Jun 17, 2016

यूपी की सियासी पिच पर कैराना का टी-20 मैच

प्रभुनाथ शुक्ल
उत्तर प्रदेश सियासत की आग में जल रहा है। राज्य की समाजवादी सरकार जहां प्रतिपक्ष के हमले को लेकर बचाव की मुद्रा में दिखती है वहीं विपक्ष पूरी क्षमता से कैराना की सियासी पिच पर 20-20 मैच खेल रहा है। क्योंकि राजनीतिक लिहाज से यूपी सबसे अहम और बड़ा राज्य है। 2017 में विससभा चुनाओं का महायज्ञ होना है। उस लिहाजा से यह सब लाजमी है। मथुरा सत्याग्रह के बाद अब शामली जिले का कैराना शहर हिंदू परिवारों के पलायन को लेकर मीडिया और राजनीति की सुर्खियों में हैं। यह दिल्ली से तकरीबन 125 किलोमीटर पर स्थित है। कैराना का पलायन सिर्फ राजनीति है। ऐसा भी हम कह नहीं सकते हैं।


राजनीति की आग में जो जमीनी मसले उठाए गए हैं उसका जबाब सरकार के पास नहीं है। प्रतिपक्ष, प्रशासन और मीडिया ने जो बात उठायी है। उसमें कुछ तथ्यगत सवाल कुरेदते हैं और सरकार पर पर सवाल खड़ा करते हैं। यूपी में जब भी राजनीतिक बवंडर आता है उसका केंद्र पश्चिमी यूपी होता है। बात चाहे मुजफफर नगर दंगों की हो या फिर बिहासड़ा में गोमांस की बात या फिर मथुरा सत्याग्रह। घर वापसी या आनर किलिंग... अबकी यह आग भी शामली से उठी है। राजनीतिक लिहाज से पूर्वी यूपी के बजाय पश्चिम की जमीन अधिक उर्वर है। अधिकांश घटनाओं में राजनीति का मुद्दा भी हिंदू और मुस्लिम आधारित रहा है। क्योंकि राजनीति में धर्म सबसे विकाउ बाजारवाद पर आधारित विषय है। इसका बाजार भी बड़ा है। यह भी अपने आप में सवाल है कि लोगों को बांटने वाली सियासी लपटें पश्चिमी यूपी से ही क्यों उठती हैं।

शामिली जिले की कैराना विधानसभा है। राजनीति, मीडिया और प्रतिपक्ष अपने-अपने दाग धोने में लगे हैं। भाजपा जहां कैराना के हिंदूओं के पलायन को मसला बना वोटों का ध्रुवीकरण करना चाहती है। वहीं सरकार कानून-व्यवस्था और मुस्लिम मतों के बिगड़ने के डर से चुप है। भजपा ने इसलाहाबाद में आयोजित राष्टीय कार्यकारिणी की मीटिंग में भी इसे जोरशोर से उठाया है। पीएम सबसे अधिक समाजवादी पार्टी को निशाने पर रखा। सांप्रदायिकता, जातिवाद, गुंडागर्दी और भाई भतीजावाद को आगे रख राज्य सरकार को नंगा किया। कैराना का सच अगर पलायन है तो यह अपने आप में बेहद दुःखद है। भाजपा इसे हिंदू पलायन का सबसे बड़ा मसला मान रही है। 1990 में कश्मीर से हुए हिंदूओं के सबसे बड़े पलायन से जोड़ा जा रहा है। कहा जा रहा है कि इसे कश्मीर बनाने की साजिश रची जा रही है।

भाजपा सांसद की सौंपी गयी सूची में 346 परिवारों का नाम दर्ज हैं जिसमें यह आरोप लगाया गया है कि सभी यहां से पलायन कर गए हैं। सिंह के दावें में पांच साल में यहां 22 फीसदी हिंदूओं की आबादी घटी है। जबकि प्रशासन इस सूची को नकार चुका है। जिलाधिकारी की तरफ से क्रास चेकिंग भी करायी गयी है। जिसके कहा गया है कि अधिकांश लोग रोजगार के कारण यहां से पलायन किए हैं। जबकि यहां हिंदु-मुस्लिम दंगे कभी हुए ही नहीं। हिंदू व्यापारियों के सबसे बड़े खरीददार मुस्लिम ही बातए गए हैं। प्रशासन की सूची में दावा किया गया है कि 68 परिवार दस और 34 परिवार पांच से पहले व्यापार या दूसरे किसी कारणों से कैराना का अलविदा कहा है। जिसमें चार की सालों पूर्व में मौत हो चुकी है।ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ हिंदू परिवारों ने ही पलायन किया है। मुस्लिमों का भी यहां से पलायन हुआ है।

