हैदराबाद में छात्र रोहित की आत्महत्या के केस बाद जिस तरह से उसे पेश किया गया या जिस तरह से राजनीति हुई उस पर बहस हो ही रही है। लेकिन इस सबके बीच कुछ ऐसा भी हो रहा है जो आपको सोचने का एक नया नजरिया दे सकता है कम से कम मुझे तो दे ही रहा है मीडिया के लिए भी और राजनीति के लिए भी.... रोहित के नाम पर राजनीति करने जो नेता पहुंचे उनमें से एक थे राहुल गांधी.....जनाब ने बयान दिया कि रोहित के पास आत्महत्या के सिवा और कोई चारा नहीं था... अब कोई इन राहुल गाँधी से पूछेगा कि 2017 यूपी विधानसभा चुनाव आ रहे हैं और इस बार भी उनसे उम्मीदें किसी को ही हों.... तो उनके पास कौन सा चारा है आखिर वे जब से सक्रिय राजनीति में आये हैं उनकी उपलब्धि ही क्या हैं और ऐसा कहकर वह उन हजारों या लाखों युवाओं को क्या सन्देश देना चाहते हैं जो कहीं न कहीं लड़ रहे हैं कुछ पाने के लिए। उन किसानों से भी जो हर साल अपनी तक़दीर से लुकाछिपी खेलता है। क्या आत्महत्या करने की डेडलाइन तय कर दी राहुल गांधी ने....?
प्रधानमंत्री पद के दावेदार एक व्यक्ति से ऐसे बयान की उम्मीद तो नहीं की जा सकती। मै अपनी राजनीतीक भावनाएं काफी कम बयान करता हूँ लेकिन आज कहता हूँ कि आप कभी प्रधानमंत्री बनने लायक थे ही नहीं और बेहतर हों इस दौड़ से बाहर भी हो जाएँ तो..... मुझे नहीं लगता किसी को कोई फर्क पड़ेगा और फिर आपके पास जो चारा हो वो तलाश लीजियेगा..... और बात अगर मीडिया की की जाय तो वहाँ भी निराशा ही हाथ लगी जिस तरह से रोहित की आत्महत्या को पेश किया गया कैसे न कहें की उसमे से जातिवाद की भावनाएं भड़काने की बू आ रही थी और है.
तीन दिन तक एक खबर को अपने प्राइम टाइम स्लॉट में मुख्यता से प्रकाशित करना क्या सन्देश देता है। मुझे याद आता है अभी पिछले महीने मथुरा में जिलाधिकारी कार्यालय के सामने एक व्यक्ति ने आग लगाकर आत्महत्या की और आरोप लगा जिलाधिकारी पर उसकी गुहार न सुनने का.....उसे मीडिया ने कितनी जगह दी अपने प्रोग्राम में.....जिलाधिकारी आज भी वहीं हैं.... समय कम है इसीलिए कई बातें छूट गयी हैं. और हाँ मेरे लेख का मतलब ये नहीं कि मुझे रोहित की मौत का दुःख नहीं है दुःख है ....लेकिन केवल इसीलिए कि वो एक छात्र था एक बेटा था और एक नागरिक था भारत का....और उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था।
मोहित गौड़
mohit gaur
mohitmithila@gmail.com
No comments:
Post a Comment