Feb 16, 2016

अपने ही डाल रहे जागरण की जड़ में मट्ठा

आईएएस बी.चन्द्रकला और दैनिक जागरण का विवाद सुर्ख़ियों में है। इस पूरे विवाद को समझने के लिए जागरण प्रबंधन को आत्ममंथन करना होगा। यह किसी को बताने की जरूरत नहीं कि बुलंदशहर डीएम चन्द्रकला कभी दैनिक जागरण की सबसे चहेती अधिकारी थी। जागरण ब्यूरो प्रमुख और रिपोर्टर जहाँ "दीदी" के आगे नतमस्तक थे, वहीँ मेरठ में बैठा कर्णधार भी बी.चन्द्रकला की ईमानदारी और दिलेरी के किस्से सुनाते नहीं थकता था। लेकिन एकाएक आईटीआई घोटाले समेत कई मामलों के बाद आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया। पूर्वाग्रह से ग्रस्त जागरण गाहे-बगाहे नुक्स निकालन लगा। जिसका जीता-जागता नमूना डीएम-ब्यूरो प्रमुख संवाद में चन्द्रकला का इरिटीएट रुख है। बात यही खत्म नहीं होती। पिछले कुछ सालों में दैनिक जागरण विवादों में घिरा रहा। इसी बुलंदशहर में कई मर्तबा जागरण को झुकना पड़ा। कुछ महीनों पहले बुलंदशहर में कवि सम्मलेन के नाम पर दैनिक जागरण ने लाखों की उगाही की।


कर्णधार और उसके चेलों ने बंदरबांट किया। सट्टेबाज़ की ठेकेदारी करने के चक्कर में एक महाशय ने तो खुर्जा में अख़बार फुंकवा दिया। लखनऊ से हुई जाँच में कई राज फाश हुए। भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे बुलंदशहर और बागपत इंचार्जों को तत्काल हटाकर रफुगिरि हुई। सहारनपुर-बिजनौर में खनन माफिया से दैनिक जागरण के कारिंदों के रिश्ते जगजाहिर है। विज्ञप्ति और समाचारों के नाम पर जिलों में उगाही आम है। इन सबके पीछे सबसे बड़ी वजह यह है कि मेरठ मुख्यालय पर कुछ लोगों का कोकस है। इसके मठाधीश कई मामलों में मालिकान को भी अँधेरे में रखकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं।

इस कॉकस की अपनी नीतियां, अपनी कार्यप्रणाली है। आलम कुछ ऐसा है कि जो कॉकस में फिट हुआ वो प्रसंशा, पद और पैसे के भागीदार, जो जरा भी विरोध करेगा अपमानित होकर बर्फ में लगेगा। उसके सामने दो रास्ते हैं या तो अपमान का घूंट पीकर चुप रहे, अन्यथा दैनिक जागरण को अलविदा कह दे। संजीव मिश्र समेत अभिषेक कौशिक, संदीप शर्मा, मनीष शर्मा, युवराज त्यागी जैसे योग्य पत्रकार जागरण छोड़कर चले गए, जो गैरतमंद पत्रकार रह गया रोज़ बेइज़्ज़त होकर घर आता है। इसका सीधा फायदा जिलों में बैठे दलाल किस्म के जागरण के कारिंदे उठा रहे है। प्रबंधन को गुमराह करने का नतीजा यह है कि दैनिक जागरण गर्त में सरक रहा है। पाठकों में अख़बार के प्रति अविश्वास तेज़ी से पनप रहा है। सभी अधिकारी, नेता, व्यापारी दैनिक जागरण की मौजूदा "नीति-रीति" से वाकिफ हैं। सर्कुलेशन भरभराकर कब गिर जाये कहा नहीं जा सकता। यदि प्रबंधन जल्द नहीं चेता तो और सख्त कदम नहीं उठाये तो "दारू-दमड़ी" जागरण का हाल पत्रकारिता के बादशाह रहे "आज" से भी बुरा होगा। मिसाल लायक चंद कदम ईएसआई नज़ीर पेश करेंगे कि एक चन्द्रकला क्या, अन्य कई चंद्रकलाएं जागरण समेत सभी पत्रकारों के सामने सलाम करती नज़र आएँगी।

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