Apr 25, 2016
दिल्ली सचिवालय पर सैकड़ों घरेलू कामगारों का प्रदर्शन, श्रम मंत्री ने 15 दिन में स्टेटस रिपोर्ट मांगी
नई दिल्ली, 25 अप्रैल। दिल्ली के सैकड़ों घरेलू कामगारों ने आज दिल्ली सरकार के सचिवालय पर एक जुझारू प्रदर्शन किया और उनके प्रतिनिधिमंडल ने दिल्ली राज्य के श्रम मंत्री को अपनी मांगों का ज्ञापन सौंपा। श्रम विभाग में अनिवार्य पंजीकरण, न्यूनतम वेतन, कार्यदिवस, साप्ताहिक छुट्टी एवं अन्य अवकाशों का निर्धारण, स्वास्थ्य और दुर्घटना बीमा, पी.एफ़., पेंशन, ई.एस.आई. एवं सामाजिक सुरक्षा के अन्य प्रावधान आदि घरेलू कामगारों की प्रमुख मांगें थीं। उनका कहना था कि यथाशीघ्र क़ानून बनाकर सरकार को ये मांगें पूरी करनी चाहिए तथा घरेलू कामगारों से जुड़ी स्कीमों के वित्त-पोषण के लिए 'घरेलू कामगार कल्याण कोष' की स्थापना की जानी चाहिए।
प्रदर्शन-स्थल पर सभा को संबोधित करते हुए 'दिल्ली घरेलू कामगार यूनियन' की संयोजक कविता ने कहा कि घरेलू मज़दूर मेहनतकशों के बीच का सबसे अधिक उपेक्षित, सबसे अधिक उत्पीडि़त, सबसे अधिक असंगठित, क़ानूनी तौर पर अरक्षित और अदृश्यप्राय हिस्सा है। केंद्र और राज्यों की सरकारों ने घरेलू कामगारों के साथ लगातार छल और विश्वासघात किया है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने 2013 में घरेलू कामगारों से संबंधित कंवेंशन पारित किया, लेकिन भारत सरकार ने अभी तक उसका अनुमोदन नहीं किया है। घरेलू कामगारों के लिए क़ानून के दो विधेयक 2008 और 2010 में सरकार के सामने रखे गए, पर सरकार ने या संसद में बैठी किसी पार्टी ने ऐसा क़ानून बनाने की दिशा में कोई पहल नहीं ली। यही हाल राज्यों की सरकारों का रहा है। केवल तमिलनाडु, महाराष्ट्र, केरल, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश और राजस्थान की सरकारों ने कुछ बेहद कमजोर क़ानूनी प्रावधान करके या नोटिफि़केशन जारी करके घरेलू मज़दूरों को पंजीकरण, न्यूनतम वेतन और अवकाश की सुविधाएं देने जैसी घोषणाएं की हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर इन पर भी अमल नहीं हो रहा है। दिल्ली देश की राजधानी है, लेकिन यहां के घरेलू मज़दूरों को कोई भी सुरक्षा प्राप्त नहीं है। अब समय आ गया है कि इसके लिए एकजुट होकर आवाज़ उठाई जाए और आंदोलन खड़ा किया जाए, तभी सरकार की कुंभकर्णी नींद टूटेगी। संघर्ष के बिना हमें अपना हक़ क़त्तई नहीं हासिल होगा।
यूनियन की संयोजन समिति की सदस्य विमला सक्करवाल ने कहा कि घरेलू कामगारों के लिए क़ानून बनाने के लिए सरकार यदि जल्दी से जल्दी कोई विशेष कमेटी की घोषणा नहीं करती है और सदन के आगामी सत्रों में इसके लिए विधेयक पेश करने की घोषणा नहीं करती है तो हमें पूरी दिल्ली में अपना आंदोलन तेज़ करना होगा। सरकार तब तक इतना तो कर ही सकती है कि आधिकारिक तौर पर घरेलू मज़दूरों को असंगठित मज़दूरों की श्रेणी में रखकर, असंगठित मज़दूरों को जो भी थोड़े-बहुत क़ानूनी अधिकार हासिल हैं, उनका अधिकारी घरेलू मज़दूरों को भी बना दे। क़ानून बनने तक नोटिफिकेशंस और शासनादेशों के द्वारा भी पंजीकरण, न्यूनतम मज़दूरी, सुनिश्चित कार्यदिवस, अवकाश आदि के अधिकार घरेलू मज़दूरों को दिए जा सकते हैं, जैसा कि कुछ राज्य सरकारों ने किया भी है।
