May 26, 2016

खाकी – चरितमानस

पुलिस तो एक रासायनिक यौगिक है जो पैसा +पॉलिटिक्स+प्रेशर से तैयार होता है |हम भ्रम में रहते हैं तो यह कसूर हमारा है| पुलिस और ईमानदार दो  विरोधा भाषी बातें हैं| मैंने सुना तो बहुत है पर आजतक एक भी ईमानदार पुलिसवाला नहीं देखा|अगर कोई ईमानदार है भी तो वह साहसी नहीं है| उसकी ईमानदारी किस काम की| पुलिस में रहकर जो ईमानदार दिखाई देते हैं समझिये वे ईमानदार तो नहीं किन्तु खुले रूप से भ्रष्ट नहीं हैं| पुलिस से ज्यादा डरपोक और कोई नहीं होता जोकि साल में  भारत में ही दस हज़ार से ज्यादा लोगों को फर्जी  मुठभेड़ और हिरासत में मारती है| पुलिस में ऐसा वातावरण ही नहीं होता कि वहां ईमानदारी  पनपे| गलती से यदि कोई ईमानदार पुलिस में भर्ती हो भी जाए तो वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकता| पुलिस में भर्ती  होने वाले भी परिस्थितियाँ जानते हैं और सोच  समझकर भर्ती होते हैं|


जिस तरह तेज हवा से तालाब में तैरता कचरा एक तरफ इकठा हो जाता है उसी तरह का कचरा यह पुलिस है  जो एक तरफ इकठा हो जाता है| जो कुछ थोड़ा बहुत अच्छा दिखाई दे रहा है वह नाक बचाने के लिए  ईमानदारी का नाटक ही है| किरण बेदी जैसी साहसी कही जाने वाली महिला सेवानिवृति के 5 साल बाद कहती है कि उससे रिश्वत मांगी गयी -जो स्वयं के साथ हुए अन्याय  का विरोध नहीं कर सके वह दूसरों को क्या न्याय दिल देंगी| पुलिस का मतलब पुलिस है चाहे उसका पद, जाति या वर्ग कुछ भी हो| इन्हीं कारणों से बिहार और उत्तर प्रदेश में पुलिस को बड़े लोक प्रिय नामों से जाना जाता है| पुलिस वाले राजनेताओं से भी अधिक कूटनीतिज्ञ होते हैं | पुलिस वाला यदि किसी प्रभाव में है तो वह आपका स्वागत सत्कार तो कर देगा, चाय नाश्ता दे देगा किन्तु फिर भी वह आपका काम कभी नहीं करेगा|

यह मेरा अनुभव है कोई कल्पना नहीं है| जमीन के फर्जी बेचान के मामले में जांच मेरे एक सहपाठी पुलिस निरीक्षक के पास थी और 3 साल तक उसमें कोई कार्यवाही नहीं हुई| बाद में वही फाइल मेरे एक सह कर्मी के बड़े भाई  के पास आ गयी किन्तु टस से मस नहीं हुई|  बाद में गियर लगाने पर ही गाड़ी आगे बढी| पुलिस  को ट्रेनिंग  में ही यह सब बताया जाता है – कैसे उत्पीडन करना है, किस प्रकार पैसा ऐंठना है,  कैसे गालियाँ बकनी हैं आदि आदि | वहां हवलदार होता है जो डी एस पी तक को गालियाँ बकता है और गलियां सुनते सुनते ये पुलिस वाले ढीठ हो जाते हैं | बाद में इन्हें बड़े अधिकारी या नेता गालियाँ बकें तो इन पर कोई ज्यादा असर नहीं होता है| यों तो पुलिस लोगों से हफ्ता लेती है किन्तु पत्रकार समुदाय को यह इस बात के लिए हफ्ता देती है कि वे उसके सराहनीय कार्यों को उजागर करें और बदनामी वालों को दबा दें| इसके लिए वे पत्रकारों तक समाचार स्वयम पहुंचा देते हैं अथवा छापा मरने के लिए जाते समय उन्हें सूचित कर देते हैं| तभी तो छापे के समाचार सचित्र आ जाते हैं |

