पूरनपुर कोतवाली में हिरासत में हुई मौत से भटका रही है पुलिस, निष्पक्ष विवेचना न्याय का आधार, घटना की हो सीबीआई जांच
पीलीभीत/लखनऊ 5 अप्रैल 2016। पूरनपुर कोतवाली में रजागंज मुहल्ले के शकील और सद्दाम की पुलिस हिरासत में हुयी मौत पर रिहाई मंच और एपीसीआर ने घटना स्थल का दौरा किया। जांच दल में रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव, शकील कुरैशी, शरद जायसवाल एपीसीआर के मुशफिक रजा खां, मोहतशिम खां व भाकपा माले के देवाशीष राय व नरेश जायसवाल शामिल थे।
दौरे के बाद प्रथम दृष्टया शकील और सद्दाम की पूरनपुर कोतवाली में हिरासत के दौरान हुयी मौत के लिए पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए। पीलीभीत दौर पर आए नेताओं ने कहा कि पच्चीस साल पहले 1991 में बेकसूर सिख युवाओं को आतंकी बताकर फर्जी मुठभेड़ में मारेने पर आए सीबीआई कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए तत्कालीन पुलिस अधीक्षक आर डी त्रिपाठी, बरेली रेंज के डीआईजी व आईजी जोन को बचाने का आरोप लगाया।
जांच दल ने कहा निर्दोषों को फर्जी मुठभेड़ में मारने या पूरनपुर कोतवाली में हिरासती मौत की घटना कोई नई घटना नहीं है। भारत नेपाल सीमा पर पुलिस की आपराधिक सांप्रदायिक भूमिका यहां पहले भी उजारगर होती रही है। रजागंज, पूरनपुर से लौटे जांच दल ने कहा कि सद्दाम और शकील की मृत्यु के समय को लेकर पुलिस, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र और पोस्टमार्टम रिपोर्ट से उपजे अन्तर्विरोध पुलिस की भूमिका को और अधिक संदिग्ध बना देते हैं। पीडि़तों के परिजनों के मुताबिक 30 मार्च की शाम को शकील और सद्दाम को उनके घरों से उठाया गया। जब शाम को ही सद्दाम की पत्नी सबीना कोतवाली गईं तो उनके पति को नहीं छोड़ा गया और उनसे 15 हजार रुपए की मांग की गई। तो वहीं शकील के पिता शफीक अहमद ने बताया कि सुबह तकरीबन 9 बजे जब वे कोतवाली गए तो उनके बेटे को पुलिस वाले बेरहमी से पीट रहे थे। जांच दल ने सवाल उठाया कि पुलिस अपने बचाव में जो तर्क दे रही है कि दोनों की मौत जहर से हुई वह पूरी तरह से बेबुनियाद है।
जांच दल ने कहा कि समय-समय पर तराई क्षेत्र में ऐसी घटनाएं सामने आती रही हैं। आम आदमी के साथ-साथ पत्रकार भी इस पुलिस उत्पीड़न के शिकार होते रहे हैं। निष्पक्ष विवेचना ही न्याय का आधार होती है जो की पुलिस की विवेचना से संभव नहीं है। ऐसे में राज्य से बाहर की एजेंसी सीबीआई से इस पूरी घटना की जांच कराई जाए।
जांच दल ने प्रदेश सरकार से मांग की कि शकील और सद्दाम के परिजनों को पच्चीस लाख का मुआवजा व सरकारी नौकरी की गांरटी की जाए व दोषियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए। जांच दल ने प्रदेश सरकार से मांग की कि तराई क्षेत्र में होने वाली फर्जी मुठभेड़ों और हिरासती मौतों के लिए एक न्यायिक जांच आयोग बनाया जाए।
द्वारा-
मुशफिक रजा खान
एपीसीआर सचिव पश्चिमी उत्तर प्रदेश
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