Jan 25, 2016

नरेंद्र मोदी और पीएमओ का बचाव एक बड़बोला विधायक कर रहा है, तब भी सवाल है कि कहां है पीएम का शोक संदेश?



-संजय कुमार सिंह-
लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और प्रधानमंत्री के कार्यालय का खूब मजाक बनाया। संवैधानिक पदों का सम्मान होना चाहिए इसमें कोई दो राय नहीं है। किन्ही कारणों से अगर कोई राजनैतिक दल ऐसा न माने तो कुछ किया भी नहीं जा सकता है। पर अपने ही प्रधानममंत्री का या अपनी ही पार्टी का शासन होने पर भी कोई बड़ा नेता जो प्रदेश में मंत्री और एक शहर का मेयर रह चुका है और विधायक है, गलत, गैर जरूरी कार्य करे जिससे प्रधानमंत्री और उनके कार्यालय व काम-काज की गरिमा को ठेस पहुंचे तो स्थिति की गंभीरता का अंदाजा लगता है। स्थिति यह हो गई है कि प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री कार्यालय का बचाव एक बड़बोला विधायक कर रहा है। यह सही है कि प्रधानममंत्री कार्यालय ऐसे मामलों में कार्रवाई करे तो भी तिल का ताड़ बनाना लगेगा और कोई बिलावजह हीरो हो जाएगा। पर बचाव झूठ के सहारे?


गैर जिम्मेदारी कोई आम आदमी दिखाए और पार्टी का विधायक – में फर्क है। लापरवाही कोई आम कार्यकर्ता करे और ऐसा नेता करे जो विवादास्पद बयानों के लिए ही जाना जाता है, तो मुझे लगता है कि उसपर नियंत्रण होना चाहिए। मामला चाहे प्रधानमंत्री की कार्यशैली का हो या कार्यकताओं से उनके संबंध का – किसी कार्यकर्ता को चाहे वह कितना ही बड़ा या लोकप्रिय हो प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से बोलने की छूट नहीं मिलनी चाहिए। अगर ऐसी छूट किसी को दी गई है तो अधिकृत घोषणा होनी चाहिए। कोई भी प्रधानमंत्री की तरफ से कुछ भी बोल और कर सकेगा तो अराजकता फैलेगी और प्रधानमंत्री, उनके कार्यालय को इसका नुकसान हो ना हो, लाभ नहीं होने वाला।

ताजा मामला मशहूर नर्तकी मृणालिणी साराभाई के निधन पर प्रधानमंत्री द्वारा कथित रूप से शोक नहीं व्यक्त किए जाने से संबंधित है। उनकी बेटी मशहूर नृत्यांगना मल्लिका साराभाई ने फेसबुक पर लिखा था कि प्रधानमंत्री को इसपर शर्म आनी चाहिए। मल्लिका की इस नाराजगी से सहमत या असहमत हुआ जा सकता है। उन्हें ऐसा लिखना चाहिए कि नहीं, कब लिखना चाहिए आदि पर चर्चा हो सकती है। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा इसके कारण गिनाए जा सकते हैं और इसपर अनुसंधान करके नतीजे भी सार्वजनिक किए जा सकते हैं। पर प्रधानमंत्री औऱ प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस मामले में क्या किया, किया या नहीं यह तो कोई अधिकृत प्रवक्ता ही बोलेगा। मेरे ख्याल से इसमें किसी को कोई शक नहीं होना चाहिए।

शक इसमें भी नहीं होना चाहिए कि मल्लिका ने अगर फेसबुक पर लिखा था कि प्रधानमंत्री ने शोक नहीं जताया तो उनका मतलब प्रधानमंत्री के ट्वीट से था, बयान या शोक संदेश से था जो ऐसे मौकों पर अखबारों के लिए जारी किए जाते हैं। टेलीविजन पर बताए-सुनाए जाते हैं। निश्चित रूप से मल्लिका का आशय प्रधानमंत्री कार्यालय से औपचारिक तौर पर परिवार को लिखे और डाक से भेजे जाने वाले पत्र की हार्ड कॉपी से नहीं था। बहस इस बात पर हो सकती है कि मल्लिका को ऐसी अपेक्षा क्यों थी या होनी चाहिए कि नहीं। पर निश्चित रूप से उनका संदर्भ ट्वीट या प्रेस विज्ञप्ति से रहा होगा। मल्लिका की इस अपेक्षा या प्रधानमंत्री के खिलाफ पोस्ट लिखने पर मल्लिका के विरोधी औऱ प्रधानमंत्री के समर्थक कूद पड़े। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।

