भारत में लोकतंत्र अब भेड़तंत्र में बदल गया है अर्थात् जिसने जितनी भेड़ें हांक लीं, वो उतना ही बड़ा गड़रिया। देश में अब भेड़ों को अपने-अपने बाड़ों मे कैद करने की रवायत ही चल पड़ी है। ताजा उदाहरण है देवभूमि कही जाने वाली उत्तराखण्ड की पवित्र धरती पर सत्ता के भूखे भेड़ियों द्वारा प्रदेश की जनता पर थोपा गया ऐसा ही जुगुप्साजनित एक घटनाक्रम।
अभी 17 मार्च को देहरादून में स्पाइस जेट के एक 78 सीटर विशेष विमान से एक केन्द्रीय मंत्री अपने साथ भाजपा के दो बड़े नेताओं के साथ पहुंचते हैं और सारी रात एक आलीशान होटल में पार्टी के प्रादेशिक नेताओं तथा कांग्रेस के कुछ विभीषणों के साथ दुरभि संधि कर भारतीय राजनीति में एक और काला अध्याय जोड़ने में सफल हो जाते हैं। फिर शुरू हुआ सिर्फ आंकड़ों के खेल में तब्दील हो गये लोकतंत्र का एक विशुद्ध डकैती कांड। जिसमें दूसरों की भेड़ें चुराकर अपने बाड़े में बंद करने का निर्लज्ज कर्म करने में जरा भी संकोच नहीं हुआ इसके कर्ताधर्ताओं को। बाहर से गये डकैत, गिरोह के शीर्ष नेतृत्व के आदेशानुसार देहरादून से दूसरे के बाड़े से चुराई गई नौ नई भेड़ों और अपने बाड़े की सभी पुरानी भेड़ों को साथ लेकर गुड़गांव के एक आलीशान ठिकाने (होटल) में पहुंचते हैं तो दूसरी तरफ डकैती के शिकार बने लोगों ने अपने तबेले की बाकी बची भेड़ों को दुश्मन के हाथों लुटने से बचाने को उनका झुंड रामनगर (नैनीताल) के एक जंगल (रिसॉर्ट) में छिपा दिया।
भारत ही नहीं पूरी दुनिया भर में राजनीति को पूरी तरह सत्ता हथियाने का खेल बने अर्सा बीत गया है और जिस तरह उसमें नित नए प्रयोग हो रहे हैं, उससे ऐसा लगता है कि इसमें इंसानियत के लिए कोई जगह बाकी बची हो ऐसा दूर तक कहीं नजर नहीं आता। भारतीय राजनीति इतिहास के सर्वाधिक निकृष्ट दौर से गुजर रही है। इसके नेताओं को आज अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता। विकल्प के अभाव में लोग इन्हें जैसे-तैसे ढोने को विवश हैं।
जैसे कभी फ्रांस में गुंडे-मवाली के लिए प्रयुक्त होने वाला शब्द 'हीरो' अब यहां 'नायक' के अवतार में है। ठीक इसी तरह नेता के मायने अब दुर्दमनीय गुंडा और राजनैतिक दल इन गुंडों के संगठित गिरोहों में तब्दील हो गए हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था इन गिरोहों की चेरी बन चुकी है। इन सफेदपोश गुंडों की परिक्रमा-प्रदक्षिणा करने वाले इनके लगुवे-भगुवे इनकी जूठन चाटने का पुण्य अर्जित कर धन्य हो रहे हैं। देश में भ्रष्ट सरकारी तंत्र के सहयोग से बड़े पैमाने पर सर्वत्र इनकी लूट-खसोट निर्बाध और निरंतर जारी है। प्रतिरोध के स्वर कहीं सशक्त रूप से उठते नहीं सुनाई पड़ते। स्थानीय तौर पर जो थोड़ा-बहुत प्रयास होते भी हैं तो वे नक्कारखाने में तूती बन कर रह जाते हैं। बाबू जय प्रकाश नारायण की समग्र क्रांति के बाद के इन 42 वर्षों के अंतराल में तमाम तरह की लूट-खसोट व अलोकतांत्रिक क्रिया-कलापों के विरुद्ध देश में कोई बड़ा जन-प्रतिरोध सामने नहीं आया। जो सोडावाटरी जोश 2012 में अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के नेतृत्व में उठा भी था, वह 'नमो मंत्र-जाप' सिद्ध होने के साथ ही लुप्त हो गया और अन्ना रालेगणसिद्धि में, तो बाबा अपनी पतंजलि की धूनी में फिर से रम गये।
वोटों के सौदागर इन नेताओं के कुकृत्यों को देखने से तो यही लगता है कि दृढ़ संकल्प शक्ति से रहित और नेतृत्वविहीन सवा अरब से भी अधिक लोगों का यह देश किसी अनाम दिशा (शायद सर्वनाश) की ओर बड़ी तीव्र गति व निर्बाध रूप से दौड़ा चला जा रहा है। जिसका सीधा नकारात्मक प्रभाव जनता पर पड़ रहा है। इसके प्रतिकार के निमित्त यदि शीघ्र ही कोई उपाय नहीं किया गया तो पूरे देश को दुष्परिणाम भोगने पडेंगे, यह निश्चित है। और यह भी पक्के तौर पर कहा जा सकता है कि भारतीय समाज में जब भी ऐसा कोई युग परिवर्तनकारी समय आयेगा तो उसका नेतृत्व युवाओं के हाथों में होगा। भले ही पृष्ठभूमि में पुरानी पीढ़ी के भी कुछ गिनती भर के लोग होंगे।
आइये, ईश्वर से प्रर्थना करें कि भारतीय राजनीति के शुद्धिकरण की ऐसी वह शुभ घड़ी जल्दी ही मूर्तरूप धारण करे और लोग यहां मनुष्य द्वारा मनुष्य के ही शोषण से रहित एक स्वस्थ समाज में सुखपूर्वक सांस ले सकें।
श्यामसिंह रावत
Email ssrawat.nt@gmail.com
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