Jan 6, 2016

क्या अमेरिका अपने बगलबच्चे सउदी अरब की लगाम खींचेगा?

-डॉ. वेदप्रताप वैदिक-
अब ईरान और सउदी अरब के बीच तलवारें खिंच गई हैं। ईरानियों ने सउदी दूतावासों में आग लगा दी है और सउदी अरब ने ईरान से अपने कूटनीतिक संबंध तोड़ दिए हैं। हम समझते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच झगड़ा चलता रहता है, क्योंकि हम हिंदू हैं और वह मुसलमान है लेकिन देखिए कैसी ताज्जुब की बात है कि इन दोनों देशों में जानलेवा तनाव बना रहता है जबकि दोनों मुसलमान देश हैं।


यह शिया और सुन्नी की मुठभेड़ सिर्फ इन दो देशों तक सीमित नहीं है। यह सारे पश्चिम एशिया में फैल गई है। अब सउदी के साथ-साथ बहरीन, सूडान और संयुक्त अरब अमारात ने भी ईरान से कूटनीतिक संबंध विच्छेद कर लिया है। हो सकता है कि इस जमात में कुछ अन्य मुस्ल्मि राष्ट्र भी शामिल हो जाएं याने पूरा पश्चिम एशिया दो खेमों में बंटता हुआ दिखाई पड़ रहा है। कई सुन्नी राष्ट्रों में शिया लोगों की संख्या 10-15 प्रतिशत से लेकर बहुमत तक है।

यह ईरान-सउदी विवाद अगर तूल पकड़ गया तो सारे पश्चिम एशिया में गृहयुद्ध की स्थिति पनप सकती है। इसका सबसे बुरा प्रभाव तो सीरिया पर पड़ेगा, जहां इसी शिया-सुन्नी विवाद के चलते लाखों लोग मारे गए हैं और जहां अभी-अभी शांति के आसार दिखने शुरु हो गए थे। महाशक्तियों और संयुक्त राष्ट्र संघ के अथक प्रयत्नों से सीरिया के बारे में जो समझौता हुआ है, अब वह खटाई में पड़ जाएगा।

ऐसा सब क्यों हो रहा है? इसलिए कि सउदी अरब के शासको ने वहां के शिया नेता शेख निम्र-अल-निम्र को सजा-ए-मौत दे दी है। शेख निम्र किसी भी हिंसक गतिविधि में शामिल नहीं थे। वे सउदी शासकों से अपने शिया अनुयायियों के लिए सिर्फ बराबरी का अधिकार मांग रहे थे। उन्हें और उनके 47 साथियों को यह कहकर मौत की नींद सुला दिया गया कि वे काफिराना हरकत कर रहे थे और वे ईरान के एजेंट थे।

अगर हम यह मान भी लें कि शेख निम्र दोषी थे तो भी सउदी शासकों को क्या यही वक्त सूझा था, उनकी हत्या करने का? क्या वे साल भर रुक नहीं सकते थे? क्या उन्हें अंदाज नहीं था कि संसार का सारा शिया जगत दहल उठेगा? अमेरिका और पश्चिमी राष्ट्रों के लिए यह एक नया सिरदर्द खड़ा हो गया है। क्या अमेरिका अपने बगलबच्चे सउदी अरब की लगाम खींचेगा? यह बड़ा टेढ़ा मामला है। इस मामले में सबसे अच्छी भूमिका भारत निभा सकता था, क्योंकि भारत निष्पक्ष है और उसका इस क्षेत्र में कोई निहित स्वार्थ भी नहीं है लेकिन क्या करें, अपने नौसिखिए नेतागण अपने ही दलदल में बुरी तरह फंसे हुए हैं।

लेखक डॉ. वेदप्रताप वैदिक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं. 

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