Jan 31, 2016

क्या आगरा फिर अपना पुराना गौरव हासिल कर सकेगा?

-डा. राधे श्याम द्विवेदी- 
आगरा। इस बार के स्मार्ट सिटी में उत्तर प्रदेश का एक भी शहर शामिल नहीं हो सका है। जो मापदण्ड निर्धारित थे उन्हें पूरा कर पाने वाले शहर ही इस श्रेणी में स्थान बना सके हैं। इसके लिए आगरा सहित भारत के प्रमुख शहरों में आनलाइन सुझाव तथा वोटिंग भी कराये गये हैं।


एतिहासिक इमारतें रोजी रोटी के साधन
आगरा को मुगलों ने इसे अपनी पहली राजधानी बनाया था। यहां तीन विश्व विरासतें - ताजमहल का रोजा ,आगरा किला तथा फतेहपुर सीकरी का मुगल शहर स्थित हैं। यहां अनेक राष्ट्रीय स्तर की इमारतें भी हैं। इस कारण यहां आने वाले पर्यठकों की संख्या भी ज्यादा ही रहती है। एतिहासिक इमारतें यहां के रोजी रोटी के साधन हैं। गाइड, फोटोग्राफर ,टैक्सी, होटल ,टैम्पू तथा यहां तक कि बाजार वाले भी इन्हीं पर आश्रित है। जब से प्रदूषण का शोर ज्यादा हुआ, यहां के उद्योग आदि धीरे-धीरे सिमटते गये और दूसरे शहरों की ओर बढ़ गये। यह बात किसी से छिपा नहीं कि यहां  पैसे या संसाधन की कमी तो कभी भी नहीं रही है। यदि कोई कमी है तो वह है इच्छा शक्ति तथा ईमानदारी से काम करने की जज्बे की। इस शहर को वह स्थान नहीं मिल सका जिसका यह वाकई हकदार था। अंग्रजो से लेकर स्वतंत्र भारत के लगभग 65 वर्षो तक यह एक उपेक्षित शहर के रूप में ही जाना जाता रहा। सत्तर के दशक में कांग्रेस के तत्कालीन युवराज स्व. श्री संजय गांधी ने इसके विकास के लिए कुछ शुरूवात किया था। यहां उसी समय पथकर लगाया गया था। उसके बाद उनका सपना अधूरा ही रह गया। हां पथकर में कई गुना बृद्धि होती निरन्तर देखी जा रही है।

भीड़ और जाम की समस्या
वर्तमान समय में इस शहर की सर्वधिक बड़ी समस्या जाम की है । सप्ताहान्त में बाहर के मुसाफिर आगरा में ज्यादा आ जाते है। कहीं कोई रैली का आयोजन हुआ तो भी भीड़ बढ जाती है। जब शहर में प्रतियागिता की कोई परीक्षायंे होती हैं तो भी यह भीड़ देखी जा सकती हैं। इसके समाधान के लिए प्रशासन जो भी उपाय करता है वह पर्याप्त नहीं होता है। पुलिस की पेट्रोलिंग इस उद्देश्य से कभी नहीं की जाती है। टैम्पांे व रिक्शे सवारियों के लिए आम जनता की सुविधाओं की अनदेखी करते रहते हैं। इनमें अच्छे शहर के बनाये रखने का ना तो कोई रूचि रही है और ना ही उन पर प्रशासन द्वारा कोई दबाब या गाइडलाइन ही दिया जाता है। गांव के आने वाले लोग तो यातायात नियमों का पालन कम करते हैं। तमाम शहरी लोग भी जल्दी जाने के चक्कर में नियम तोड़ते देखे जा सकते हैं।

प्रशासन की कारगर व्यवस्था नहीं
भैसों की झुण्डें यहां सड़कों से जब निकलती है तो ये सारी व्यवस्था धरी की धरी रह जाती है। स्कूलों से निकलने वाले बच्चे , पेठा इकाइयों के वाहन, लोडिंग वाहन जब भीड़ वाले इलाके में घुस जाते हैं तो असुविधा बढना लाजिमी है। कहीं कहीं फुटपाथों पर दूकाने चलवायी जाती हैं। ये सभी शहर की नागरिक व्यवस्था के सुचारू रूप में संचालन में बाधक है। इजना ही नहीं अनेक जगह एसी बेतरतीब दुकाने लगा दी जाती हैं कि आम आदमी का निकलना दूभर हो जाता है।

