Jan 5, 2016

आत्मीयता से मिलते थे रविंद्र जी


अजमेर जिले के पत्रकारिता क्षेत्र में कुशल व्यक्तित्व के धनी रविंद्र सिंह जी अब हमारे बीच नहीं रहे। गत 19 दिसंबर की रात उन्हें ब्रेन हेमरेज होने का मैसेज पढ़कर विचलित हो गया। दिन में ही पत्रकार राजेंद्र जी हाड़ा का निधन हुआ था। सोचा, अचानक यह क्या हो गया। मैंने अजमेर के एक पत्रकार साथी को कॉल किया और रविंद्र जी के स्वास्थ्य से संबंधी जानकारी चाही तो मालूम हुआ कि उनकी हालत गंभीर है। परिवार को बताया तो उन्हें भी निराशा हुई। वो मेरे पूरे परिवार से भी परिचित थे।


मुझे पहली बार वर्ष 2007 में रविंद्र जी के सानिध्य में काम करने का अवसर मिला। तब मैं दैनिक नवज्योति के ब्यावर ब्यूरो कार्यालय में संवाददाता था और रविंद्र जी डेस्क इंचार्ज थे। मेरी खबरों को पढ़ते-पढ़ते उनका मुझसे आत्मीय संबंध बन गया। जब भी मैं कोई एक्सक्लूसिव खबर भेजता, उसे पढऩे के बाद वो कॉल अवश्य करते। 'यह खबर बायलाइन लगने लायक नहीं है।', 'मैंने लीड खबर मांगी थी लेकिन यह लीड लगने लायक नहीं है। इसे बॉटम में लगा रहा हूं।' यह कहकर हर बार मुझे सताते थे। उनसे आत्मीय लगाव के चलते मैं भी उन्हें एक ही जवाब देता- 'आप मालिक हो। खबर को डस्टबिन में भी डाल सकते हो।'

सवेरे जब मैं अखबार देखता तो चेहरे पर स्माइल आ जाती। खबर 5 से 8 कॉलम तक सजी हुई होती। वो भी बायलाइन। यह देखकर मोबाइल उठाता और उन्हें स्माइली के साथ 'थैंक्स' मैसेज जरूर भेजता। उन्हें मेरी लेखन शैली बेहद पसंद थी। वो बोलते थी कि खबर अच्छी लिखी हो तो सजाने का मजा आता है। वो ऑफ बीट फोटो को भी कॉटेशन के साथ सजाकर लगाते। उनके इसी प्रेम के चलते मैं भी स्वार्थी बन गया। जिस दिन उनका वीकली ऑफ होता, उस दिन एक्सक्लूसिव खबर 'किल' होने से रोक लेता। वो ऑफ भी लेते तो मुझे बता देते 'आज नहीं जाऊंगा। कोई खास खबर हो तो कल भेजना।' दरअसल दोपहर में 12 से 1 बजे के बीच उनका कॉल नियमित रूप से आता था। हम दोनों करीब एक घंटे तक लगातार मोबाइल फोन पर बतियाते और प्रतिद्वंदी अखबारों से जुड़ी खबरों की तुलनात्मक चर्चा करते। साथ ही नए दिन के लिए एक्सक्लूसिव खबर की जानकारी लेते। खबर को बेहतर बनाने के लिए आइडिया भी देते। कुछ समय बाद हम दोनों संस्थान से पृथक हो गए। फिर भी मोबाइल फोन पर बातें जारी रही।

वर्ष 2010 में मुझे एक बार फिर कुछ दिन उनके साथ काम करने का अवसर मिला। तब हम दोनों दैनिक भास्कर अजमेर कार्यालय में थे। दोनों का कार्य अलग था मगर कार्य से जुड़ी चर्चाएं करते थे। बड़े भाई की तरह नए कार्य क्षेत्र में मेरा मार्गदर्शन भी किया। कुछ समय बाद वो नागौर जिले में गए और मैं ब्यावर आ गया। एक दिन उनके रिश्तेदार का प्रतियोगी परीक्षा के लिए केंद्र ब्यावर आया। उन्होंने मुझे कॉल किया और परीक्षा केंद्र की जानकारी ली। संयोग से परीक्षा केंद्र मेरे घर के समीप ही था। वो परीक्षा तिथि को अलसुबह रिश्तेदार के साथ घर आए। घर में प्रवेश करते ही मेरे माता-पिता के चरण छुए। लंच करते हुए परिवार के समझ खबरों की तारीफ करते रहे। उस दिन के बाद जब भी बात होती परिवार की कुशलक्षेम अवश्य पूछते। अब वो भले ही हमारे बीच नहीं है मगर उनकी बातें और साथ बिताए दिन हमेशा याद रहेंगे। भाईसाहब परम पिता परमात्मा आपको मोक्ष प्रदान करें। आत्म शांति के लिए प्रार्थना।

सुमित सारस्वत
Sumit Saraswat
sumit.saraswat09@gmail.com

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