-अरुण श्रीवास्तव-
सीवान
में पत्रकार की हत्या कर दी गई। आयेदिन पत्रकारों पर हो रहे अत्याचारों की
जानकारी अखबारों सहित विभिन्न माध्यमों से मिलती रहती है। ताजा मामला
हिंदुस्तान समाचार पत्र के सीवान ब्यूरो चीफ राजदेव की है। बदमाशों ने
उन्हें शाम साढे सात बजे रेलवे स्टेशन के समीप गोली मारी थी। अब सवाल यह भी
तो उठता है कि पूरी दुनिया में लिखने पढने वाले पेशे से जुडे (पत्रकार और
लेखक) लोग ही क्यों मारे जा रहे हैं। पिछले साल आतंकवादियों ने अखबार के
कार्यालय में घुसकर एक कार्टूनिस्ट की हत्या कर दी तो मुंबई में अंधविश्वास
के खिलाफ लडने वाले लेखक की। गत वर्ष इलाहाबाद दैनिक जागरण के पत्रकार
श्यामैन्द्र कुश्वाहा का बदमाशों ने अपहरण कर लिया था तो शराब माफिया ने
अमर उजाला के पत्रकार उमेश डोभाल का।
"कमेटी टू प्रोटेक्ट
जर्नलिस्ट " के अनुसार देश में 1992 से अब तक 91 पत्रकार मौत के घाट उतारे
जा चुके हैं। सिर्फ 4% मामलों में ही इंसाफ हो पाया हो, वो भी आधा-अधूरा।
96% मामलों माफी मिल गई है। २३% मामलों में कारण का पता नहीं चल पाया,
सिर्फ 38% मामलों में जान लेने की वजह सामने आ पाई। इन हत्याओं में
88%पत्रकार प्रिंट मीडिया के थे। 4% रेडियो के तो इतने ही इंटरनेट
पत्रकारिता से जुडे थे। 12% पत्रकारों को बंधक बनाया गया तो 44% को धमकाया
गया। 4% पत्रकार ऐसे हैं जिन्हें यातनाएं दी गई। भारत उन देशों की सूची में
14वें स्थान पर है जहां मरने के बाद भी उसके परिजनों को इंसाफ नहीं मिल
पाया। इस सूची में सबसे ऊपर सोमालिया और इराक है। इन सभी देशों में 33%
मामले अब भी अनसुलझे हैं। इन देशों में जिन पत्रकारों को निशाना बनाया गया
हो उनमें से 96% स्थानीय है।
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