जून की छुट्टियों में न्यायिक कार्य करने की फिर मांगी अनुमति
The right to speedy trial is first mentioned in the landmark document of english law " The Magna carta ". जिस देश की न्याय पालिका में ३ करोड़ से ज्यादा केशो की फाइलें लंबित हो , जिस देश में जिला न्यायालयों में ७३००० लोगो पर एक जज हो जो कि अमेरिका से सात गुना कम हैं ,जिस देश में औसतन प्रत्येक जज के पास १३५० केसेज पेंडिंग हो, जिस देश में एक जज एक माह मे औसतन ४३ केसेज का ही निपटारा कर पाता हो , उस देश में न्याय की परिकल्पना के लिए स्पीडी जस्टिस के अलावा और कोई दूसरा विकल्प नहीं हो सकता। भारत में जिला न्यायालयों में पेंडिंग केशज में दो तिहाई क्रिमिनल केश हैं और उनमे भी प्रत्येक १० में से १ केश १० साल से ज्यादा समय से पेंडिंग हैं। देश भर के न्यायालयों में इतनी बड़ी पेंडेंसी को देखते हुए यदि सभी न्यायाधीशों के खाली पदों को भर भी दिया जाए तो भी न्यायपालिका में फाइलों के इस अम्बार को निपटाने के लिए स्पीडी जस्टिस की अवधारणा को अपनाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प दिखाई नहीं पड़ता। यदि इसी गति से काम चलता रहे तो भारत में जिला न्यायालयों में सिविल केशज कभी ख़त्म नहीं होंगे और क्रिमिनल केशो को ख़त्म करने में ३० साल लग जाएंगे। नेशनल जुडिशियल डाटा ग्रिड ( एन जे डी जी ) के ये ताजा आंकड़े चौंकाने वाले हैं।
"Seeing this grave situation former CJI HL Dattu had asked the chief justice of all high court to ensure expeditious disposal of cases pending for five years or more."
Justice krishna iyer while dealing with the bail petition in Babu singh v.State of U.P. remarked"Our justice system even in grave cases, suffers from slow motion syndrom which is "lethal to Fair trial" whatever the ultimate decision.Speedy justice is a component of social justice since the community, as a hole, is concerned in the criminal being candignly and finally punished within a reasonable time and the innocent being absolved from the inordinate ordeal of criminal proceedings."
देश की न्याय पालिका में लम्वित केशो के इस पहाड़ के बीच एक ऐसा भी जज है जो देश भर में आज स्पीडी जस्टिस का पर्याय बन चुका है। उनको देश भर में जजमेंट मशीन के नाम से जाना जाता है। उनके जनपद न्यायाधीश के पद के कार्यकाल पर यदि एक नजर डाले तो उनके त्वरित न्याय के अभियान को समझने में देर नहीं लगेगी। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में मई २००९ से दिसंबर २००९ तक के ८ माह के कार्यकाल में उन्होंने १५३ क्रिमिनल और 237 सिविल कसेज का निपटारा किया जबकि इसके पूर्व में सितम्बर २००८ से अप्रैल २००९ तक मिर्जापुर जिले में ही जिला जज रहे रमेश चन्द्र ने ५८ क्रिमिनल और ६८ सिविल केशज को निपटाया। इससे पूर्व मिर्जा पुर में ही नवम्बर २००६ से जून २००७ तक ८ महीने में रहे एक और जिला जज सुधीर कुमार ने ४२ क्रिमिनल और ३० सिविल मामलोको निपटाया।
