भगत सिंह 23 मार्च शहादत दिवस पर
उसने इंकलाब-जिदांबाद ये सोचकर नहीं कहा था, कि सत्ता पर काबिज भर होना है, सत्ता सुख भोगना है, अगर ऐसा ही होता तो वो कभी नहीं कहता कि इंकलाब से हमारा मतलब इस सामाजिक व्यवस्था को बदलना है, जो षोशण, अन्याय और झूठ पर टिकी हुई है ऐसी व्यवस्था न्याय नहीं करती साथ ही ये भी कहा कि हमारा ये संघर्श तब तक जारी रहेगा जब तक शोषण और लूट पर टिकी इस व्यवस्था का अंत नहीं हो जाता, इससे फर्क नहीं पड़ता कि हमे लूटने वाले गोरे अंग्रेज है, या फिर विषुद्ध भारतीय। भगत सिंह व्यवस्था परिवर्तन के अग्रदूत थे। उनका क्रांति लूट का खात्मा करता है।
.... नन्हीं सी उम्र में खेतों में बंदूक बोकर अंग्रेजो को भगाने की बात करने वाला भगत सिहं और उनके साथियो ने बरतानिया हुकूमत को जालिम और उनके पूरे तंत्र को ढोग और नाटक करार देते हुए उसके खिलाफ बगावत की थी। आजादी की लड़ाई में ये एक ऐसा संघर्श था। जिसके गर्भ में आजाद और मुक्कमल हिन्दुस्तान का भू्रण पल रहा था। बटो-बाटो और फिर राज करो की नीति से बिल्कुल जुदा हिन्दुस्तान। ... आज भी जब षोशण, भूख, गरिबी, सामप्रदायिकता अपने लपटे आम-आदमी को जला रही है, तो भगत सिंह का इंकलाब हुंकार भरता नजर आता है। इंकलाब के लिए विचार प्रमुख है। विचार विहीन संघर्श निर्माण से ज्यादा विनाष ही करता है, इनंकलाब की तलवार विचारो के सान पर चमक उठती है, कैसे चलिए जानते है भगत सिंह के उन विचारो को जो आज भी मौजू है और जरूरी भी।
1. नौजवानों से
सच्चा युवक तो बिना झिझक के मृत्यु का आलिंगन करता है।..... बेड़ियो की झनकार पर राश्ट्रीय गान गाता है। .... नौजवानों को क्रांति का संदेष देष के कोने-कोने में पहुंचाना है। फैक्टरी कारखानों के क्षेत्रों में .... नौजवानो को ही करोड़ो-करोड़ो लोगो में इस क्रांति की अलख जगानी है। जिससे आजादी आएगी और तब एक मनुश्य द्वारा दूसरे मनुश्य का षोशण असंभव हो जायेगा।
2. क्रांति जरूरी है
मित्रों क्रांति से हमारा अभिप्राय अन्याय पर आधारित मौजूदा समाज व्यवस्था में आमूल-वूल परिवर्तन है।... क्रांति मानव जाति का जन्मजात अधिकार है जिसका अपहरण नहीं किया जा सकता। स्वतंत्रता प्रत्येक मनुश्य का जन्मसिद्ध अधिकार है। देष को एक आमूल परिवर्तन की जरूरत है। .... जो हुकूमत व्यक्ति के कुदरती अधिकार छिनती है उसे जीवित रहने का अधिकार नहीं है।
3. न्याय
... ज्यों ही कानून सामाजिक आवष्यकताओं को पूरा करना बंद कर देता है त्यों ही जुल्म और अन्याय को बढ़ाने का हथियार बन जाता है, ऐसे कानूनों को जारी रखना सामूहिक हितों पर विषेश हितों की दंभपूर्ण जबरदस्ती के सिवाय कुछ नहीं है।
4. अखबार
... अखबारों का असली कर्तव्य शिक्षा देना, लोगो के मन से संकीर्णता निकालना, सांप्रदायिक भावनाएं हटाना, परस्पर मेल-मिलाप बढ़ाना और भारत की राष्ट्रीयता बनाना था। लेकिन इन्होंने अपना मुख्य कर्त्वय अज्ञान फैलाना, संर्कीणता का प्रचार करना, सांप्रदायिक बनाना, लड़ाई-झगड़े करवाना और भारतीय राष्ट्रीयता को नष्ट करना बना लिया है, यही कारण है कि भारतवर्श की वर्तमान दशा पर विचार कर आंखो से आंसू बहने लगते है और दिल में सवाल उठता है कि भारत का क्या होगा?
... मैं पुरजोर कहता हूं कि आशाओ एवं आकंक्षाओं से भरपूर सम्पूर्ण जीवन की समस्त रंगीनियों से ओतप्रोत हूं, लेकिन वक्त आने पर सबकुछ कुर्बान कर दूंगा, सही अर्थो में यही बलिदान है, यह वस्तुएं मनुष्य की राह में कभी भी अवरोध नहीं कर सकती, बशर्ते कि वह इंसान हो।
भास्कर गुहा नियोगी
मेबाइल न. 9415354828
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