16 जनवरी 2014 को जी मीडिया समूह के लॉन्च हुए रीजिनल चैनल ''जी पुरवईया'' के बुरे दिन लगातार जारी हैं।पहले चैनल का प्रसारण पटना से होता था लेकिन चैनल अपना बोरिया--बिस्तर समेट कर नोएडा जा चुका है और बीते 7 जून से चैनल का प्रसारण नोएडा से हो रहा है।जी पुरवईया में काम करने वाले स्ट्रिंगरों को शुरुआती कुछ महीने के पारिश्रमिक यह कहकर नहीं दिए गए थे की चैनल अभी नया है,इसलिए अभी पैसे दे पाना बिहार मैनेजमेंट के लिए मुश्किल है।बेचारे स्ट्रिंगर कुछ बोल भी नहीं पाए।उनके हाथ में एक बड़े घराने के खबरिया चैनल का लोगो था। इधर पुरवईया का बिहार मैनेजमेंट यह मानकर चल रहा था की जिले के स्ट्रिंगर लोगो के दम पर उगाही में सिद्धस्त हैं।यहां बताना बेहद जरूरी है की जी मैनेमेंट बिहार और झारखंड के स्ट्रिंगर के नाम पर चार लाख से ज्यादा महीने दे रहा था लेकिन रुपये स्ट्रिंगर की जगह किसी और के खाते में जा रहे थे।हांलांकि बाद में बढ़ते दबाब के बाद स्ट्रिंगर को पैसे दिए जाने लगे।लेकिन खबर के लिहाज से रुपये स्ट्रिंगर को नहीं मिल रहे थे।
पटना हाउस में बैठे ओहदेदार अपने--अपने प्रिय पात्र स्ट्रिंगर को मिला--जुलाकर ठीक रकम दे रहे थे और ज्यादातर स्ट्रिंगर्स के साथ लगातार नाइंसाफी हो रही थी।बिहार के पांच और झारखंड के चार स्टिंगर को ड्रॉप भी किया गया।हांलांकि किसी तरह से बस काम निकाला जा रहा था। चैनल कैसे धारदार और पैनापन लिए हुए हो,इसके लिए असाइनमेंट, इनपुट, आउटपुट और पीसीआर कोई भी ईमानदारी से मिहनत नहीं कर रहा था।शुरू से ही स्ट्रिंगर पैसे से लेकर उनकी अच्छी खबर चले और स्क्रीन पर दिखे इसके लिए जंग लड़ रहे थे। लड़ाई में तत्कालीन ब्यूरो चीफ मुकेश कुमार सिंह स्ट्रिंगर के साथ खड़े थे।यह वह वक्त था जिस समय से मुकेश कुमार सिंह ''जी पटना मैनेजमेंट'' के राडार पर थे।स्ट्रिंगर को समय से उनका परिश्रमिक कभी नहीं मिलता था।इस बीच कई स्ट्रिंगर के घर में उनके परिजन की मौत भी हुई लेकिन पटना में बैठे मैनेजमेंट के द्वारा स्ट्रिंगर को शब्दों तक से सांतवना नहीं मिली।खैर,काम चलता रहा।पटना में बैठे ओहदेदार सरकारी बाबू--हाकिम की तर्ज पर काम कर रहे थे।
यानि जमीन पर काम कुछ भी नहीं लेकिन कम्प्यूटर पर बेहतरीन काम के अनेकों आंकड़े।कागजी घोड़े दौड़ते रहे और जी पुरवईया का बुरा हाल बदस्तूर जारी रहा। बेचारे स्ट्रिंगर मौसम की मार झेलते हुए बढ़िया से बढ़िया खबर कैसे निकले इसकी जुगत करते रहे। रोजाना स्ट्रिंगर अपने तत्कालीन ब्यूरो चीफ मुकेश कुमार सिंह के संपर्क में थे और बहस--विमर्श के साथ खबरों जद से निकाल रहे थे।लेकिन हद की इंतहा देखिए की बेहतरीन खबरें निकालने वाले स्ट्रिंगर की कभी किसी ओहदेदार ने पीठ तक नहीं थप--थपाई।स्ट्रिंगर का पूरा कुनबा लगातार अपमान का दंश झेल रहा था और काम कर रहा था।
अब जबकि चैनल का प्रसारण नोएडा से हो रहा है,वैसे में स्ट्रिंगर की मुसीबत और बढ़ गई है।स्ट्रिंगर को अपने किसी रिस्तेदार के नाम पर विज्ञापन प्रतिनिधि(ZEMA)बनाना है।इस विज्ञापन की जिम्मेवारी के लिए 15 प्रतिशत उन्हें कमीशन मिलेंगे।यानि खबर के साथ--साथ अब दुकानदारी करनी स्ट्रिंगर के लिए अति आवश्यक बना दिया गया है।इनसब से ईतर एक और फंडा शुरू हो रहा है। स्ट्रिंगर को प्रखंड,पंचायत और विभिन्य थानों के लैंड मार्क्स अपने पास सुरक्षित रखने होंगे और सुबह का अखबार उन्हें नियमित पढ़ना होगा।कोई ऐसी खबर किसी पंचायत को लेकर अगर अखबार में छपी है तो उसे कुछ पंक्तियों के स्क्रिप्ट और लैंड मार्क के साथ भेजना है। यह खबर चलेगी लेकिन स्ट्रिंगर को इसके पैसे नहीं मिलेंगे।पंचायत स्तर तक अच्छी तरह से अपनी पैठ बनानी है ताकि पंचायत प्रतिनिधियों से भी समय---समय पर विज्ञापन लिए जाएँ।बेचारे कई स्ट्रिंगर ऐसे हैं जिन्हें तीन महीने से पारिश्रमिक नहीं मिला है।कुछ तो ऐसे स्ट्रिंगर हैं जिन्हें खर्च के मुताबिक भी पारिश्रमिक नहीं मिलता।
कयासों का बाजार गर्म है की ये स्ट्रिंगर जी प्रंबंधन के खिलाफ श्रम,सूचना और प्रसारण मंत्रालय के साथ--साथ मानवाधिकार का दरबाजा भी खटखटा सकते हैं।स्ट्रिंगर अपने पुराने ब्यूरो चीफ मुकेश कुमार सिंह की जी में फिर से वापसी भी चाह रहे हैं।स्ट्रिंगर की स्थिति बेहद गम्भीर है।जी राजस्थान के चैनल हेड पुरुषोत्तम वैष्णव जी पुरवईया के हेड के अतिरिक्त प्रभार में हैं।इनके नेतृत्व पर कोई सवाल उठाना सही नहीं है। जाहिर तौर पर क्षमता इनमें कूट--कूटकर भरी है और जी पुरवईया चैनल में एक नई धार भी आई है। लेकिन अभी आप देख सकते हैं की जी पुरवईया पर बिहार--झारखंड से अधिक यूपी, मध्यप्रदेश और राजस्थान की ज्यादे ख़बरें दिख रही हैं।पुरवईया नाम के अनुकूल खबरों को नहीं परोसा जा रहा है।जी पुरवईया के दिन बहुरने की जगह उसकी दुर्दशा हो रही है।यह दुर्दशा इसलिए हो रही है की लगभग सभी स्ट्रिंगर्स खुद को बेहद दबाब में महसूस रहे हैं जिससे उनका काम प्रभावित हो रहा है।भीतरखाने यह खिचड़ी भी पकनी शुरू है की बिहार के पटना और झारखंड के रांची में अभी कार्यरत कुछ रिपोर्टर्स और कुछ स्ट्रिंगर्स की छटनी हो सकती है।अभी सबसे अहम मसला यह है की पुरवईया के रिपोर्टर कितनी उगाही हाउस के लिए कर पाते हैं।इसके अलावे यही फार्मूला स्ट्रिंगर पर भी लागू होगा।
मोटे तौर पर आखिर में यह तस्वीर उभर कर सामने आ रही है की जी पुरवईया में सभी कुछ ठीक--ठाक नहीं चल रहा है।दो महीने के भीतर इस चैनल में भूचाल आ सकता है जिसमें कई बड़े ओहदेदार से लेकर निचले स्तर तक के बाबू मोशाय नपेंगे।वैसे सूत्रों से हासिल हुई जानकारी के मुताबिक जी ब्रांड के नाम पर बिहार और झारखंड में व्यक्ति विशेष के द्वारा लूट का खेल बुलंदी से खेला जा रहा है। राजस्थान के रहने वाले पुरुषोत्तम वैषणव को बिहार का मास्टर माईंड कब गच्चा दे जाए,कहना नामुमकिन है।अभी जी पुरवईया में ''कुछ तुम कमाओ और कुछ हम कमाएं'' का खेल खेला जा रहा है जिसका नुकसान आने वाले दिनों में जी प्रबंधन को ही उठाना पड़ेगा।हम तो बस जी के बड़े ओहदेदारों को खबरदार भर कर रहे हैं।
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.
yhi hal to zee mo\cg ka bhi hai . jb se ashutosh gupta ne mp\cg beuro or deelip tiwariji ne chainnal head ka kam kaj snhala hai tb se bhopal ho ya mp\cg ke kai jile strigaer vihin chl rhe hai ..guptaji ne than liya hai jb tk hai tb tk ve puri trh se chainnal ko grt me bhej kr hi dm lenge.
ReplyDeleteज़ी पुरवैया का मैं गिरिडीह झारखण्ड से स्ट्रिंगर था मुझे पर स्टील कंपनियों से विज्ञापन लाने का दबाव दिया जा रहा था। मैंने कहा की कपनी सीधे क्षेत्रीय चैनल को विज्ञापन देना नहीं चाहती। विज्ञापन हेड प्रदीप सिन्हा गिरिडीह अ पहुंचे और एक चोर कंपनी का विज्ञापन लेने के लिए मुझे ड्राप करव दिया। कारण की उस चोर कंपनी के खिलाफ मैंने कई खबर चलाई थी। चोर कंपनी की मांग थी कि गिरिडीह स्ट्रिंगर को पहले हटाइये। चोर कंपनी और विज्ञापन हेड की शिफारिश पर मुझे ड्राप कर सायबर अपराध में कशिश चैनल से हटाये गए एक अपराधी को स्ट्रिंगर बना दिया।
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