मुख्यमंत्री जी ने रूचि लेना शुरू किया
मुख्यमंत्री जी अपने विवेक से त्वरित निर्णय जनहित में लेते अब देखे जा रहे हैं। लोक सभा में करारी हार तथा विधान सभा का आसन्न चुनाव से सभी मशीनरी गतिशील होती देखी जा रही है। राजनीतिक प्रतिस्पर्घा अपनी जगह पर है, परन्तु अपनी जमीन तलासने की होड़ में बहुत अर्सें के बाद आगरा में कुछ काम होते दिखाई देने लगा है। आजकल ताज नगरी आगरा में कुछ सकारात्मक गतिविधियां जमीन पर दिखायी देने लगी हैं। गलियां तथा नालियां अब कुछ स्तर तक ठीक होने लगी हैं। पहले जाम के कारण जो भीड़दिखती थी। अब वह विकास व सुधार के कारण दिख रही है।

जन सहभागिता दिखने लगी है
शहर की अव्यवस्था से सम्बंधित कार्यो से आम जन मानस काफी प्रभावित हुआ है और वह सार्वजनिक चीजों में रूचि लेने लगा हैं। अभी तक जिन मुद्दों को वह नजरन्दाज कर देता था, वह उन पर रूचि लेकर उसकी गुणवत्ता को देखने व परखने लगा हैं। परिणाम स्वरूप प्रशासन का काम जन सहयोग से काफी आसान होता जा रहा है। अब कई सड़के गुणवत्ता के साथ तथा नयी नयी तकनीकि से कम समय में बनने लगी हैं। नालियां व खडंजे वेहतर लुक में बनते देखे जा रहे हैं। अतिक्रमण हटाने में अधिकारियों को ज्यादा असुविधा नही होने पा रही हैं। जनता का पूरा सहयोग मिल रहा है।ं अधिकांशतः अतिक्रमण अब स्वेच्छा से हटते देखे जा रहे हैं। इतना ही नहीं समाचारपत्र इस दिशा में जनता को जागरूक कर रहे हैं। कहीं कमी होने पर उसे प्रकाशित होने पर जल्द उसमें सुधार किया जाता देखा गया गया है। पालिथीन का प्रयोग जनता कम करने के लिए सहयोग कर रही हैे और अपना विकल्प रखने लगी है। आन लाइन सेवाओं में विस्तार किये जाने से जनता उसको अजमाने लगी है और काम का बोझ व दबाव कम होते देखा जा रहा है। टोरंटों की विद्युत सुधार से लोगों को सुविधा स्थाई हुई है। भले आज के युग में जो भी कुछ मंहगाई दिख रही है परन्तु सुविधा भोगी उसे सहर्ष झेलने को तैयार दिख रहा है।

सोच में बदलाव
वह पुरानी दकियानूसी सोच से ऊपर उठता नजर आने लगा है। वह अब किसी बात को नजरन्दाज करके आगे बढने की प्रवृति को भी त्यागने लगा है । जहां कोई ज्यादती उसे दिखता है वह उसका विरोध करते भी देखा जा रहा है। यह सब 21 वीं सदी के स्वतंत्र भारत के युवाओं का कमाल ही है कि उसे अपनी ताकत का आभास हो गया है।

मेरी समझ से यह परिवर्तन अन्ना के आन्दोलन से शुरू होकर माननीय नरेन्द्र मोदी के आवाहन से पुष्पित और पल्लवित हुआ है। इसमें गाहे बेगाहे सपा के पूर्व मुख्य मंत्री माननीय मुलायम सिंह यादव भी  अपने अनुभवों के आधार पर सचेत करते देखे गये हैं। कभी कभार बहन मायावती भी इपनी पुरातन संस्कृति के अनुरूप अपने विरोधियों को लताड़ते देखी जाती हैं। चाहे वह लताड़ सामयिक हो या फिर प्रतीकात्मक या सत्ता में अपनी मौजूदगी दिखाने का एहसास ही क्यों ना हो? अब वह दिन दूर नहीं कि आगरा फिर अपना पुराना गौरव हासिल कर सकेगा ।

Radheyshyam Dwivedi
rsdwivediasi@gmail.com
पुस्तकालय एवं सूचना अधिकारी
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण आगरा
9412300183/8392929011

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