अजय कुमार,लखनऊ
काला कोट पहनकर न्याय के मंदिर में बड़े-बड़े फैसलों की तारीख बने कांग्रेस नेता और अधिवक्ता कपिल सिब्बल बीजेपी के एक छोटे से सियासी दांव से हैरान-परेशान हो गये है। सिब्बल के यूपी के रास्ते राज्यसभा पहुंचने की राह अचानक पेचीदा हो गई है। वह जिन अतिरिक्त वोंटो के सहारे राज्यसभा में दस्तक देना चाहते थे,उस पर भाजपा समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरी अरबपति बिजनेस लेडी प्रीति महापात्र ने भी अपनी नजरे जमा ली हैं। अचानक प्रीति के मैदान में कूदने से चुनाव रोचक हो गया है। कहने वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि बीजेपी के लिये यह चुनाव सिर्फ इतना ही महत्व रखते हैं कि किसी भी तरह से कपिल सिब्बल को राज्यसभा से रोका जा सके।वह सिब्बल की राह में रोड़े खड़े करना चाहती है। यूपी से राज्यसभा और विधान परिषद के लिये रिक्त सीटों से एक अधिक प्रत्याशी के चुनाव मैदान में उतरने और वोटरों(विधायकों)के पार्टी लाइन से हटकर वोटिंग करने पर भी सदस्यता खत्म नहीं होने के खतरे की वजह से चुनाव में कोई भी प्रत्याशी बाजी पलट सकता है। चुनाव की तारीख नजदीक आने के साथ ही तमाम बड़े दलों और उनके प्रत्याशियों द्वारा अपनी जीत निश्चित करने के लिये वोट खरीदे जाने की सुगबुगाहट ने छोटे-छोटे दलों में टूट की संभावनाए पैदा कर दी हैं। सबसे ज्यादा दलबदल की संभावना कांग्रेस में है। कांग्रेसी नेताओं की बैचनी इस आशंका को और अधिक उर्जा दे रही है।
2017 के विधान सभा चुनाव से पहले अपनी ताकत का नजारा पेश करने के लिये यह चुनाव काफी अहम माने जा रहे हैं। इसीलिये वोटों के लिये हर हथकंडा आजमाया जा रहा। खरीद-फरोख्त, विधान सभा चुनाव में टिकट का आमसन,बागियों को तोड़ने के साथ छोटे दलों पर भी डोरे डालने जैसे हथकंडे अपनाये जा रहे हैं। बड़े-बड़े राजनैतिक दलों के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बने चुनाव को जीतने के लिए आलाकमान के शीर्षस्थ नेता लखनऊ में डेरा डाले हुए है। सपा प्रमुख मुलायम ंिसंह, बसपा सुप्रीमो मायावती, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह,कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री सभी लखनऊ में मंडरा रहे हैं।
दरअसल, राज्यसभा की एक सीट जीतने के लिए 34 वोटों(विधायकों) की आवश्यकता पड़ती है। समाजवादी पार्टी के पास 223 विधायक हैं और उसने उच्च सदन के लिए सात प्रत्याशी मैदान में उतारे है। वोटों के गाणित के हिसाब से सातों प्रत्याशियों को जिताने के लिए पार्टी को 09 अन्य विधायकों को वोट की जरूरत होगी। इसी तरह बसपा के 80 विधायक है। उसने दो प्रत्याशी घोषित किए हैं। इन दो सीटों कों जीतने के बाद उसके पास 12 विधायकों के वोट बच रहे है। इसी तरह भाजपा के पास 41 विधायक हैं। बीजेपी ने एक प्रत्याशी मैदान में उतारा है। उसे जिताने के बाद बीजेपी के पास सात वोट बच रहें है। बीजेपी ने इसके साथ ही निर्दल प्रत्याशी का समर्थन कर दिया है। यदि बीजेपी को उसे जिताना होगा, तो उसे 27 बाहरी वोटों की जरूरत पड़ेगी। कांग्रेस के पास 29 विधायक हैं और उन्होंने एक प्रत्याशी मैदान में उतारा है। कांग्रेस को अपनी प्रत्याशी जिताने के लिए पांच और वोट की जरूरत होगी।सपा के कुछ वोटों के सहारे राज्यसभा में जाने की जुगाड़ में लगे पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल की राह आसान नहीं दिख रहीं है। कांग्रेस के पास मात्र 29 विधायक है और उसे प्रथम वरीयता के 34 वोट हासिल हो तो सिब्बल की जीत सुनिश्चित हो सकेगी। ऐसे में सिब्बल को पांच विधायक जुटाने के लिए कांग्रेस के पुराने सहयोगी रालोद की मदद की दरकार होगी, रालोद के पास आठ विधायक है। वहीं बसपा के पास भी राज्यसभा चुनाव में 12 अतिरिक्त वोट बच जाएंगे बसपा ने कांगेस का साथ दिया तब सिब्बल की राह आसान होगी। विधान परिषद में कांग्रेस के दीपक सिंह के लिए पर्याप्त 29 वोट हैं बशर्ते बगावत न हो।
