डा. राधेश्याम द्विवेदी
बस्ती एवं गोरखपुर का सरयूपारी क्षेत्र प्रागैतिहासिक एवं प्राचीन काल से मगध, काशी , कोशल तथा कपिलवस्तु जैसे ऐतिहासिक एवं धार्मिक नगरों, मयार्दा पुरूषोत्तम भगवान राम तथा भगवान बुद्ध के जन्म व कर्म स्थलों,महर्षि श्रृंगी, वशिष्ठ, कपिल, कनक तथा क्रकुन्छन्द जैसे महान सन्त गुरूओं के आश्रमों, हिमालय के ऊॅचे-नीचे वन सम्पदाओं को समेटे हुए, बंजर, चारागाह ,नदी-नालो,ं झीलों-तालाबों की विशिष्टता से युक्त एक आसामान्य स्थल रहा है।
उन दिनों देवता व अप्सरायें पृथ्वी लोक में आते-जाते रहते थे। बस्ती मण्डल में हिमालय का जंगल दूर-दूर तक फैला हुआ करता था। जहां ऋषियों व मुनियों के आश्रम हुआ करते थे। आबादी बहुत ही कम थी। आश्रमों के आस-पास सभी हिंसक पशु-पक्षी हिंसक वृत्ति और वैर-भाव भूलकर एक साथ रहते थे। परम पिता ब्रहमा के मानस पुत्र महर्षि कष्श्यप थे। उनके पुत्र महर्षि विभाण्डक थे। वे उच्च कोटि के सिद्ध सन्त थे। पूरे आर्यावर्त में उनको बड़े श्रद्धा व सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। उनके तप से देवतागण भयभीत हो गये थे। इन्द्र को अपना सिंहासन डगमगाता हुआ दिखाई दिया था। भारतवर्ष में अवध व कोशल का नाम किसी से छिपा नहीं है। भगवान राम का चरित्र आज न केवल सनातन धर्मावलम्बियों में अपितु विश्व के मानवता के परिप्रेक्ष्य में बड़े आदर व सम्मान के साथ लिया जाता है। उनके जन्म भूमि को पावन करने वाली सरयू मइया की महिमा पुराणों में भी मिलती है तथा राष्ट्रीय कवि मैथली शरण गुप्त आदि हिन्दी कवियों ने बखूबी व्यक्त किया है। हो क्यों ना, आखिर मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम के चरित्र से जो जुड़ा है। परन्तु किसी पुराणकार या परवर्ती साहित्यकार ने राम को धरा पर अवतरण कराने वाले मखौड़ा नामक पुत्रेष्ठि यज्ञ स्थल और उसको पावन करने वाली सरस्वती ( मनोरमा ) के अवतरण व उनके वर्तमान स्थिति के बारे में ध्यान नहीं दिया है।
यह स्थल बस्ती जिला मुख्यालय से 57 किमी. पश्चिम तथा अयोध्या से 20 किमी.उत्तर की ओर मनोरमा नदी के तट पर स्थित है। विक्रमजोत अयोध्या मार्ग एन एच 28 पर सिकन्दरपुर से कटकर परशुरामपुर रोड पर जाने पर यहां पहुचा जा सकता है। इस समय पूर्वाचल ग्रामीण बैंक की एक शाखा भी यहां पर खुली हुई हैं तथा आदर्श इन्टर कालेज भी यहां पर स्थित हैं। प्राचीन समय में यह कोशल राज्य का हिस्सा हुआ करता था। पौराणिक संदर्भ में एक उल्लेख मिलता है कि एक बार उत्तर कोशल में सम्पूर्ण भारत के ऋषि मुनियों का सम्मेलन हुआ था। इसकी अगुवाई ऋषिउद्दालक ने की थी । वे सरयू नदी क उत्तर पश्चिम दिशा में टिकरी बन प्रदेश में तप कर रहे थे। यही उनकी तप स्थली थी। पास ही मखौड़ा नामक स्थल भी था। मखौड़ा ही वह स्थल हैं जहां गुरू वशिष्ठ की सलाह से तथा श्रृंगी ऋषि की मदद से राजा दशरथ ने पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था। जिससे उन्हें रामादि चार पुत्र पैदा हुए थे। उस समय मखौड़ा के आस पास कोई नदी नहीं थी। यज्ञ के समय मनोरमा नदी का अवतरण कराया गया था।यहां पर श्री राम जानकी के मुख्य रूप से दो मन्दिर है। एक प्रातः 7 बजे से शाम 6 बजे तक तथा दूसरा प्रातः 4 वजे से 8 वजे तक ही खुला रहता है। एक का व्यवस्थापन अयोध्या के हनुमान गढ़ी द्वारा तथा दूसरे का अयोध्या के दशरथ महल द्वारा किया जाता है। इनकी हालत वहुत अच्छी नही है। चौरासी कोस की परिक्रमा के समय यहा काफी चहल पहल रहती है। परिक्रमा चैत पूर्णिमा को शुरू होकर बैसाख पूर्णिमा तक चलता है। गुजरात के स्वामी नारायण सम्प्रदाय के श्रद्धालु बड़ी संख्या में इस मन्दिर में दर्शन हेतु आते है।
वर्तमान समय में यह धाम बहुत ही उपेक्षित है। मन्दिर जीर्ण शीर्ण अवस्था में हैं। नदी के घाट टूटे हुए हैं। 84 कोसी परिक्रमा पथ पर होने के बावजूद इसका जीर्णोद्धार नहीं हो पा रहा है। जब अयोध्या के राजा दशरथ के कोई सन्तान नहीं हो रही थी। तब उन्होने अपनी चिन्ता महर्षि बशिष्ठ से कह सुनाई थी। महर्षि बशिष्ठ ने श्रृंगी ऋषि के द्वारा अश्वमेध तथा पुत्रेष्टि कामना यज्ञ करवाने का सुझाव दिया। दशरथ नंगे पैर उस आश्रम में गयें थे। तरह-तरह से उन्होंने महर्षि श्रृंगी की बन्दना कीे। ऋषि को उन पर तरस आ गया। महर्षि बशिष्ठ की सलाह को मानते हुए वह यज्ञ का पुरोहिताई करने को तैयार हो गये। उन्होने एक यज्ञ कुण्ड का निर्माण कराया । इस स्थान को मखौड़ा कहा जाता है। रूद्रायामक अयोध्याकाण्ड 28 में मख स्थान की महिमा इस प्रकार कहा गया है -
कुटिला संगमाद्देवि ईषान्ये क्षेत्रमुत्तमम्।
मखःस्थानं महत्पूर्णा यम पुण्यामनोरमा।।
स्कन्द पुराण के मनोरमा महात्म्य में मखक्षेत्र को इस प्रकार महिमा मण्डित किया गया है-
मखःस्थलमितिख्यातं तीर्थाणामुत्तमोत्तमम्।
हरिश्चन्ग्रादयो यत्र यज्ञै विविध दक्षिणे।।
डा. राधेश्याम द्विवेदी
पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण आगरा 282001
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