अजय कुमार, लखनऊ
मोदी सरकार के दो वर्ष पूरे करने के अवसर पर दिल्ली की बजाये पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैली हो तो कुछ समझ में नहीं आता है। आखिर अपनी सरकार की खूबियां गिनाने के लिये दिल्ली से अच्छा ‘प्लेटफार्म’ कहां मिल सकता था, जहां देश-विदेश का मीडिया मोदी को हर समय ढंूढता रहता है,लेकिन उनसे बात करने की बजाये मोदी ने सहारपुर आना ज्यादा बेहतर समझा। मोदी के करीबी इसे मोदी स्टाइल पॉलटिकस कहते है। मगर राजनैतिक जानकार इसे बीजेपी का चुनावी शंखनाद की संज्ञा दे रहे हैं।रैली मोदी सरकार के दो वर्षौ के कामकाज की जानकारी जनता को देने के लिये बुलाई गई थी, लेकिन रैली में चर्चा यूपी चुनाव की हो रही थी। मंच पर विराजमान तमाम नेता एक सुर में जनता से यूपी में बीजेपी सरकार बनाने का आशीर्वाद मांग रहे थे तो मोदी अपने आप को यूपी का बताकर विरोधियों को अपनी शैली में सियासी संकेत दे रहे थे। शायद बिहार का दर्द मोदी भूले नहीं है।
बिहार चुनाव के समय लालू-नीतीश महागठबंधन के नेताओं ने मोदी को बाहरी बताकर उन पर खूब हमला किया था, जिसका प्रभाव वहां के नतीजों में भी देखने को मिला था। चाहें गन्ना किसानों की समस्या हो या किसानों की सिंचाई और बिजली की मुश्किलें, सूखे का मसला हो या फिर प्राकृतिक आपदा में फसलों के नुकसान का विषय अथवा गांव-देहात में शिक्षा और स्वास्थ सुविधाओं की परेशानी, मोदी ने हर उस मसले को हवा दी जो किसानों की दुखती रग थे। उन्होंने गन्ना किसानों के बकाया भुगतान को लेकर चीनी मिल मालिकों को चेतावनी भी दी। वर्ष 2022 तक किसानों की आय दो गुनी करने का दावा भी मोदी की तरफ से किया गया। ऐसा लग रहा था मोदी पूरी तरह से किसान कार्ड खेलने का मन बनाकर आये थे। फसल बीमा, किसानों की जमीन का स्वास्थ्य कार्ड तैयार करने जैसी योजनाओं के बारे में भी किसानों को बताया गया। मोदी ही नहीं उनके मंत्री भी किसानों के दुखों को कम करने को आतुर दिखे। गन्ना किसानों का पॉपुलर की खेती के प्रति बढ़ते रूझान पर गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने चिंता जताते हुए पॉपुलर की खेती करने वालें किसानों के लिये भी कई उम्मीद भरी बातें कहीं। राजनाथ सिंह ने अपने आप को किसान का बेटा बताकर किसानों के साथ जोड़ने का प्रयास किया।राजनाथ ने किसानों से बीजेपी का 14 वर्ष का वनवास खत्म करने की बात कही।
पीएम मोदी बेहद सधे हुए तरीके से किसानों के ऊपर अपना प्रभाव ढालने की कोशिश कर रहे थे। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि किसान एक बड़ा वोट बैंक है, जिसे अभी तक पूरी तरह से कोई सहेज नहीं पाया है। मोदी टीम की किसान वोटरों पर लम्बे समय से नजर है। वह किसानों को लुभाने के लिये कोई भी मौका खोना नहीं चाहते हैं। किसानों को अपनी दो साल की सरकार के कामकाज का हिसाब देते हुए मोदी पूरी तरह से किसानमय दिखे।