इसी तरह विधान परिषद की एक सीट के लिए 29 वोट चाहिए। आठ सीटों के लिए सपा ने नामांकन किया है। इसके लिए उसे तीन बाहरी वोटों की जरूरत होगी। बीएसपी तीन सीटों पर प्रत्याशी उतार रही है।, उसे सात बाहरी वोटों की जरूरत होगी। एक सीट जीतने के लिए कांग्रेस के पास अपने वोट पूरे है, जबिक बीजेपी को अपने दो प्रत्याशी जिताने के लिए 17 बाहरी वोटों की दरकार होगी। दोनों ही जगह एक अधिक प्रत्याशी खड़ा होने की वजह से वोटों के इस गणित में तमाम दलों को अपने-अपने प्रत्याशियों को जिताने के लिए अन्य दलों के वोटरों की भी जरूरत आन पड़ी है। इसी वजह से सपा,कांग्रेस और बीजेपी की नजर बसपा के बढ़े विधायकों के साथ छोटे दलों पर है। छोटे दलों पर नजर डाले तो आरएलडी के आठ, पीस पार्टी के चार, कौमी एकता दल को दो, अपना दल का एक, एनसीपी का एक, आईएमसी का एक, टीएमसी का एक, निर्दलीय छह और नाम निर्देशित एक सदस्य है। इनमें से अपना दल के डॉ आरके वर्मा, एनसीपी के फतेह बहादुर, सपा से निकाले गए रामपाल और बीएसपी के बाला प्रसाद तो नामांकन के दौरान ही निर्दल प्रत्याशी के प्रस्तावकों में शामिल थे एक उम्मीदवार अतिरिक्त उताकर राज्यसभा व विधान परिषद चुनाव में मतदान की नौबत ले आने वाली भाजपा के लिए अतिरिक्त प्रत्याशी को जीत दिलाना सबसे बड़ी चुनौती होगी। अधिकृत प्रत्याशी शिवप्रताप शुक्ला के अलावा भाजपा ने निर्दलीय प्रीति महापात्र को समर्थन का फैसला किया है। भाजपा विधायकों की संख्या 41 है और प्रथम वरीयता के 34 मत शिवप्रताप की जीत सुनिश्चित करेंगे। बचे वोट प्रीति के खाते में जाएंगे, एनसीपी विधायक फतेह बहादुर सिंह, अपना दल के आरके वर्मा, सपा के विद्रोही रामपाल यादव, बसपा के बागी बाला प्रसाद अवस्थी व सकलडीहा विधायक सुशील सिंह भी प्रीति का साथ दे तो भी जीत के लिए 22 मतों की दरकार है। विधान परिषद में भूपेन्द्र सिंह और दयाशंकर सिंह अधिकृत उम्मीदवार हैं। एक सदस्य को जीत के लिए कम से कम 29 मत चाहिए। एक प्रत्याशी की जीत सुनिश्चित करने के बाद दूसरे के लिए 12 और विधायकों का बंदोबस्त करना आसान नहीं होगा।उधर,बसपा राज्यसभा चुनाव के लिए भले ही निश्चिंत हो लेकिन विधान परिषद चुनाव ने उसकी धड़कने बढ़ा रखी हैं।उसे अपने तीनों उम्मीदवार जिताने के लिए प्रथम वरीयता के सात वोट का बंदोबस्त पड़ेगा लेकिन बागी विधायक बाला प्रसाद अवस्थी की राह और विधायक चलेंगे तो बसपा के सामने मुश्किल खड़ी हो सकती है। बसपाइयों पर भाजपा की निगाह है। बसपा से बगवात कर भाजपा में आये जुगल किशोर को बीजेपी ने बसपा के वोट हासिल करने की मुहिम में लगा रखा है।बसपा की विधान परिषद के तीन उम्मीदवार अतर सिंह राव, दिनेश चंद्र, सुरेश कश्यप को जिताने के लिए प्रथम वरीयता के 29 मत चाहिए। राज्यसभा के लिए सतीश मिश्रा व अशोक सिद्धार्थ को वोट देने के बाद 12 वोट अतिरिक्त है।
यूपी की सीटों का गणित
11 राज्यसभा की सीटें
12 प्रत्याशी मैदान में
07 उम्मीदवार सपा
02 उम्मीदवार बीएसपी के
01 सीट पर कांग्रेस की दावेदारी
01 प्रत्याशी बीजेपी
01 सीट पर निर्दलीय
13 विधान परिषद की सीटें
14 प्रत्याशी हैं मैदान में
08 प्रत्याशी हैं सपा के
03 बीएसपी से दावेदार
01 कांग्रेस का उम्मीदवार
01 भाजपा का उम्मीदर
01 निर्दलीय प्रत्याशी
लेखक अजय कुमार लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं.
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