एक रिटायर्ड पुलिस वाले ने बातचीत में बताया कि रिटायरमेंट के बाद सबसे ज्यादा दुर्गति उनकी ही होती है| समाज में उन्हें कोई सम्मान से नहीं देखता |यह पुलिस वालों को भी ज्ञान है | सी बी आई के एक भूतपूर्वक निदेशक फेसबुक पर हैं किन्तु उन्होंने अपनी पुलिस सेवा का खुलासा नहीं किया है| एक सेवानिवृत पुलिस महानिदेशक, जो पुलिस सुधार के नाम पर सुर्ख़ियों में हैं, से एक सेवा निवृत कनिष्ठ पुलिस अधिकारी ने पुलिस सुधार के प्रसंग में संपर्क करना चाहा किन्तु उन्होंने  समयाभाव बताकर मना कर दिया| किन्तु उन्ही महानिदेशक से जब 15 मिनट  बाद ही उसी कनिष्ठ ने एक विदेशी महिला के साथ जाकर भेंट की तो वे बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने न सिर्फ उन्हें चाय नाश्ते से स्वागत किया बल्कि दोपहर का भोजन भी करवाया!

भारत में पुलिस राज के पद सोपान और शासन तंत्र पर मजबूत पकड़

सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था दे रखी है कि किसी भी व्यक्ति पर उसकी सहमति के बिना नार्को या पॉलीग्राफ टेस्ट नहीं किया जाए| किन्तु यह आदेश कितना प्रभावी है कहना आसान नहीं होगा| हिरासत में व्यक्ति से पूछताछ के लिए पुलिस द्वारा थर्ड डिग्री इस्तेमाल किया जाना कोई नया नहीं है| फिर भी जब हिरासती व्यक्ति किसी प्रकार के नशे का आदी हो तो पुलिस के लिए यह कार्य और आसान है| नशीले पदार्थ और अवैध हथियार तो पुलिस के पास उपलब्ध रहते ही हैं| उसे मित्रतापूर्वक नशा करवाके पूछताछ की जाती है| यदि सामन्य नशे से बात न बने तो फिर बहुत ज्यादा नशा दिया जाता है और होश खोने पर उससे पूछताछ की जाती है|    

हिरासती व्यक्ति पर प्रयुक्त यातनाओं के मामले समय समय पर मिडिया के माध्यम से उजागर होते  रहते  है और पुलिस द्वारा नए–नए तथा अमानवीय  तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि मानवाधिकार पर 1955 में अंतर्राष्ट्रीय संधि के बावजूद इन्हें रोकने के लिए भारत में कोई कानून नहीं है और न ही हमारे संविधान में कहीं मानव अधिकार शब्द का उपयोग तक किया गया है| 6 करोड़ की आबादी वाले फिलीपींस ने इस सम्बन्ध में एक व्यापक कानून बना दिया है और भारत सरकार को इसके अनुसरण के लिए मैंने काफी समय पहले परामर्श भी दिया है| मारपीट तो पुलिस अपना अधिकार समझती है|

गुप्तांगों में मिर्ची, पेट्रोल, केरोसिन, कंकड़, डंडे आदि का इस्तेमाल तो सर्व विदित हैं और ये तरीके अब पुराने पड़ गए हैं| छत्तीसगढ़ में सोनी सोरी के साथ की गयी अमानवीय बर्बरता से पूरा देश परिचित है| संवेदनशील अंगों को बिजली के नंगे तार से स्पर्श भी पुलिस द्वारा प्रयोग किया जाता है| हवालात में बंद व्यक्ति को सिर्फ अधो वस्त्रो में रखा जाता है और उसे न पेशाब के लिए बाहर लाया जाता और न ही उसे पीने के लिए पानी दिया जाता बल्कि एक घडा हवालात में ही रख दिया जता है और हिरासती व्यक्ति को यह कहा जाता है कि वह उस घड़े में पेशाब कर ले और प्यास लगने पर वही पी ले| कई बार तो हिरासती व्यक्ति को एक दम निर्वस्त्र करके रखा जाता है और साथ में उसकी माँ, बहन, सास आदि को भी उसी हवालात में निर्वस्त्र रखा जाता है तथा हिरासती व्यक्ति को दुष्कर्म के लिए विवश किया जाता है|

