक पर चोट कर रहा था.
जो उनसे बर्दाश्त नही हो रहा था. मेरी आई आई एम बंगलोर से जुड़ी गुजरे कल
की दास्तान किसी भी पुलिसिया कहानी की धज्जियाँ उड़ा रही थी. तकनीक मे
किया हुआ मेरा काम ओर पेटेंट की जानकारी मिलने के बाद उन्हे ओर दर्द हुआ.
अब तो पत्रकार साहब किसी मल्टी नेशनल के कामयाब आदमी नजर आने लगे थे. हाल
ही में मेरी यूरोप की यात्रा को लेकर उनको इतना समझ आ गया के जिसको वो
पाक्षिक अखबार मे काम करने वाला जो दस हजार महीने का कमाता हो , समझकर
लाए थे वो उनकी सोच ओर पहुँच दोनो से बाहर था.

3. फिर मुझे कहा बताया गया मुझ पर देश मे दंगा भड़काने के आरोप लगे हैं
यानी धारा 153 ए लगाई गयी जिसमे पुलिस को ये अधिकार होता है वो बिना
गिरफ़्तारी का वारंट लिए मुझे कभी भी कहीं से भी गिरफ्तार कर सकती थी. जो
दो महीने बाद उन्होने किया भी. मेरे उपर एक ही इल्ज़ाम था के मुझे किसी
मुस्लिम ग्रुप ने फ्रंट फेस बनाकर कोई चाल चली है ओर मेरे एडिटर क्यूँकि
मुस्लिम हैं तो इनको इससे ज्यादा कुछ दिखाई नही दे रहा था.

पुलिस ने जब जोर से कहा बोल किस विदेशी ताकत के लिए काम करता है तू तेरे
पीछे किसी विदेशी शक्ति का हाथ है....अब ये विदेशी ताकत जैसे शब्द मैं
बचपन से सुनता आ रहा था ओर मैने पूछ लिया क्यूँ हिन्दुस्तान मे कोई
चवानप्राश् नही खाता हे क्या जो विदेशी शक्ति के भरोसे चलना पड़ेगा?

पुलिसिया सोच को मेरे जवाब ना सिर्फ अकड़ से भरे लग रहे थे बल्कि सारे
जवाब उनके सवालो की खिल्ली उड़ाते नजर आ रहे थे.
जब इस्लामिक ग्रूप से मेरे काम को नही जोड़ा जा सका ओर मेरे पैसे के लेन
देन नॉर्मल पाए गये तो उन्होने मुझे दिल्ली ओर देश से बाहर ना जाने देने
का एक पुलिसिया काग़ज़ दे दिया. इस ट्रवेल बेन वाले पेपर पर मेरा नाम
पुष्प शर्मा लिखा था जिसको देखकर मुझे गुस्सा आया ओर मैने कहा मेरे नाम
से पहले मिस्टर तो लगाओ ये बात सुनकर पुलिसिया हंसी ने मुझे पुरानी
फ़िल्मो के प्रेम चोपड़ा की याद दिला दी वही कमीनेपन से भरी तिरछी हंसी.

मैने 4 दिन की पूछताछ मे पुलिस का दिया खाना या पानी लेने से मना कर दिया
ओर थक हारकर उन्हे मेरी ज़िद माननी पड़ी ओर मेरे दोस्त बाहर से पानी ओर
जूस लेकर आते मैं वही लेता रहा. पुलिस का कुछ भी ना खाने के पीछे मेरी
धार्मिक सोच थी जिस पैसे को मैने कमाया नही उस पैसे को मैं खाकर पाप का
भागीदार बनूँगा.

बीच बीच मे पुलिस वाले कहते "भाई हम तो अखबार पढ़ते भी नही पर ये तूने
क्या पिन चुभो दी मंत्री के सोरा चिड़ा बैठा "
जब मैं उन्हे कहता ये अन्टी एस्टॅब्लिशमेंट आर्टिकल है तो बोलते क्या बम
चला दिया भाई के कर दिया तैने ....पर दिखे भाई केस तो होवेगा सरकार की
नींद हराम कर दी तैने".

जब मुझे रात को घर जाने को कहा जाता उन मार्च के 4 रोज़ मे फिर मुझे
पुलिस वाले कहते देख भाई तेरे मीडीया वाले सारे खड़े बाहर हमारी बुराई ना
करिए भाई ...अच्छा ओर कल आ जाइए".

मुझे तेहेलका का गुजरा कल याद आ गया जब तेहेलका पर विदेशी धन लेने तक के
आरोप लगे थे ओर विदेशी सरकार के इशारे पर भारतीय सरकार को गिरने की साजिश
करने तक के आरोप लगे थे. मेरे गुजरे कल मे यानी तेहेलका मे किए कामो को
पुलिस ने बकायेदा लिखा ओर वो उप्पर बैठे उनके आका तक पहुँचा भी.

पुलिस ओर ख़ुफ़िया विभाग का शक था मेरे किसी खबरी ने मुझे अंदर के सरकारी
काग़ज़ दिए हैं ओर मेरे से 4 रोज़ तक दस - दस घंटे मार्च 2016 में पूछताछ
की गई मगर ये सब दिखावा था ...मुझे पता था ये बिना गिरफ्तार किए दूसरी
सरकारों के मुह बंद नही कर सकते.

परंतु कड़वे सवाल आज भी जिंदा है ओर जिस रोज़् ये सरकार गयी .....सारी
फाइलें फिर खुलेंगी ओर कोई कितना भी ताकतवर क्यूँ ना हो कानून की मार
मरूँगा.

Pushp Sharma 
pushpsharma@gmail.com

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