Jan 15, 2016

एक जैन मुनि की नजर में आम बजट कैसा होना चाहिए...


-मुनि जयंत कुमार-
: बजट से उम्मीदें और संयमित जीवन :  अगले महीने एनडीए सरकार का सालाना बजट आने वाला है। देश के करोड़ों लोगों की निगाहें इस पर लगी हुईं हैं। लोगों ने उम्मीदों की एक लंबी लिस्ट वित्त मंत्री अरूण जेटली को सौंप दी हैं। मौजूदा सरकार के लिए इन उम्मीदों को पूरा कर पाना कितना संभव होगा। यह थोड़ा सा मुश्किल नजर आ रहा है क्योंकि वर्ष 2016 में सरकार सातवां वेतन कमीशन भी लागू करने जा रही है।



देश के नागरिकों के लिए बजट से अभिप्राय है कि उन्हें सरकार से क्या सुविधाएं मिलेंगी। जिसमें वेतनभोगी से लेकर व्यापारी और उद्योगपति तक शामिल हैं। सभी की अपनी अपनी आवश्यकताएं हैं। वित्त मंत्री की भी कोशिश रहेगी कि सभी वर्गाें के लोगों की उम्मीदों को पूरा किया जा सके। लेकिन यहां पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि लोगों आवश्यकताएं क्या हैं। अर्थशास्त्र के मुताबिक सभी लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए धन की व्यवस्था की जाए। कोई भी इतना गरीब ना हो कि उसकी मूलभूत आवश्यकताएं ही पूरी ना हो पाएं। इसलिए बजट में इंसान की मूल आवश्यकताओं की पूर्ति पर ध्यान रखना जरूरी है। इसके बाद उसकी अन्य आवश्यकताएं आती हैं। व्यक्ति की आवश्याकताओं में भोजन, वस्त्र, आवास, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन और सुरक्षा की प्राथमिकता सर्वोपरि है।

भगवान महावीर भी ने कहा है कि केवल इच्छा पूर्ति के लिए या विलासिता के लिए सारे प्रयत्न नहीं किए जाने चाहिए। मनुष्य की यह प्रवृत्ति है कि वह इनकी पूर्ति के लिए धन का संग्रह करता है और ज्यादा से ज्यादा अर्थ का उपार्जन करने का प्रयास करता है। उसका एकमात्र उद्देश्य होता है सुविधा।

उसे सुविधाएं चाहिए इसलिए वह वर्तमान समय में हर बार बजट के दौरान सुविधाओं पर ध्यान केंद्रित करता है। मनुष्य विलास के प्रति आर्कषित है। वह विलासिता की पूर्ति के लिए अधिक प्रयत्न करता है। जिसके लिए अधिक से अधिक धन का उपार्जन और संग्रह करता है। विलासिता इंसान की आवश्यकता है अनिवार्यता नहीं है। इसलिए सुविधाओं के अतिरेक और विलासिता की अनिवार्यता से बचना होगा।  सुविधाओं और आवश्यकताओं की बात करें तो मैं यह तो नहीं कहूंगा कि इंसान को इसकी कामना नहीं करनी चाहिए। कामना करें लेकिन अतिरेक से बचें।

भगवान महावीर ने सुविधाओं, इच्छाओं और आवश्यकताओं को अस्वीकार नहीं किया है बल्कि मनुष्य को संयमित जीवन जीने के लिए प्रेरित किया है। संयम ही सभी प्रकार के दुखों का हल है। इसलिए बजट से सुविधाओं और आवश्यकताओं की इच्छा तो रखो लेकिन जीवन में संयम का पालन करने का भी प्रयास करो। बजट से ऐसी सुविधाओं की इच्छा मत रखो जो वांछनीय नहीं हैं। वहीं वित्त मंत्री भी ऐसा बजट लेकर आए जो सभी वर्गों के लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति करें। मनुष्य की मूल आवश्यकताओं का अवश्य ध्यान रखा जाए। नहीं तो मनुष्य में मानसिक विकृति और भ्रष्टाचार का खतरा पनपने के अवसर बढ़ेंगे। कहीं ऐसा ना हो कि आर्थिक विकास की चाह में हिंसा को बढ़ावा मिलें। वित्त मंत्री अपने बजट में मादक पदार्थ और मांस के सेवन संबधी वस्तुओं के उपभोग पर नियंत्रण लगाने के लिए टैक्स में बढ़ोतरी का सहारा ले सकते हैं। जो स्वास्थय के लिए हितकारी नहीं हैं। ये मनुष्य को प्रिय तो हो सकती हैं लेकिन हितकारी नहीं है।

इसलिए बजट तैयार करने की प्रक्रिया के दौरान यह याद रखना होगा कि मूल आवश्यकताओं की पूर्ति, राजकोषीय समावेशन और सुधार की राह पर बने रहना अत्यंत अहम है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकारी राजस्व में नई जान डालनी होगी होगी। बजट के निर्धारण में उपाय तात्कालिक प्रभाव और हल के लिए ना होकर त्रैकालिक होने चाहिए। ठीक वैसे जैसे भगवान महावीर की नीतियां त्रैकालिक हैं जो पांच हजार वर्ष पश्चात भी कारगर और उपयोगी हैं।  एक बात निश्चित रूप से जान लीजिए कि जब तक मनुष्य नहीं बदलेगा, तब तक कुछ नहीं होगा। किसी के हाथ में कुछ नहीं है मनुष्य को बदलना है।

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