priyank dwivedi
एक छोटी सी बच्ची अपने घर के बाहर खिलौने से खेल रही थी...तभी कुछ लोगों की भीड़ वहां से उस बच्ची को घूरते हुए नारे लगाते हुए निकलती है “ऐ जालिमों, ऐ काफिरों..कश्मीर हमारा छोड़ दो”...वो बच्ची ड़रकर अपने घर में छुप जाती है..उस मासूम को तो ये भी नहीं पता था कि ये जालिम क्या होता है? ये काफिर कौन होते हैं? कल तक जो अपने घर के बाजू में रहने वाले अंकल को प्यार से चाचाजान कहकर पुकारती थी..आज वही चाचाजान सड़कों पर नारे लगा रहे थे “ऐ जालिमों..ऐ काफिरों..कश्मीर हमारा छोड़ दो..” जब उस आठ साल की मासूम बच्ची ने अंकल से जिसे वो चाचाजान कहकर बुलाती थी उनसे काफिरों और जालिमों का मतलब जानना चाहा तो उस चाचाजान ने उस मासूम को इसका मतलब तो नहीं बताया...
बस इतना ही कह दिया कि “ये कश्मीर हमारा है..ये कश्मीर पाकिस्तान बनेगा”..और उस मासूम को कह दिया कि “जा अपने बाप से कह दे कि यहां से चले जाओ वरना तुम भी मार दिए जाओगे..”..उस मासूम ने ये बात जाकर अपने पिता को कही तो उसकी आंखों में आंसू आ गए..वो मासूम बार-बार अपने पिता से कह रही थी कि “ये चाचाजान ऐसे क्यों कर रहे हैं?..ये हमें यहां से क्यों भगाना चाहते हैं..?” पिता भी क्या जवाब देता..उसे शायद पता था कि उसने यदि जवाब दिया तो उस मासूम के मन में उस चाचाजान के प्रति कितनी नफरत पैदा हो सकती थी..उस मासूम को तो शायद नफरत का मतलब भी नहीं पता होगा..
उस बच्ची का पूरा परिवार उस सुंदर सी जगह पर बरसों से रह रहा था..
पूरे कश्मीर में यही नारा गूंज रहा था- “ऐ जालिमों...ऐ काफिरों..कश्मीर हमारा छोड़ दो..”
पूरे कश्मीर में न जाने कितने कश्मीरी पंडितों को उनके ही घर से निकाल दिया गया..कितने ही पंडितों को सड़कों पर सरेआम मारा गया ताकि बाकि पंडितों में ड़र पैदा हो और वो कश्मीर छोड़कर चले जाएं..उस वक्त पूरा प्रशासन चुपचाप ये सब आँखें बंद करके देख रहा था..और कान बंद कर उन पंडितों की आवाजें भी सुन रहा था जो मदद की गुहार लगा रहे थे..
हर गली से बड़ा सा हुजूम निकलता और नारे लगाता- “ऐ जालिमों..ऐ काफिरों...कश्मीर हमारा छोड़ दो..” “कश्मीर पाकिस्तान बनेगा..पंडित आदमियों के बगैर..मगर पंडित औरतों के साथ..”
शायद उस वक्त ऐसा ही माहौल बन गया होगा कि कोई भी कश्मीरी पंडित अपनी पहचान बताने तक में डरने लगा होगा..
हजारों की संख्या में कश्मीरी पंडितों ने अपने घर छोड़े..अपनी संपत्तियां..अपनी ज़मीन छोड़ी...अपना बचपन छोड़ आया...लेकिन किसी उनपर ध्यान नहीं दिया..हजारों में पंडितों का पलायन शुरू हो गया..भारताय इतिहास में आजादी के बाद ये पहली घटना थी जिसमें हजारों की संख्या में पलायन हुआ..
कश्मीर एक बार फिर गुलाम हो चुका था..मगर कश्मीरी पंडितों से आजाद..
कश्मीरी पंडित अपने ही देश में शरणार्थियों की तरह राहत शिविरों में रहने को मजबूर हो चुके थे...एक-एक तंबू में दस से ज्यादा लोग रह रहे थे..कितनी भयावह और दयनीय स्थिति रही होगी वो...
उस समय एक पिता शब्दहीन हो चुका होगा जब उस मासूम ने उससे कहा होगा कि- “पापा हम यहां क्यों आ गए..? यहां कितने मच्छर हैं ”..उस माँ के दिल पर क्या गुज़री होगी जब उस छोटी से
बच्ची ने अपनी माँ से कहा होगा- “मम्मी..मुझे भूख लग रही है...कुछ खाने को दो न..”
निश्चित ही उस वक्त हर माता-पिता ने आत्महत्या करने का सोचा होगा..हर पिता सोच रहा होगा कि काश वो पंडित न होता..तो उसे अपना घर न छोड़ना पड़ता..हर व्यक्ति उस दिन अपने पंडित होने पर शर्म महसूस कर रहा होगा..और गुस्सा भी..लेकिन क्या कर सकता था वो भी? काफिर जो था..
कितना मुश्किल होता होगा न कि जिस जगह पर हम रहते थे...जहां हमने अपना बचपन बिताया..जवानी जी...माँ-बाप बनने का सुख प्राप्त किया..उस जगह को हमें छोड़ना पड़ा..क्यों?..क्योंकि..हम काफिर थे..और सोचो उस मासूम को कैसा लगा होगा जिसके चाचाजान ने उसे घर छोड़कर जाने को कहा होगा..वो तो अपने चाचाजान से सिर्फ काफिर का मतलब पूछने गई थी..उसे क्या पता था..काफिर मतलब घर छोड़ना होता है...
priyank dwivedi
priyank.kumar.dwivedi@gmail.com
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