पुलिस को जब लगे कि हिरासती व्यक्ति साधारण यातना से जुबान नहीं खोलेगा या अपराध (चाहे किया हो या नहीं ) कबूल नहीं करेगा और शिकायतकर्ता ने पुलिस को खुश कर दिया हो तो यातना के और उन्नत व बर्बर तरीके अपना सकती है| हिरासती व्यक्ति के मुंह पर मजबूत टेप चिपका दी जाती है, टेबल पर सीधा लेटा दिया जाता है, हाथ पीछे की ओर बाँध दिए जाते हैं| अब उसकी नाक में पाइप से पानी चढ़ाया जाता है, व्यक्ति का दम घुटने लगता है और कई बार तो सांस भी चढ़ जाती है जो काफी देर बाद लौटती है| मल-मूत्र का बलपूर्वक सेवन करवाना, गर्म तेल या ठन्डे पानी, सिगरेट के  टुकडे, तेजाब,  पानी में डुबोना, दुष्कर्म, खींचकर नाख़ून-दांत-केश निकालना, धूप या तेज रोशनी, प्लास्टिक की थेली से सर ढककर दम घोटना, नींद और विश्राम के बिना लम्बी पूछताछ, सार्वजानिक स्थल पर बदनामी, परिवार के सदस्यों को हानि की धमकी, गांधी कटिंग आदि पुलिस बर्बरता की कहानी के कुछ प्रचलित नमूने हैं|  

बर्बर पुलिस टांगों के बीच में चारपाई फंसाने व गुप्तांगों पर तेज चोट पहुंचाकर नपुंसक बनाने का कृत्य भी निस्संकोच कर देती है और चुनौती देकर हिरासती व्यक्ति को यह कहती है कि अब तुम्हारी बीबी किसी और की ही प्रतीक्षा करेगी| स्मरणीय है कि पुलिस बर्बरता से निपटने के लिए देश में कोई प्रभावी कानून नहीं है| मानवाधिकार आयोगों में भी जांच के लिए पुलिस अधिकारी ही हैं और वे भाई चारे के मजबूत बंधन में बंधे हुए अपनी बिरादरी के विरुद्ध कोई न्यायोचित व सही रिपोर्ट नहीं करते| हमारी पुलिस वैसे भी तथ्यों को तोड़ने-मरोड़ने में सिद्धहस्त और भ्रष्ट है| इस कारण आपराधिक मामलों में मात्र 2% को ही सजाएं होती हैं| जेल  में बंद हिरासती व्यक्तियों को पैसे के बदले सभी सुविधाएं उपलब्ध करवाना तो समय समय पर मिडिया में उजागर होता रहता है और यदि कोई कैदी जेल से इस बीच भाग जाए तो जेल के सरियों को बाद में लोहे की आरी से काटकर जेल तोड़ने के मामले का रूप दे दिया जाता है|

यह भारतीय लोकतंत्र की रक्षक की पुलिस की कहानी का एक अंश मात्र है जोकि अंग्रेजी शासन काल से भी ज्यादा शर्मनाक है| आम नागरिक की तो हैसियत ही क्या है जब नडियाद (सुशासन वाले गुजरात राज्य) में एक मजिस्ट्रेट को जबरदस्ती शराब पिलाकर पुलिस ने उसका सरे बाज़ार आम जुलूस निकाल दिया था व डॉक्टरों से फर्जी प्रमाण पत्र हासिल कर लिया और सुप्रीम कोर्ट ने मामले में कहा कि गुजरात प्रशासन पुलिस से डरता है| किन्तु किसी भी सरकार ने गत 67 वर्षों से इसमें सुधार का कोई निष्ठापूर्वक प्रयास नहीं किया है क्योंकि भारत में सभी सरकारें पुलिस की बर्बरता और भय उत्पन्न करने वाली कर्कश आवाज की ताकत पर ही चल रही हैं –पार्टी या लेबल चाहे कुछ भी रहा हो|

Mani Ram Sharma
maniramsharma@gmail.com

No comments:

Post a Comment