Jan 14, 2016

परमानन्द पाण्डेय अपने मुवक्किलों की फीस माफ़ करें और अंतिम निर्णय के बाद ही पांच प्रतिशत की रकम लें

जागरण के मजीठिया वेतनमान के मुवक्किलों ने अपना वकील बदल लिया है | अब श्री कोलिन गोंज़ाल्विस दैनिक जागरण के कर्मियों का केस लड़ेंगे| चर्चा है कि दैनिक जागरण के अन्य कर्मी भी परमानंद पांडेय को अपने वकील के रूप में न रखने को लेकर सक्रिय हैं और जल्द ही कोई बड़ा फैसला ले सकता है| इस सब के पीछे कई कारण बताये जा रहे है.... मालिकों से सांठ-गाँठ, तारिख पे तारिख, धन उगाही.... यहाँ पर ये बताना ज़रूरी है की 2 माह पूर्व राजस्थान पत्रिका के कर्मियों ने भी परमानन्द पाण्डेय की कार्यशैली से त्रस्त आकर अपना वकील बदल लिया था|


इन सभी कर्मियों का दबी जुबां में कहना है की पाण्डेय जी संगठन के नाम पर अपनी वकालत चला रहें हैं| कुछ ने नाम न बताने की बात करते हुए कहा की नॉएडा में प्लाट और कई अन्य सुविधाओं की बात भी सामने आई है| इन आरोपों की सत्यता....शायद ही हो पाए पर आरोप तो लगे हैं.... कुछ का तो यहाँ तक कहना है की 30 साल से संगठन के महासचिव रहने के बाद वो जब संगठन के बारे में अनर्गल बातें बोल सकते है तो....हमारी क्या औकात....

मजीठिया की सुनवाई Supreme Court में फिर टल गई.... अगली सुनवाई की तारिख तक निश्चित नहीं की गई....6 हफ्ते का समय दिया गया है अर्थात मामला अप्रैल तक घसीटा जायेगा....वकील परमानन्द पाण्डेय चाहते तो आज ही फरवरी की कोई तारीख लगवा सकते थे, जैसा उनके मुताबिक 15 दिसम्बर की तारिख में हुआ था | जनवरी में अभी 3 हफ्ते बाकी है फरवरी में तो पूरे 4 हफ्ते बाकी है लेकिन परमानन्द पाण्डेय ने कोई रूचि नहीं दिखाई की अगली सुनवाई जल्दी हो| सांठ-गाँठ का शक पैदा हो जाता है | कोई तो यहाँ तक कह रहा था की नोयडा में विशाल भूखंड मिल जाने के बाद ही सुनवाई में तेज़ी लाने का प्रयास किया जायेगा|

आज जब अदालत ने कहा की प्रताड़ित पत्रकार निजी शपथ पत्र दाखिल करे तो वकील परमानन्द पाण्डेय जज साहब से आग्रह कर सकते थे की अदालत आदेश दे कर प्रताड़ना को ख़त्म कराये और यथास्थि वापस लाये| ऐसा पहले भी कई मामलो में हो चुका है जब न्यायालय ने यथास्थिति बाहल करने का आदेश दिया है| वकील पाण्डेय ने तो न ऐसा कुछ किया न कहा| प्रताड़ित और विस्थापित हो चुके पत्रकारों के शपथ पत्र का जवाब तो मैनेजमेंट के पास तैयार ही होगा| फिर सवाल उठता है की पाण्डेय क्या करना चाहते है?

उन्हें तो सिर्फ फीस से मतलब है जो उन्हें मिल रही है| अब तक 90 लाख रुपये की आये हो चुकी है| नैतिकता की मांग है की परमानन्द पाण्डेय अपने मुवक्किलों की फीस माफ़ करें और अंतिम निर्णय के बाद ही मुवक्किलों को मिली बकाया राशि से पांच प्रतिशत की रकम लें, जैसा उन्होंने मध्य प्रदेश के कुछ पत्रकारों के साथ किया है| फ़िलहाल मजीठिया मुक़दमे के टलने से लगता है गई भैंस पानी में|

परमानंद पाण्डेय के इस कृत्य पर उनके संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष और कई वरिष्ठ साथियों ने विरोध भी जताया है| उन्हें तो अपना महासचिव का पद छोड़ने को भी कह दिया गया है|

एक पीड़ित

(नाम इसलिए नहीं क्योंकि मेरा भी केस लगा है, क्या करें)

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