Feb 8, 2016

कैथी फिल्म महोत्सव : विविध सांस्कृतिक गतिविधियों के माध्यम से सामाजिक सन्देश देने के साथ भव्य समापन




चौबेपुर (वाराणसी): मार्कण्डेय महादेव धाम की स्थली कैथी में चल रहे 3 दिवसीय फिल्म महोत्सव का आज भव्य समापन हो गया. कैथी फिल्म सोसाइटी, नेशनल लोकरंग अकेडमी, अवाम का सिनेमा के संयुक्त तत्वावधान एवं स्थानीय जनता के सहयोग से यह आयोजन पोस्टर प्रदर्शनी, चित्र प्रदर्शनी, ऐतिहासिक दस्तावेजों की प्रदर्शनी, विभिन्न विविधताओं को समेटे सांस्कृतिक प्रस्तुतियां, नाटक, परिचर्चा, काव्य पाठ के साथ साथ जटिल सामाजिक मुद्दों को छूती हुयी लघु फिल्मो एवं फीचर फिल्मो के प्रदर्शन के माध्यम से बड़ी सहजता से सामाजिक सन्देश देने में सफल रहा.विभिन्न प्रस्तुतियों में  प्रमुख रूप से साम्प्रदायिकता, महिला हिंसा, अशिक्षा, अंधविश्वास, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर सहजता से प्रहार करते हुए समाज में प्रेम, सौहार्द्र, भाईचारे, वैज्ञानिकता, महिलाओं के प्रति सम्मान का सन्देश देने की कोशिश काफी हद तक सफल रही.


विभिन्न विधाओं के नवोदित कलाकारों, प्रतिभाओं को मंच और सम्मान देकर उनके मनोबल को बढाने के उद्देश्य में भी यह आयोजन काफी सफल रहा. 3 दिवसीय इस आयोजन की विशेषता रही कि इसमें किसी बड़े और नामचीन कलाकार या हस्ती के बजाय स्थानीय और नवोदित कलाकारों को स्थान दिया गया. इस आयोजन में एक और महत्वपूर्ण पहलू रहा कि परम्परा के विपरीत किसी भी दिन कोई स्वागत, माल्यार्पण, विशिष्ठ व्यक्ति से दीप प्रज्वलन आदि की औपचारिकता न करते हुए सभी आगन्तुको को बराबर महत्व दिया गया.

भीमापार गाजीपुर से आये लोक कलाकारों ने विलुप्तप्राय  'हुडुप' और "गोंड़ऊ" लोक नृत्य की जबरदस्त प्रस्तुति की. घुंघरू, मृदंग और नाल की ध्वनि से पूरा परिसर गुंजायमान रहा.
भोजपुरी गायकी और अभिनय के क्षेत्र सुविख्यात आकाशवाणी और दूरदर्शन के कलाकार युगल किशोर सिंह ने भोजपुरी भजन, दादरा, चैता, कजरी प्रस्तुत कर  लोगों को भावविभोर कर दिया.

आज की परिचर्चा "किसानो की आत्महत्यायें और किसानो का मौन" में बोलते हुए वक्ताओं ने किसानो की समस्याओं पर ध्यान आकृष्ट कराते हुए कहा कि आज अन्नदाता निरीह प्राणी हो गया है,  भारत जैसे कृषि प्रधान देश में आये दिन हो रही किसानो की आत्महत्याएं दुर्भाग्यपूर्ण हैं, इसके लिए निस्सदेह सरकारों की नीतियाँ जिम्मेदार हैं , प्राकृतिक आपदा से राहत राशि जो नगण्य ही होती है उसका भुगतान भी किसानो को बरसों में मिल पाता है. एक तरफ बड़े पूंजीपतियों को तमाम सुविधाएँ दी जा रही हैं वहीँ कृषि ऋण जटिल होते जा रहे हैं कृषि क्षेत्र में अनुदान में भी कटौती की जा रही है जो किसानो पर भारी पड़ रही है. वक्ताओं ने कहा कि विकास की आड़ में कृषि भूमि का अधिग्रहण करने की नीति का विकल्प ही तलाशना होगा. गोष्ठी में प्रमुख रूप से प्रो. सोमनाथ त्रिपाठी, दिवेंद्र सिंह, डा. राजीव श्रीवास्तव, अरविन्द मूर्ति  आदि ने विचार रखे, संचालन सुनील दत्ता ने किया.

इंदौर मध्यप्रदेश से आयी स्वरसाधिका श्रीमती अंजना सक्सेना के नेत्रित्व में 'स्वरान्गिनी समूह' के कलाकारों ने 'कबीर अमृत वाणी' की सुमधुर प्रस्तुति से समां बांध लिया, गीतों के माध्यम से उन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर भी प्रहार किया.  "स्कार्ड्स सृजन कला मंच'' वाराणसी के कलाकारों ने 'मूक अभिनय' और 'हास्य अभिनय' से दर्शको का भरपूर मनोरंजन किया, साथ ही शिक्षा के प्रति जागरूकता का भी सन्देश दिया. आज समापन के अवसर पर लघु फिल्म "दशरथ मांझी" द्वारा एक आम इन्सान के दृढ संकल्प और फौलादी इरादों की कहानी और फीचर फिल्म "दो बीघा जमीन" द्वारा देश में  किसानो की व्यथा को समाज तक पहुचाने की सफल कोशिश हुयी.

अंत में सामाजिक कार्यकर्त्ता और इस कार्यक्रम के संयोजक वल्लभाचार्य पाण्डेय ने आयोजन में सक्रिय भूमिका और सहयोग के लिए स्थानीय युवकों, कलाकारों और सहयोगियों को धन्यवाद देते हुए कहा कि किसी ग्रामीण अंचल में सांस्कृतिक विविधताओं सहित स्वस्थ मनोरंजन के साथ सामाजिक सन्देश देने में काफी हद तक सफल इस कार्यक्रम का श्रेय निस्संदेह स्थानीय युवकों की दिनरात की मेहनत और बुज्रुर्गों के आशीर्वाद को जाता है, हम प्रतिवर्ष ऐसे आयोजन करने की कोशिश करेंगे.

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