Apr 5, 2016

कला हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग है ,यह जीवन के हर पीढ़ी से जुड़ा है

भूपेंद्र कुमार अस्थाना (चित्रकार एवं क्यूरेटर)

लखनऊ , मंजरी इंस्टिट्यूट आफ म्यूजिक एंड फाइन आर्ट्स ,निराला नगर ,लखनऊ में चल रहे " आर्ट वीक " के दौरान आज कल संगोष्ठी हुई जिसमे कला स्रोत आर्ट गैलरी के क्यूरेटर एवं युवा चित्रकार भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने सम्बोधित किया इस मौके पर मजरी इंस्टिट्यूट सभी ब्रांचों कला के छोटे बड़े बच्चे और अभिभावक उपस्थित मौजूद रहे ,इस संगोष्ठी में बच्चों को कार्टून ,कैरिकेचर,और कुछ कलाकारों के आर्ट वर्क दिखाया जिसे बच्चों ने बहुत ही आनंद के साथ देखा और विभिन्न प्रश्न भी किये और प्रश्नों के उत्तर भी दिए.
इस संगोष्ठी में कार्टूनिस्ट हरिमोहन बाजपेयी के कार्टून और कैरिकेचर के विसुअल भी दिखाए ,बच्चे बहुत ठहाके भी लगाए ,और उन्हें रंगों ,रेखाओं आदि के बारे में भी बताया .


भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने बताया की रेखाओं से ही शब्द बनते है बिना रेखा के कोई शब्द ,कोई अक्षर नहीं बन सकता ,कोई भी आकार हो  बिना रेखा के संभव ही नहीं ,हमें बच्चों के कला के प्रति भी ध्यान देना आवश्यक है ,बच्चों को कभी रेखाएं खींचते हुए देखे तो बहुत ही सरल ,सहज लगती है ,जिसके द्वारा वे अपनी बात हम तक पहुंचते है ,उनमे कोई दिमाग नहीं लगाते.विज्ञानं ,भूगोल सरे विषय भी कला के बिना उनका कोई महत्व नहीं है .इन्हे कला का सहयोग लेना ही पड़ता है ,कला की भाषा ही सबको सरल बनती है लोग आसानी से समझ सकते है चाहे किउं न वे अनपढ़ ही हो कला की भाषा सब समझते है .विज्ञानं में तमाम ड्राइंग बनना होता है ,बिना डिग्राम के हम समझ नहीं पाते ,हमारी रहन सहन ,हमारा फैशन सब कला की ही देन है कला बच्चे से बूढ़ों तक से संवाद करती है ,आज विज्ञापन का बड़ा ही महत्व है जो कला की महत्वपूर्ण देन है ,जिसे देख कर हर कोई उस प्रोडक्ट के बारे में आसानी से समझ सकता है , अन्य भाषाओँ को भी समझने के किये हम कला का ही सहारा लेते है ,कला की भाषा संवाद की भाषा है

आर्ट क्रिएट करता है -कला सृजन करता है ,जन्म देता है

हमें बच्चों के कला के प्रति भी ध्यान देना आवश्यक है ,बच्चों को कभी रेखाएं खींचते हुए देखे तो बहुत ही सरल ,सहज लगती है ,जिसके द्वारा वे अपनी बात हम तक पहुंचते है ,उनमे कोई दिमाग नहीं लगाते.बच्चों के अंदर एक ऊर्जा शक्ति ,सृजन शक्ति समाहित होती है ,उसे प्रोत्साहित करने के लिए हमे प्रयास करना चाहिए ताकि वो निराश नहो उनके अंदर के सृजन शक्ति को बढ़ने के लिए हम उन्हें स्वतंत्र रखे तभी वे कोई सृजन कर सकते है ,कला स्वतंत्र है ,और कलाकार को भी स्वतंत्र होने पर ही कोई नई  कला रच पता है ,बिना कोई स्केल ,रबड़ के हम अपने पेपर पर ड्राइंग करे ,स्वतंत्र हो कर रेखाओं को खींचे ,जिससे हमे आदत होगी कला सृजन की ,किसी चीज़ की कॉपी नहीं करनी चाहिए हमें उसे अपने तरीके से नया रूप देना चाहिए ,आर्ट जीवन के हर पीढ़ी से जुडी है ,इसके लिए कोई उम्र नहीं होती

रविन्द्र नाथ टैगोर - कवी साहित्य्कार थे ,कोई पेंट्री नहीं लेकिन उनका कला में भी योगदान रहा है ,६० के उम्र में कविताओं को काटते काटते उनमे उन्होंने कुछ ड्राइंग देखि ,कुछ फिगर देखा ..तो उन्हें एहसास हुआ की कला में भरपूर शक्ति है उन्होंने कला के शक्ति को समझा ,कला हमारे जीवन का मुख्य अंग है ,हमे कला सिर्फ स्कूलों ,कॉलेजों में ही नहीं होती वह तो तरीके बताये जाते है ,कला का काम सिर्फ कला सृजन करना है कला  सृजन से जुड़ा है ,

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