डा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
आगुस्ता वेस्टलैंड का मामला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है । भारत सरकार ने २०१०में इटली की एक कम्पनी की आगुस्ता वेस्टलैंड से १२ हैलीकाप्टर ख़रीदने का अनुबन्ध किया । हेलीकाप्टरों की वायुसेना को ज़रूरत थी । ये हैलीकाप्टर अति विशिष्ट व्यक्तियों के लिए चाहिए थे ताकि अति ख़तरनाक स्थान पर भी उन्हें सुरक्षित ले जाया जा सके । किस प्रकार के हैलीकाप्टर चाहिए , इस पर ज़्यादा ध्यान देने की बजाए , किस से ख़रीदने चाहिए इस पर निर्णय लेने वाली कमेटी ने ज़्यादा ध्यान दिया । उस समय वायु सेना प्रमुख एस पी त्यागी थे । जब एक बार यह निर्णय हो जाए कि माल क़िससे ख़रीदना है, फिर माल की स्पैसिफिकेशन बदलते भला कितनी देर लगती है ? फ़ैसला हो गया था कि हैलीकाप्टर आगुस्ता बेस्टलैंड का ही ख़रीदा जाएगा । बस फिर क्या था । उसी के हैलीकाप्टर को ध्यान में रख कर सरकारी फ़ायलों में तस्वीरें बनने लगीं ।
बाक़ी सारे प्रतिद्वन्द्वी देखते देखते मुक़ाबले से बाहर हो गए । यानि एक कम्पनी को लाभ देने के लिए ही ख़ास तरीक़े से फ़ायलें तैयार की गईं । इस सौदे को अंतिम रूप देने वालों में वैसे तो अनेक बाबू लोग थे ही लेकिन कहा जाता है की तीन बाबू एम के नारायण , बी वी वांचू और शशिकान्त शर्मा उनमें से प्रमुख थे । क्या इसे संयोग ही कहा जाए कि रिटायर होने के बाद इनमें से दो को राज्यपाल और और तीसरे को भारत का लेखा महानियंत्रक नियुक्त कर दिया गया । उन दिनों वायु सेना प्रमुख त्यागी के दूर नज़दीक़ के रिश्तेदारों की भी बिज़नेस में अचानक रुचि बढ़ने लगी । ऐसे मामलों में दलालों की फ़ौज इधर उधर सूँघने लगती है । ऐसे ही दलालों ने त्यागी के दूर नज़दीक़ के रिश्तेदारों से रिश्तेदारियाँ बनानी शुरु कर दीं । लेकिन बड़े व्यवसायों में ऐसी रिश्तेदारियाँ लक्ष्मी जी की हाज़िरी में ही बनती हैं।
दरअसल भारतीय मीडिया में यह केस १२ फरवरी २०१३ से चर्चित होने लगा था जब इटली पुलिस ने आगुस्ता वेस्टलैंड की मूल कम्पनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी को रिश्वत देने के मामले में गिरफ़्तार कर लिया । आरोप था कि भारत से हैलीकाप्टर ख़रीदने का आदेश प्राप्त करने के लिए कम्पनी ने रिश्वत दी है । अब भारत सरकार और उस का नियंत्रण करने वाली सोनिया कांग्रेस सचमुच दुविधा में फँस गई । यदि इटली की कम्पनी के अधिकारियों को रिश्वत देने के मामले में कहीं सज़ा हो गई फिर सारा भेद खुल जायेगा और जिन्होंने इस कम्पनी से भारत में रिश्वत ली है उनका पर्दा भी खुल जायेगा । आने वाले इस तूफ़ान को रोकने की रणनीति बनाई गई । उसके तहत ही इटली में कम्पनी के मुख्य अधिकारी की गिरफ़्तारी के कुछ दिन बाद ही उस समय के रक्षा मंत्री ने भी इस पूरे मामले की जाँच के आदेश दे दिए । कोई शक न रहे इसलिए जाँच का काम भी सी बी आईँ के हवाले कर दिया गया । सी बी आई ने अनेक व्यक्तियों के ख़िलाफ़ एफ़ आई आर दर्ज कर ली जिस में पूर्व वायु सेना प्रमुख त्यागी के साथ साथ उनके तीनों भाईयों का नाम भी था । त्यागी पर आरोप है कि आगुस्ता की लक्ष्मी दलालों के माध्यम से त्यागियों के घरों में भी निवास करने लगी । त्यागी चाहे वायु सेना प्रमुख थे , लेकिन यह लक्ष्मी पूजा अकेले करने की उनकी भी हिम्मत नहीं थी । कहा जाने लगा कि कि इटली की कम्पनी के हक़ में इस तख्ता पलट में सरकार चला रहे उन लोगों का हाथ हो सकता है , जिनके निर्देश पर सरकार चलती है । आगुस्ता वेस्टलैंड ने हिन्दुस्तान में कुछ लोगों को अपना माल ख़रीदने के लिए रिश्वत दी है , इसकी चर्चा इतालवी अख़बारों में भी होने लगी ।
बचाव की इसी रणनीति के तहत भारत सरकार ने आगुस्ता के साथ अपना ३६०० करोड़ का यह कांन्ट्र्क्ट जनवरी २०१४ को रद्द कर दिया क्योंकि अब तक सब जगह यह चर्चा होने लगी थी कि कम्पनी ने यह कांन्ट्र्क्ट प्राप्त करने के लिए भारतीय राजनेताओं और बाबुओं को ३६० करोड़ रूपए की रिश्वत दी है। बचाव की इसी रणनीति के तहत सोनिया कांग्रेस ने २७ फरवरी २०१३ को इस रिश्वत कांड की जाँच के लिए संयुक्त संसदीय समिति के गठन की योजना राज्य सभा में रखी । अधिकांश विरोध पक्ष यह कहते हुए सदन से बाहर हो गया कि योजना जाँच के लिए नहीं बल्कि जाँच को दबाने के लिए गठित की जा रही है । उनका कहना था कि जिस तरह का यह रिश्वत घोटाला है उसमें संसदीय समिति कुछ नहीं कर सकती । क्योंकि इस अन्तर्राष्ट्रीय रिश्वत मामले की जाँच की तहँ तक पहुँचने के हथियार संसदीय समिति के पास नहीं हो सकते ।
सरकार ने रिश्वत लेने वालों को बचाने के लिए एक और गहरी रणनीति बनाई । उस समय के रक्षा मंत्री ने २५ मार्च २०१३ में सिंह गर्जना की कि इटली की कम्पनी ने कुछ लोगों को रिश्वत दी है । हम उसकी तह तक पहुँचेंगे । लगा कि सरकार ईमानदार है । लेकिन सरकार की रणनीति दूसरी थी । यदि किसी प्रकार से आगुस्ता वेस्टलैंड को दिया गया सारा पैसा किसी तरीक़े से वापिस बसूल लिया जाए तो कम से कम देश के लोगों को यह तो कहा ही जा सकता है कि हमने सारा पैसा बसूल लिया है । देश को कोई नुक़सान नहीं हुआ । इसलिए केस रफ़ा दफ़ा । इतने रिश्वत घोटाले देखने का आदी यह देश कम से कम सरकार की पीठ ठोकेगा कि सरकार ने पैसा वापिस बसूल लिया । इस हेतु भारत सरकार ने कम्पनी द्वारा भारत और इटली के बैंकों में जमा करवाई गई बैंक गारंटियों को कैश करवा कर कम्पनी को दी गई सारी राशि वापिस प्राप्त कर ली । सरकार ने इसे अपनी विजय घोषित कर जश्न मना लिया । लेकिन सरकार जाँच के मामले में कितनी गंभीर है , यह उसी समय पता चल गया जब सी बी आई ने एम के नारायणा और बी वी वांचू से पूछताछ करनी चही तो ए के एंटनी के ही दूसरे साथी कपिल सिब्बल दीवार बन कर खड़े हो गए । राज्यपाल से पूछताछ ! यह तो अपने आप में ही गुनाह है । इससे सारी भारतीय व्यवस्था नष्ट हो जाएगी । ध्यान रहे हैलीकाप्टर ख़रीद मामले में इटली की कम्पनी के पक्ष में निर्णय लेने वालों में से ये दोनों सज्जन प्रमुख थे । तभी यह चर्चा चलने लगी थी कि कहीं इन्हें जाँच से बचाने के लिए ही तो राज्यपाल नहीं बनाया गया था ?
