Jun 23, 2016

इमरान प्रतापगढ़ी को सुनिए : बोल रहा कैराना है...

रफ़्ता रफ़्ता अपने लबों को खोल रहा कैराना है ।

चंद भेडिये नाम पे मेरे अपनी रोटी सेंक रहे,
नये शिगूफे ले आये जुमलों पर जुमले फेंक रहे !
इक दंगाई फिर से यात्राओं का नाटक खेल रहा,
और लखनऊ वाले सब चुपचाप तमाशा देख रहे !

नफरत के तूफान में फंसकर डोल रहा कैराना है ।
बोल रहा कैराना है.......!


मुझे जो नफरत की तहरीर बताने पर आमादा हैं,
और द्रौपदी वाला चीर बताने पर आमादा हैं !
वो जो सियाही और लहू का फर्क़ भुलाये बैठे हैं,
वो कैराना को कश्मीर बताने पर आमादा हैं !

उन्हे बता दो सदियों से अनमोल रहा कैराना है ।
बोल रहा कैराना है........!

'मन की बात' करो तो भूखे-नंगों की भी बात करो
भगवा रंग के साथ और सब रंगों की भी बात करो
दो सालों में ख़ून-ख़राबा,लफ़्फ़ाज़ी ही लफ़्फ़ाज़ी
'चाय पे चर्चा' करने वाले दंगों की भी बात करो !

तुम कहते हो ज़हर फ़ज़ॉं में घोल रहा कैराना है ।
तो फिर सुन लो आज चीख़ कर बोल रहा कैराना है !

इमरान प्रतापगढ़ी

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