प्रिय प्रकाश मिश्रा
हमे सचमुच नही पता कि आप वाकई हाड़-मांस के बने कोई इंसान हो या विक्रम राव के पैदा किए हुए कोई भूत-पिशाच क्योंकि अपने कुकर्मों को ढंकने के लिए एसा करना उसके लिए स्वाभाविक है। हां अगर आप सच में कोई हैं तो फिर हमें आपको बधाई देनी चाहिए इस तरह की मनगढ़ंत और फरजीवाड़े से भरी कहानी रचने के लिए।
आप वाकई पारलौकिक शक्तियों से भरे कोई इंसान हो जिसे सुदूर पूर्व उड़ीसा के शहर बहरामपुर में बैठ कर चेन्नई में हुयी किसी घटना की इतनी ज्यादा जानकारी (ख्वाबों में या स्वंय की गढ़ी हुयी) मिल गयी है। यह आपकी गलती नही है दरअसल आपको रचने वाले विक्रम राव एक बाध्यकारी मनोविकार (Obsessive Compulsive Disorder) के शिकार हैं जिसे सपने में भी परमानंद पांडे, हेमंत तिवारी और के असदउल्लाह सताते हैं (कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो की पहली लाइन से साभाऱ)। उसे नहीं भूलना चाहिए कि उसका भ्रष्टाचार और कदाचार खुद उसी के लिए एक बुरा स्वप्न बनने वाला है।
पहले तो आपको साफ कर दूं कि जिस किताब का आप जिक्र कर रहे वह सुश्री जयललिता से ताल्लुक ही नही रखती न ही उन पर है। उक्त पुस्तक सचना के अधिकार के तहत हासिल किए गए कुछ तथ्यों का संकलन भर है। उक्त सभी जानकारियां खुद सरकारी विभागों ने दी है जिसकी सत्यता पर आजतक किसी ने भी कोई सवाल नही खड़ा किया है।
सूचना अधिकार कार्यकर्त्ता हमारी चेन्नई यूनियन आफ जर्नलिस्ट (सीयूजे) का सदस्य और इसी के चलते हमें सीयूजे की ओर से आयोजित इस पुस्तक के विमोचन का हिस्सा बनने में गर्व महसूस हुआ। सत्ता की सीढ़ियों को गिनने वाले और हमेशा उसकी ओर लपलपायी निगाहें रखने वाले आपके नियमता विक्रम राव जैसे लोग भ्रष्टाचार से लड़ने का क्या साहस जुटा सकेंगे।
आपके द्वारा (जिसकी गुंजाइश न के ही बराबर) लिखे पत्र की चंद लाइनें कहती हैं कि आपको (यानी हम लोगों) को तमिलनाडू के चुनावी नतीजे देख कर शर्म महसूस हो रही होगी। महोदय ये निहायत ही कायराना, टुकाचीपन से भरा व हमेशा चरण चापक की भूमिका में रहने वाले व्यक्ति का बयान है।
इस चुनाव के नतीजों से शर्म जैसी बात का क्या मतलब है। क्या तमिलनाडू में चुनाव लड़कर हार जाने वाले सभी लोगों को शर्ण महसूस करना चाहिए। आपके लिए लोकतंत्र की क्या यही परिभाषा है। बिना परिणाम की परवाह के मूल्यों व कारणों के लिए लड़ना ही तो लोकतंत्र की सुंदरता है। पत्रकारिता का उद्देशय भी तो लोगों के हक के लिए लड़ना ही है न कि दल्लागिरी करना। जो हमने किया वह पहली श्रेणी में आता और जो विक्रम राव कर रहे वह दूसरी श्रेणी में। हां लोकिन उनकी तो आदता में शुमार है गिरगिट की तरह रंग बदलना और सत्ता शीर्ष पर बैठे लोगों के तलवे चाटना। शायद यही कारण है कि वो कांग्रेस से लेकर बीजेपी, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यनाइटेड सभी दलों से नकद प्राप्ति कर पाने में सफल रहे हैं।
आज श्री विक्रम राव सुश्री जयललिता का चारण गान कर रहे हैं मगर आपको याद दिला दें कि कुछ ही साल पहले वह छांट-छांट कर गालियों से जयललिलता को नवाजते हुए करुणानिधि को सबसे बड़े कद का नेता बता रहे थे। खैर ये उनका चरित्र है और दूसरी ओर परमानंद पांडे हैं जो कि संघर्षों से तप कर निखरे और आग के दरिया से निकल कर आए हैं।
इसीलिए जब आपने कहा कि पुस्तक का विमोचन कर परमानंद पांडे, हेमंत तिवारी व के असदउल्लाह ने तमिलनाडू के पत्रकार जगत को शर्मिंदा किया है तो यह न केवल दुर्भाग्यपूर्ण लगता है बल्कि विक्रम राव और उनके चंपुओं की कलई भी खोलता है।
संगठन से बाहर का रास्ता दिखाए जाने के बाद भी विक्रम राव बेशर्मी के साथ इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट (आईएफडब्लूजे) के नाम व बैनर का बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं। चिंता न करें जल्दी जल्दी ही इस बेशर्म और बेगैरत व्यक्ति, जो कभी पत्रकार भी था, के खिलाफ उचित कारवाई होगी। अपने स्वार्थ और लाभ के लिए पत्रकारिता को बेंच देने वाले इस व्यक्ति ने अभ आईएफडब्लूजे को बेंचने की कोशिश शुरु की है जो हम होने नही देंगे। तमाम विधवा प्रलाप के बाद भी देश का कोई पत्रकार आज इसके साथ खड़ा होने को तैयार नही है और इसे हर किसी ने बहिष्कृत कर रखा है।
जहां तक हमारे कोटला (दल्ली) के दफ्तर की बात है तो आप (गर वाकई में इस धरा के इंसान हैं तो) कभी भी वर्किंग डे में आ जाएं। यह दफ्तर इंडियन एक्सप्रेस कार्यालय के ठीक पीछे हैं जिसके आप बहरामपुर से संवाददाता होने का दावा कर रहे हैं। हालांकि इंडियन एक्सप्रेस के दिल्ली व भुवनेश्वर आफिस से मिली जानकारी के अनुसार प्रकाश मिश्रा नाम का कोई व्यक्ति उनके यहां संवाददाता नही है। पर आखिरकार विक्रम राव ही तो हैं न.. जिनके लिए कुछ भी असंभव नही जौ पर्यटकों, ट्रेड यूनियन विरोधी तत्वों, रिटायर पत्रकारों, ठेकेदारों, दुकानदारों के दम पर कोई भी संगठन बना चला सकते हैं।
आपके सुश्री जयललिता को लिखे पत्र के विषय में हम केवल इतना ही कह सकते हैं कि चेन्नई में उक्त पुस्तक के विमोचन के मौके पर मौजूद आईएफडब्लूजे के नेतागण किसी भी जांच से प्रसन्न ही होंगे। हां आईएफडब्लूजे के बारे में आपके दावे के बारे में आपके ही पत्र में लेटर हेड में दिए गए फोन नंबर से लेकर पते तक की तस्दीक कर जाना जा सकता है।
आपको तमाम शुभेच्छाओं के साथ
आपका
के असदउल्लाह, सचिव दक्षिणी
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