लेकिन इस सर्वे में एक बात खुल कर आयी है कि नौ परिवार ऐसे हैं जिन्होंने भय और दहशत के चलते कैराना छोड़ा। यह पड़ताल खुद जिला प्रशासन की है। जिससे समाजवादी सरकार और सीएम अखिलेश खुद मुंह नहीं छुपा सकते हैं। एक निजी चैनल के सर्वे में बताया गया है कि यहां तकरीबन दस साल पहले हिंदूओं की आबादी 60 फीसदी थी। लेकिन सरकारी दावे के अनुसार अब यह आठ फीसदी पर आ गयी है। जबकि 2011 की जनगणना में यहां 30 फीसदी हिंदू थे और मुस्लिम आबादी 68 फीसदी रही। जबकि प्रशासनिक दावों को आधार बनाएं तो इस वक्त मुस्लिमों की आबादी 92 फीसदी है।

अगर यह बात सच है तो यहां सरकार नंगी है। निश्चित तौर पर हालात बेहद बुरे हैं। इतनी जल्दी हिंदूओं की आबादी कैसे कम हुई। सरकार अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती है। सरकार की रिपोर्ट छल से भरी है। रोजगार की तलाश में व्यक्ति प्रवास को जाता है पूरा समूह और परिवार पलायन नहीं करता है। अपनी जन्म भूमि कोई नहीं छोड़ना चाहता। पलायन के पीछे यहां सबसे अहम बात है कि कैराना में कानून का राज खत्म हो चला है। यहां गुड़ागदी और माफिया राज है। पिछले दिनों एक विशेष समुदाय की बेटी से बलात्कार के बाद हत्या कर दी गयी। हलांकि इस हत्या में इसी समुदाय के लोग शमिल है। लेकिन इसकी आंच भाजपा सांसद तक पहुंची है। पलायन के पीछे की मुख्य वजह भी यही है। जबकि इस समस्या से हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग प्रभावित है। लेकिन मुस्लिमों की आबादी अधिक होने से हिंदूओं को मजबूरना पलायन करना पड़ा है। लेकिन सियासत इसे अपने रंग में रंगना चाहती है। पलायन को सांप्रदायिक जामा पहनाया जा रहा है। यहां किसी मुकिम गैंग का आतंक है। जबकि वह जेल में लेकिन आतंक की सरकार जेल से चला रहा है। पलायन की मुख्य वजह यहां गुंडागर्दी, माफिया और रंगदारीराज है। परिवारों के पलाय के पीछे यही मुख्यवजह रही है।

भाजपा सिर्फ राजनीति कर रही है इस तरह का आरोप लगाना नाइंसाफी होगी। कैराना का पलायन पूरी मानवता के लिए कलंक है। इस पर राजनीति बंद होनी चाहिए। हिंदूओं की घटती आबादी अगर पलायन का असली सच है तो स्थिति बेहदबुरी है। सरकार प्रतिपक्ष की आड़ में इस नंगे सच से नहीं बच सकती है। हलांकि इसके लिए केवल समाजवादी सरकार को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। सरकारी पड़ताल को माने तो दस सालों से पलायनवाद का जहर कैराना में पल रहा है। इसके लिए जितनी जिम्मेदार सपा है उससे कम अधिक बसपा नहीं है। इस संवेदनशील मसले पर दोनों सरकारों ने आंख पर पट्टी बांध रखी। जिसका नतीजा आ सबके सामने है। लेकिन प्रदेश में सपा की सरकार है। ऐसी स्थिति में वह नैतिक जिम्मेदारियों और जबाबदेही से पल्ला नहीं झाड़ सकती है। सरकार को जमीनी सच्चाई को सामने लाना चाहिए। राजनीति सिर्फ सिंहासन और व्यवस्था का सच नहीं है। कैराना राजनीति का यथार्थ ही नहीं परिवारों के पलायन का सच भी है।

लेखक प्रभुनाथ शुक्ल स्वतंत्र पत्रकार हैं. संपर्क: 892400544

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