May 29, 2016

नवभारत जीएम बिलासपुर को हो सकती है जेल!

कर्मचारी को प्रताडि़त करने और बेवजह नौकरी से निकालने के आरोप में बिलासपुर नवभारत के महाप्रबंधक सुजीत बोस पर कड़ी कार्यवाही हो सकती है। मिली जानकारी के अनुसार एमपी मिश्र को १ अगस्त २०१४ को बिना पूर्व सूचना दिए और बिना किसी कारण के नौकरी से निकाल दिया गया था। जिसके विरोध में उन्होंने लेबर कोर्ट की शरण ली। अंतत: फैसला उनके पक्ष में हुआ। एमपी मिश्र नवभारत रायगढ़ में विशेष संवाददाता के पद पर कार्यरत थे। लेकिन केस जीतने के बाद भी नवभारत के महाप्रबंधक सुजीत बोस ने अपनी अकड़ दिखाते हुए कर्मचारी को नौकरी नहीं दी। जिसकी शिकायत श्रमायुक्त से की गई जहां प्रकरण चल रहा है।


मानसिक रूप से प्रताडि़त किया जा रहा है 

बिना कारण नौकरी से निकालने और फैसले के बाद भी कोर्ट का आदेश ना मानने से हो रही मानसिक पीड़ा और जग हंसाई के विरोध में अंतत: एमपी मिश्र ने सीजेएम कोर्ट की शरण ली। और 200 दं.प्र.सं. अपराध अंतर्गत धारा 500, 501, 502, 194, 195, 211 भा.द.वि के तहत शिकायत की। जिस पर संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने प्रकरण को पुलिस जांच के लिए भेज दिया। बताया जाता है कि पुलिस ने जांच में एमपी मिश्र द्वारा लगाए आरोप को सही पाया। और अनावेदक प्रमोद अग्रवाल पूर्व शाखा प्रमुख नवभारत रायगढ़, महाप्रबंधक सुजीत बोस, संपादक निशांत शर्मा पर कर्मचारी द्वारा लगाए गए आरोप के खंडन में कोई बात नहीं रख पाए।

अब पेपर की पहुंच दिखाओ
कानूनी रूप से खुद को हारते देख सुजीत बोस ने एक रिपोर्ट संतोष मेहर को रिपोर्टिंग कार्य छोड़ुवाकर कोतवाली में बैठा दिया है जिसे यह जिम्मेदारी दी गई है कि वह एमपी मिश्र को किसी तरह किसी केस में फंसाए और किसी भी तरह से रायगढ़ से बाहर का रास्ता दिखाए। नतीजन २४ मई २०१६ की रात ६ बजे से ९ बजे तक क्राइम रिपोर्ट कोतवाली में बैठे रहे और पत्रकार एमपी मिश्र को किसी केस में फंसाने की योजना पर चर्चा करते रहे। चर्चा के अनुसार पुलिस ने न्याय व्यवस्था की दुहाई देकर ऐसा करने से मना किया। लेकिन फिर भी पुलिस पर दबाब बनाने का प्रयास जारी है। खैर जो आरोप सुजीत बोस पर लगे हैं और जिस तरह कानून व्यवस्था का मजाक उड़ाया जा रहा है वैसे में जल्द ही कोर्ट द्वारा उनके खिलाफ वारंट जारी किया जा सकता है। और यदि पीडि़त पत्रकार जमानत का विरोध किया तो जमानत मिलना भी मुश्किल हो सकता है। क्योंकि श्रम न्यायालय के आदेश को ना मानने के कारण साफ कोर्ट की अवहेलना और मानसिक प्रताडऩा को सिद्ध करता है। चूंकि श्रम न्यायालय ने फैसला ९ मार्च २०१६ को दिया था और कहा था कि एक माह में आदेश का पालन हो जाना चाहिए। जो नहीं हुआ इधर अपील की अवधि भी खत्म हो गई है। ऐसे में एमपी मिश्र और जीएम सुजीत बोस के बीच चल रहा विवाद कहां खत्म होता है यह आने वाला समय ही बताएगा। संभवत: कंपनी का उच्च प्रबंधन ही हस्तक्षेप कर मामला सुलझा सकता है।

swargeshmishra
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