सबसे अटपटा या कहिए कि आपत्तिजनक काम किया भाजपा नेता और मध्यप्रदेश के विधायक कैलाश विजयवर्गीय ने। आपत्तिजनक इसलिए कि उन्होंने मामले को पूरी तरह मोड़ दिया। और ऐसा उन्होंने जानबूझकर भारतीय संस्कृति, मान्यता और रिवाजों की आड़ में किया जो तकनीकी तौर पर तो सही पर पहली ही नजर में गलत और झूठ लग रहा है। उन्होंने फैला दिया कि मृणालिनी के निधन के दिन ही पीएमओ की ओर से उनके बेटे कार्तिकेय साराभाई के पास संवेदना प्रकट करते हुए एक पत्र भेजा गया था। बताया गया कि यह पत्र निधन वाले दिन ही लिखा गया था (जबकि मल्लिका ने अगले दिन प्रधानमंत्री को कोसा था)। कैलाश विजयवर्गीय ने इसकी जानकारी ट्वीटर पर भी दी बताते हैं।

अखबारों की खबरों से पता चल जाता है कि स्रोत क्या है। एक आम नागरिक के रूप में मैं जितनी औऱ जैसी जांच कर सकता था उससे यही लग रहा है कि कैलाश विजयवर्गीय ने मल्लिका साराभाई को गलत साबित करने के लिए झूठ का सहारा लिया। प्रधानमंत्री के शोक संदेश की खबर हर जगह कैलाश विजयवर्गीय के हवाले से या भाजपा नेता के हवाले छपी है। कैलाश विजयवर्गीय का कथन पूरी तरह झूठ ना हो तो भी पूरे मामले को दूसरी तरफ मोड़ देता है। मेरा मानना है कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने अगर मृणालिनी साराभाई के निधन पर शोक संदेश जारी किया था तो वह अखबारों में छपता। सूचना देनी थी तो प्रधानमंत्री कार्यालय को ही देना चाहिए। मल्लिका के फेसबुक पोस्ट का हवाला देकर या बगैर उसका जिक्र किए। अगर ऐसा कुछ करना भी प्रधानमंत्री कार्यालय को बड़ी बात या गैर जरूरी लग रहा था तो उसे समान्य ढंग से प्रधानमंत्री कार्यालय या पत्र सूचना कार्यालय के वेबसाइट पर डाल दिया जाता तो बात बन जाती। प्रिंटआउट मेल कर दिए जाते या संदेश ही ई मेल अथवा ट्वीट किया जा सकता था। मीडिया में उस विज्ञप्ति या संदेश के हवाले से खबर छप जाती। ऐसा कुछ नहीं हुआ तो मुझे शक हुआ और मैंने प्रधानममंत्री कार्यालय के वेबसाइट के साथ-साथ पीआईबी के वेबसाइट पर तलाश लिया। ऐसा कोई संदेश नहीं मिला। मल्लिका साराभाई के भाई या मृणालिनी साराभाई के सुपत्र के हवाले से भी खबर नहीं दिखी कि उन्हें शोक संदेश मिला है जबकि राष्ट्रपति के शोक संदेश का हवाला है।

ऐसे में मुझे लग रहा है कि कैलाश विजयवर्गीय बिलावजह प्रधानमंत्री कार्यालय और प्रधानमंत्री कार्यालय को विवाद में घसीट रहे हैं। अगर शोक संदेश जारी किया गया है तो अधिकृत तौर पर कहा जाना चाहिए, नहीं जारी किया गया है तो इतनी बड़ी बात नहीं है कि उसके लिए झूठ बोला जाए या कैलाश विजयवर्गीय जैसे किसी नेता का उपयोग किया जाए। अगर यह काम सही है तो किसी सरकारी प्रवक्ता को करना चाहिए। या फिर नहीं किया जाना चाहिए।

लेखक संजय कुमार सिंह वरिष्ठ पत्रकार और मीडिया विश्लेषक हैं. उनसे संपर्क anuvaad@hotmail.com के जरिए किया जा सकता है. 

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