यूनियन की संयोजन समिति के अन्य सदस्य अपूर्व मालवीय ने कहा कि हमें इन मांगों को लेकर संगठित होकर, एक लंबी लड़ाई चलानी होगी और राज्य के साथ ही केंद्र की सरकार पर भी दबाव बनाना होगा कि वह केंद्रीय स्तर पर यथाशीघ्र घरेलू मज़दूरों के लिए क़ानून बनाए और उसके अनुरूप क़ानून बनाने के लिए राज्य सरकारों पर दबाव बनाए। हमारी कोशिश है कि अन्य राज्यों में भी घरेलू कामगारों को संगठित किया जाए और उन सभी के एकीकृत आंदोलन द्वारा केंद्र सरकार पर भी दबाव बनाया जाए। उन्होंने कहा कि सभी मज़दूर एकजुट होकर, एक-दूसरे का साथ देकर ही अपनी लड़ाइयों को कामयाब बना सकते हैं, इसलिए ज़रूरी है कि घरेलू मज़दूर सभी असंगठित मज़दूरों के संघर्षों में उनका साथ दें और अपने आंदोलनों में उन्हें साथ लें। हमें 'मज़दूर एकता जि़ंदाबाद' के नारे को कभी भूलना नहीं चाहिए।
अपूर्व मालवीय ने घरेलू मज़दूरों की सभी मांगों का औचित्य बताते हुए तफ़सील से यह समझाया कि किस प्रकार विलासिता व अमीरी की चीज़ों की ख़रीद पर उपकर (सेस) लगाकर 'घरेलू श्रमिक कल्याण कोष' बनाकर सरकार घरेलू मज़दूरों के पी.एफ., पेंशन, दुर्घटना बीमा, ई.एस.आई., आदि मांगों को आसानी से पूरा कर सकती है। उन्होंने कहा कि क़ानून बनने के साथ ही श्रम विभागों में ऐसी व्यवस्था और ऐसा मेकेनिज्म बनाना होगा कि उक्त क़ानून पर प्रभावी अमल की गारंटी हो सके। हमें घरेलू मज़दूरों के लिए क़ानून ही नहीं, बल्कि उसके प्रभावी अमल के लिए भी एक लंबी लड़ाई लड़नी होगी।
प्रदर्शन के बाद दिल्ली घरेलू कामगार यूनियन के प्रतिनिधिमंडल से दिल्ली सरकार के श्रम मंत्री गोपाल राय के ओएसडी आर.के. गौर ने मुलाकात की और ज्ञापन लेने के साथ ही करीब 45 मिनट की वार्ता के दौरान बताया कि दिल्ली सरकार घरेलू कामगारों के लिए कानून बनाने पर काम कर रही है जिसमें 8 से 12 महीने लगेंगे। घरेलू कामगारों के अनिवार्य पंजीकरण की मांग पर उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार प्लेसमेंट एजेंसियों के माध्यम से यह काम करने पर विचार कर रही है। प्रतिनिधिमंडल ने इस पर कहा कि प्लेसमेंट एजेंसियों की निगरानी और रेग्यूलेशन की व्यवस्था की जाये और प्लेसमेंट के सभी ब्योरे श्रम कार्यालयों में या घरेलू कामगारों के लिए बने बोर्ड के सामने जमा करना उनके लिए अनिवार्य बनाया जाये। श्रम मंत्री के ओएसडी ने इस मांग पर भी विचार करने की बात कही कि कानून बनने तक घरेलू कामगारों के कुछ बुनियादी अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए सरकार अधिसूचना जारी करे।
आज दिये गये ज्ञापन पर चर्चा के लिए दिल्ली घरेलू कामगार यूनियन के प्रतिनिधिमंडल को अगले सप्ताह श्रम मंत्री की ओर से मिलने के लिए बुलाया गया है। यूनियन ने यह संकल्प प्रकट किया कि इन मांगों के माने जाने तक दिल्ली के घरेलू कामगार चुप नहीं बैठेंगे। इन मांगों को लेकर पूरी दिल्ली में घरेलू कामगारों के बीच व्यापक अभियान चलाया जायेगा और अधिक बड़े पैमाने पर आंदोलन खड़ा किया जाएगा।
प्रेस-विज्ञप्ति
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