बहरहाल, मोदी और अमित शाह की टीम तो यूपी में पूरी ताकत झोंके हुए हैं,लेकिन समस्या यह है कि जनता की नजरों में यूपी के बीजेपी सांसद पास होते नहीं दिख रहे हैं। मतदाताओं से उनका मिलना-जुलना न के बराबर है। सांसद अपने क्षेत्र में कम ही रुकते हैं। मोदी सरकार की योजनाओं की जानकारी जनता तक पहुंचाने का जिम्मा भाजपा के सांसदों का भी है, लेकिन जनता का यही रोना है कि मोदी राज में योजनाएं तो तमाम बन रही हैं,लेकिन इसका फायदा कैसे उठाया जा सकता है, यह बताने वाला कोई नहीं है। जनता की शिकायत को अनदेखा नहीं किया जा सकता है।कई बार मोदी खेमें से भी ऐसी खबरें आती रहती हैं कि पीएम अपने सांसदों के कामकाज से संतुष्ट नहीं हैं। यहां तक की मोदी की महत्वाकांक्षी आदर्श ग्राम योजना, प्रधानमंत्री मुद्रा कोष, जनधन योजना, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, उज्जला योजना जैसे कार्यक्रमों में भी सांसद रूचि नहीं दिखा रहे हैं। कालाधन जैसे मसलों पर विपक्ष मोदी सरकार पर हमेशा हमलावर रहता है, परंतु बीजेपी नेता इसका माकूल जवाब नहीं दे पाते हैं। महंगाई पिछले ढेड़ वर्षो से स्थिर थी या फिर बहुत मामूली बढ़ोत्तरी हुई थी, लेकिन मंहगाई के मुद्दे को बढ़ा-चढ़ाकर विपक्षी दलों के नेता आसानी से मोदी सरकार को निशाना बना रहे हैं। जबकि महंगाई बढ़ने के सबसे बढ़े कारणों में से एक कालाबाजारी पर नियंत्रण करना राज्य सरकार का जिम्मा है। यूपी के सांसदों और नेताओं के ढीले-ढाले रवैये के कारण यहां की जनता से मोदी के दो साल के कामकाज पर अन्य राज्यों की तुलना में ज्यादा समर्थन नहीं मिल रहा है। मोदी सरकार की कामयाबी पर अखिलेश सरकार की नाकामी का भी ठीकरा फूट रहा है। बुंदेलखंड हो चाहें किसानों की दुर्दशा का मामला केन्द्र जो करना चाहता है वह अखिलेश सरकार के कारण कर नहीं पा रहा है। विवादित बोल बोलने वाले भाजपा नेताओं ने भी मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ाने का काम किया। मोदी के विकास कार्य जन-जन तक पहुंचे इसके लिये यूपी भाजपा नेताओं की भागीदारी न के बराबर है जो 2017 के चुनाव के लिये चिंता की बात है।
यह सच है कि बीजेपी के सांसद मोदी-शाह की कसौटी पर खरे नहीं उतर रहे हैं, लेकिन कुछ कमियां आलाकमान की भी है। दो वर्षो में मोदी टीम प्रदेश को कोई ऐसी लीडरशिप (सीएम का चेहरा)नहीं खड़ी कर पाई है जिसके सहारे 2017 के चुनाव जीते जा सकें। इन दो वर्षो में अल्पसंख्यकों के बीच मोदी के कामकाज के अच्छे संकेत गये है। मगर नीचले स्तर के नेताओं की बयानबाजी इस पर भारी पड़ रही है। भ्रष्टाचार पर लगाम सबसे बढ़ा प्लस प्वांइट,लेकिन काला धन मोदी सरकार के लिये सबसे बढ़ा ड्रा बैक बनता जा रहा है।स्मार्ट सिटी का भी प्रदेश में शोर सुनाई पड़ रहा है, लेकिन बुद्धिजीवीयों को लगता है स्मार्ट सिटी जैसी योजनाओं के बजाये मोदी सरकार को पूरे प्रदेश का समान रूप से विकास करना चाहिये।
लेखक अजय कुमार यूपी के वरिष्ठ पत्रकार हैं. संपर्क : मो-9335566111
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