इसी प्रकार से त्वरित न्याय की गति चालू रखते हुए के के शर्मा ने लखनऊ जिला जज के पद पर रहते हुए २० अप्रैल २०१२ से ६ मई 2014 तक २ साल १६ दिन के अपने कार्यकाल में ८९८ क्रिमिनल कसेज और ८०९ सिविल केसेज को निपटाया। बाराबंकी जिले में जनपद न्यायाधीश के रूप में १९ जनवरी २०१० से ३१ मई २०१० तक ५ महीने के कार्यकाल में के के शर्मा ने ११६ क्रिमिनल केसेज को निपटाया जबकि इसकी तुलना में बाराबंकी में ही १८ अक्टूबर २००८ से १४ जनवरी २०१० तक १५ महीने के लिए जिला जज के रूप में तैनात रहे वी वी सिंह ने १०७ केसेज को निपटाया। कन्नौज में जिला जज के रूप में २ जून २००८ से ३१ मार्च २००९ तक ९ माह के कार्यकाल में रहते हुए के के शर्मा ने २०३ क्रिमिनल और २४३ सिविल केसेज को निपटाया। एटा जिले के अपने ऐतिहासिक कार्यकाल में ७ मई २०१४ से ३१ मार्च २०१६ तक २ साल के कार्यकाल में ५२३ क्रिमिनल और ८०१ सिविल केसेज को निपटाया जबकि तुलनात्मक रूप से एटा में ही इस से पूर्व 2009 से 2014 तक रहे ७ जिला जजों के कार्यकाल में ६ सालो में मात्र ४९५ क्रिमिनल और २६४ सिविल केसेज को ही निपटा सके। इस प्रकार से एटा में ७ जजों के ६ साल के कार्यकाल पर 2 साल का के के शर्मा का कार्यकाल भारी पड़ा। यही नहीं एटा में उन्होंने एक दिन में रिकॉर्ड ४७ केसेज को निपटाने का भी रिकॉर्ड बनाया। भदोही जिले में ३ मई से २७ मई के बीच ४ छुट्टियां निकाल देने पर मात्र २० दिनों में के के शर्मा ने १४० केसेज का निस्तारण कर रिकॉर्ड कायम किया है। देश भर में जहां कही भी जिस मंच पर भी और टी वी चैनलों के पैनल डिस्कशन में भी जब जब स्पीडी जस्टिस पर बहस होती है तो उसमे जनपद न्यायाधीश के के शर्मा का नाम जरूर कोड किया जाता है। अपनी इन्ही न्यायिक उपलब्धियों को लेकर एटा में जनपद न्यायाधीश रहते हुए देश भर में प्रसिद्धि पा चुके के के शर्मा ने अक्टूबर २०१४ में एक्सीलेंस इन पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के छेत्र में प्रधानमन्त्री पुरुष्कार के लिए भी अपना नॉमिनेशन किया था परन्तु अभी तक इस बारे में कोई निर्णय नहीं हो सका है।
के के शर्मा का तीव्र न्याय दिलाने का अभियान यहीं नहीं रुका। हाल ही में प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में एक कार्यक्रम में देश के मुख्य न्यायाधीश टी एस ठाकुर की भावुक अपील से के के शर्मा ने प्रभावित होकर पूरी जून की छुट्टियों में भदोही जिले के न्यायालयों में सिविल न्यायिक कार्य करने का स्वयं एक आदेश पारित कर रजिस्ट्रार जनरल इलाहाबाद को 3 मई २०१६ को एक पत्र लिखकर जून की सभी छुट्टियों में सिविल न्यायिक कार्य करने की अनुमति मांगी है। इसके लिए उन्होंने भदोही जजशिप के सभी न्यायाधीशों की एक को छोड़कर अनुमति भी प्राप्त कर ली है, और भदोही बार एसोसिएशन ने भी एक प्रस्ताव पारित कर उनको यह आस्वासन दिया है कि यदि उत्तर प्रदेश के सभी सबऑर्डिनेट कोर्ट्स को यह अनुमति दी जाती है तो वे भी गर्मी की छुट्टियों में काम करने को तैयार हैं। अपने ३ मई २०१६ को रजिस्ट्रार जनरल इलाहाबाद को लिखे पत्र के आधार पर अभी तक अनुमति न मिलने पर जनपद न्यायाधीश भदोही के के शर्मा ने २५ मई २०१६ को एक रिमाइंडर रजिस्ट्रार जनरल को लिखकर पुनः जून की छुट्टियों में न्यायिक कार्य करने की अनुमति मांगी हैं। इसमें उन्होंने यह भी लिखा है कि मैं जोइनिंग लीव और जून महीने की रेसेज की छुट्टिया भी नहीं ले रहे हैं। यही नहीं भदोही जिले के जजों ने केसेज में जून के महीने की तारीखे भी दे रखी हैं। अब देखना है कि देश भर में स्पीडी जस्टिस के नायक के रूप में अपनी पहचान बन चुके के के शर्मा को इलाहाबाद हाइ कोर्ट से जून में न्यायिक कार्य करने की अनुमति मिलती हैं या नहीं। यदि अनुमति मिलती है तो यह भारत में पहला मौका होगा जब जून की छुट्टियों में भी कोर्ट खुलेंगे और न्यायिक कार्य होगा। स्पीडी जस्टिस की दिशा में आखिर इस से अच्छा कदम और भला हो भी क्या सकता है ?
राकेश भदौरिया
पत्रकार
एटा / कासगंज
मो. 9456037346
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