Apr 11, 2016

पियो पिलाओ-सरकार बनाओ

1.
इस देश में पूंजीवाद कितना हावी है, उच्च शिक्षा की फीस में तिगुनी फीस वृद्धि किया जाना इसका ताजा उदाहरण है । देश में गरीबों के बच्चे सर्वशिक्षा अभियान में ही पॉंचवी कक्षा तक पढ़ पायगें । प्राईवेट स्कूलों में कितनी लूट मची है इससे हर कोई वाकिफ है । बजाय इसे रोकने का इंतजाम करने के सरकार ने आईआईटी जैसी पढ़ाई की फीस 80 हजार से बढ़ाकर 2 लाख रूपये कर दी है । यह भी पूरे कोर्स की फीस नहीं है । जाहिर है कि गरीब मॉं बाप अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवाने का सपना भी नहीं देख सकते । उच्च शिक्षा में अब केवल पैसे वाले या फिर आरक्षण की लड़ाई लड़कर आने वाले ही प्रवेश ले पायगें । वैसे ही देश में बहुत ज्यादा प्रोफेशनल हैं जो सरकार ने यह भलाई का कार्य कर दिया है । महंगाई कम करने की बजाय लोगों को मूलभूत अधिकारों से और वंचित किया जा रहा है । पैसे वाले पढ़ेगें, प्रतिस्पर्धा कम होगी, वही अफसर बनेगें, ज्यादा कमायगें, अपने बच्चों को पढ़ा पायगें । जी हजूरी के लिये गरीबों के बच्चे हैं हीं । पूंजीवादी सत्ता की गरीबों को अशिक्षित रखने की यह एक चाल नहीं तो और क्या है......?


2.
बिहार यू.पी. से पिछड़ा राज्य माना जाता है, शायद इसीलिये वहाँ शराब की पूर्ण बंदी कर दी गयी है । वो क्या जाने, शराबियों की मजबूरी, पीते हैं गम भुलाने को । बाकि अपना उत्तर प्रदेश इस मामले में आधुनिक है, लाखों उजड़ते परिवारों, पिटती महिलाओं और बदहाल बच्चों की फरियाद को एक कौने में रखकर शराब के दाम घटा दिये हैं । अब और पियो, गम भुलाओ और सरकार के गुण गाओ । सवाल ये है कि क्या बिहार को शराब से मिलने वाले राजस्व की जरूरत नहीं है, क्या शराब बंदी करने से उसका रहा-सहा विकास भी नष्ट हो जायेगा ? सवाल ये भी है कि शराब के दाम कम करना क्यों जरूरी है? वैसे ही लोग कम पी रहे थे क्या, या फिर सस्ती हो जायेगी तो वह उन पैसों की बचत कर लेगें । भईया और जादा पींगे । वैसे उत्तर प्रदेश और बिहार में शराब की मौजूदा स्थिति में अन्तर ये है कि बिहार में विधानसभा चुनाव होकर चुके हैं, और अपने प्रदेश में चुनाव होने वाले हैं... चुनाव और शराब का क्या रिश्ता है, येे तो उन वोटरों को मालूम है जो कुछ बोतलों के लिये अपना और पूरे घर का वोट बेच आते हैं और चुनाव के बाद सयाने बनकर पूरे पॉंच साल तक सरकार को कोसते हैं कि कुछ काम नहीं किया । बिना शराब के चुनाव थोड़े ना लड़े जाते हैं । गरीब प्रत्याशी बेचारे इत्ती रकम कहॉं से लायें । अबकी शायद वे भी वोटरों को खुश कर सकें । पियो पिलाओ-सरकार बनाओ । लोकतंत्र जिन्दाबाद......

जगदीश वर्मा ‘समन्दर’

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