सोनिया कांग्रेस के खेमे में तब ख़ुशी की लहर दौड़ गई जब इटली की निचली अदालत ने अक्तूबर २०१४ में इतालवी कम्पनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी को दोषमुक्त क़रार दिया । अदालत ने पूर्व वायुसेना प्रमुख त्यागी को भी दोषमुक्त क़रार दिया। भारत में जिन्होंने इस इतालवी कम्पनी ने करोड़ों की रिश्वत खाई थी , वे भी प्रसन्न हो गए । मामला रफ़ा दफ़ा हो गया है । भारत सरकार ने अपनी चतुराई से आगुस्ता वैस्टलैंड को दिया गया सारा पैसा बसूल लिया और इतालवी कोर्ट में यह भी सिद्ध नहीं हुआ कि कम्पनी ने कोई रिश्वत दी है । दलालों के घरों में घी के दिए जले । सोनिया कांग्रेस भी ख़ुश हुई। आख़िर इटली ने ही लाज ढंक दी। जहाँ तक भारतीय अदालत में चलने वाले केस का सवाल था , एक तो उसकी गति कछुए की और दूसरे जब इटली की अदालत रिश्वत देने के सबूत नहीं जुटा सकी तो रिश्वत लेने वालों तक भला कोई कैसे पहुँच पायेगा?
लेकिन सोनिया कांग्रेस की यह ख़ुशी बहुत ज़्यादा देर तक नहीं टिक पाई । एक साल के भीतर ही ८ अप्रेल २०१६ को इटली में मिलान की बड़ी अदालत ने छोटी अदालत के फ़ैसले को उलट दिया। अदालत ने अपने २२५ पृष्ठ के फ़ैसले में लिखा कि रिश्वत दी गई और इसके लिए कम्पनी के मुख्य अधिकारी ओरसी को चार साल की क़ैद की सज़ा भी सुना दी। न्यायालय ने कहा कि कम्पनी ने भारत के राजनेताओं, नौकरशाहों और वायुसेना के अधिकारियों को तीन सौ लाख यूरो की रिश्वत दी गई । प्रश्न है कि यह रिश्वत किसको दी गई? इटली के न्यायालय ने दलालों से मिले प्रमाणों के आधार पर अनेक नामों की चर्चा की है। उसमें प्रमुख नाम सोनिया गान्धी और उनके राजनैतिक सलाहकार अहमद पटेल का नाम उभर कर आया है। इटली के अख़बारों में इन दोनों के चित्र प्रकाशित हो रहे हैं। यह भी आरोप लगा है कि भारतीय पत्रकारों को अपने पक्ष में करने के लिए भी कम्पनी ने ४५ करोड़ की रिश्वत की व्यवस्था की गई।
सोनिया कांग्रेस की यह सारा क़िस्सा इटली में छपने के बाद हालत ख़राब हो गई लगती है। इसलिए जब भी कोई सोनिया गान्धी का नाम इस रिश्वत घोटाले में लेता है तो उसके इर्द गिर्द के कांग्रेसी उछलते हैं। सोनिया गान्धी स्वयं भी लगभग धमकियों की भाषा में उतर आई हैं। उनका कहना है कि वह किसी से नहीं डरतीं । इसके बाद उन्होंने भावनात्मक रुख़ भी अपना लिया है । उनका कहना है कि उनकी मौत के बाद उनकी राख भारत में ही उनके परिजनों के साथ मिलेगी। उन्होंने यह भी कहा है कि इटली में उनकी ९३ साल की माँ रहतीं हैं जिन पर उनको गर्व है । लेकिन सोनिया गान्धी अच्छी तरह जानती हैं कि जिन बातों का वह ज़िक्र कर रही हैं वे किसी भी न्यायालय के बिचाराधीन नहीं हैं । न इटली में और न ही भारत में । न्यायालय में जो मामला विचाराधीन है वह यह है कि ३६० करोड़ कि रिश्वत भारत में किस किस के खाते में आई। इसमें वे कुछ सहायता करें या कुछ रोशनी डालें तो इस देश के लोग सचमुच उनके शुक्रगुज़ार होंगे । बाक़ी क़ानून तो अपना काम करेगा ही।
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