रामजी मिश्र 'मित्र'
उत्तरप्रदेश (सीतापुर)/ भूत का नाम सुनकर ही अच्छे अच्छों की पतलून गीली हो जाती है। आजादी के समय भी भूतनाथ ने खूब कोहराम मचा रखा था। इस भूतनाथ ने तो अंग्रेज़ो की ही बोलती बंद कर दी थी। भूतनाथ ने अंग्रेजों की नाक मे दम कर दिया, साथ ही भारत को आजाद कराने में भी 'भूतनाथ' ने बहुत अहम रोल निभाया। यह भूतनाथ न सिर्फ अंग्रेजों के भय की वजह बन चुका था बल्कि अंग्रेजों को भारत छोड़कर भागने पर विवश कर रहा था। भूतनाथ अचानक आकर तहलका मचा देता था और अंग्रेज़ बस देखते भर रह जाते थे। बाद को इस भूतनाथ का पता लगाने की भरसक कोशिश की गयी।
भारत आजाद तक हो गया लेकिन अंग्रेज़ अंत तक नही जान पाये भूतनाथ का रहस्य। 'भूतनाथ' के राज ने खूब छकाया अंग्रेजों को ये एक ऐसी कहानी जिसका रहस्य अंग्रेजों के लिए हमेशा एक बड़ी सरदर्दी की वजह बना रहा। भूतनाथ की इस रोचक किस्से को आगे बढ़ाने से पहले आपको बताते चले भूतनाथ भी भारत की आजादी के लिए संघर्षरत था। वैसे तो अंग्रेजो ने भूतनाथ का बहुत पता लगाया लेकिन वह हर बार सिर्फ और सिर्फ असफल ही होते रहे। दरअसल अंग्रेजों की दमनकारी नीति क्रूरता की सारी हदें पार कर चुकी थीं। संचार के माध्यमों पर अंग्रेजों की पैनी नजर थी। वह अपने राज काज में जरा सा भी खतरा महसूस होने पर लेखकों और पुस्तकों को प्रतिबंधित कर देते थे। लोगों को जागरूक होने से रोकने के लिए अंग्रेजों का यह सबसे बड़ा हथकंडा था। इन प्रतिबंधों को धूल चटाने के लिए अचानक भूतनाथ आ गया।
भूतनाथ के बारे में और अधिक जानने से पहले उस समय की स्थिति के बारे में जरूर जान लीजिये। उस समय देशवासियों को विभिन्न सूचनाओं से अवगत कराने के लिए गुपचुप तरीके से पर्चे बाँट दिये जाते थे जिनमें सभी जानकारियाँ दी जाती थीं। पर्चों मे स्थान बहुत सीमित होता था। जानकारियों में अंग्रेजों के खिलाफ चलाये जाने वाले विभिन्न कार्यक्रमों की रूपरेखा व जनता को कैसे निपटना होगा आदि कार्यक्रम दिये रहते थे। अंग्रेजों की सतर्कता के चलते लोगों को छोटी बड़ी सूचना पहुचाना कठिन होता जा रहा था। ऐसे में अचानक उत्तर प्रदेश में 'भूतनाथ' नामक पत्र का अवतरण हो गया। मुख्यतः यह सीतापुर जिले में अचानक वितरित कर दिया जाता था। स्थानीय सूचनाओं के साथ साथ इस पत्र में प्रदेश की विभिन्न सूचनाएँ भी रहती थीं। अंग्रेज़ सरकार इस पत्र को पढ़कर बौखला जाती थी।
आखिर उसने इसे पूर्ण प्रतिबंधित कर दिया। अंग्रेजों के होश तब उड गए जब उनके प्रतिबंध महज हंसी का पात्र भर बन कर रह गए। वैसे भूतनाथ के साहसिक कदम के कारण यह लाज़मी भी था। अंग्रेज़ सरकार इस पत्र को बंद कराने के लिए पत्र के बुरी तरीके से पीछे लग गयी। नतीजन जारी हुआ भूतनाथ की खोज का बार बार बौखलाहट भरा प्रयास लेकिन हर बार उसे मायूसी ही हांथ लगती रही। सन उन्नीस सौ तीस ईसवी से बत्तीस ईसवी तक भूतनाथ ने अंग्रेजों के हर काले कारनामे को बेनकाब करता रहा। जनमानस तक भूतनाथ अंग्रेजों की हर काली करतूत पहुचा रहा था अब सरकार सकते में तो थी ही साथ ही हैरान और परेशान भी थी। अँग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भूतनाथ के कहर से अंग्रेज़ तड़फड़ा उठे पर उनके हांथ महज भूतनाथ का भूत ही लगता था। सूचना विभाग उत्तर प्रदेश की अधिकतम जानकारी के अनुसार महज यह कहा जा सकता है कि यह पत्र कांग्रेस के कुछ उत्साही कार्यकर्ताओं द्वारा निकाला जाता था। भूतनाथ कब और कहाँ से निकलता है यह बात अंग्रेजों के लिए सिर्फ एक राज बन कर रह गई।
भूतनाथ के विषय में पंडित गंगाधर मिश्र विशारद, पंडित राम आसरे नेरी वाले और मथुरा प्रसाद आर्य का नाम उल्लेखनीय है। अंग्रेजों को चकमा देने के लिए पत्र को निकालने वाले लोग अपना स्थान लगातार बदलते रहते थे। अंग्रेज़ अधिकारी और पुलिस इसके कार्यकर्ताओं और मुद्रण स्थान का पता लगाने की हर संभव कोशिश लगातार जारी रखे थी। धीरे धीरे भूतनाथ अंग्रेज़ो में खौफ और तिलमिलाहट का कारण बन चुका था। अंग्रेज़ सरकार इस पर प्रतिबंध लगाने के सिवा कुछ भी न कर सकी। सरकार के कड़े प्रतिबंध के बावजूद 'भूतनाथ' अचानक जनता के बीच पहुँच ही जाया करता था, जो अंग्रेजों की खिसियाहट भरे प्रतिबंधों पर हर बार एक जोरदार तमाचा होता था।
Ramji Mishra
रामजी मिश्र 'मित्र'
ramji3789@gmail.com
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