Dec 5, 2015

31 साल के महान दानी यानि मार्क जुकरबर्ग से हम क्या सीख सकते हैं

वेद प्रताप वैदिक 
मार्क जुकरबर्ग को कौन नहीं जानता? लेकिन अब जुकरबर्ग को दुनिया के सबसे बड़े दानियों में से जाना जाएगा। यों तो जुकरबर्ग पहले भी करोड़ों डालर दान कर चुके हैं और जुकरबर्ग से पहले भी अरबों डालर दान करने वाले लोग हुए हैं लेकिन जुकरबर्ग ने अपनी बेटी के जन्म के अवसर पर दान की जो घोषणा की है, उसने उन्हें दुनिया का अद्वितीय दानी बना दिया है। बिल गेट्स, वारेन बफे और जार्ज सोरेस जैसे लोगों ने भी बड़े-बड़े दान देकर अन्तरराष्ट्रीय ख्याति अर्जित की है लेकिन इनमें से जुकरबर्ग ही ऐसा पहला दानी है, जिसकी उम्र सिर्फ 31 साल है। 30-31 साल की उम्र क्या होती है? इसे खेलने-खाने की उम्र कहा जाता है। यदि इस उम्र में कोई आदमी अरबपति बन जाए तो उसके क्या कहने? वह जो भी नखरे पाले, वे कम होते हैं लेकिन जुकरबर्ग ने अपनी ‘फेसबुक’ की संपत्ति का 99 प्रतिशत दान कर दिया है। लगभग तीन लाख करोड़ रु. की इस राशि से दुनिया के गरीब बच्चों के कल्याण की कई योजनाएं बनेंगी।


बिल गेट्स ने जब दान करने की सोची तब उनकी उम्र 45 साल थी और बफे की 75 साल थी। जुकरबर्ग ने अपने शेयरों में से सिर्फ एक प्रतिशत ही अपने पास रखा है याने वे खुद को अपनी संपूर्ण संपत्ति का मालिक नहीं, ‘न्यासी’ (ट्रस्टी) मानकर चल रहे हैं। जुकरबर्ग गांधीजी के ट्रस्टीशिप सिद्धात को मूर्त रुप देने वाले व्यक्ति हैं। यों तो अमेरिका में दानियों की कमी नहीं है। वे लगभग 350 बिलियन डालर हर साल दान देते हैं। लेकिन वे या तो बूढ़े लोग होते हैं, जिनका संपत्ति से मोह-भंग हो चुका होता है या निःसंतान होते हैं या जिनकी संतानों ने उनका जीना हराम कर दिया होता है। इसके अलावा सबसे ज्यादा दान धर्म के नाम पर होता है। मरने के बाद वे दानदाता स्वर्ग में जगह चाहते हैं। इसीलिए वे चर्च की शरण में चले जाते हैं। इस तरह के दान का दुरुपयोग धर्मान्तरण के लिए भी होता है। दुनिया के गरीब मुल्कों के नागरिकों को पैसे देकर उनके धर्म का सौदा कर लिया जाता है लेकिन जो दान जुकरबर्ग, बिल गेट्स और वारेन बफे जैसे लोग कर रहे हैं, वह मुझे काफी सात्विक मालूम पड़ता है।

इन दान राशियों के पीछे यशोकामना छिपी हो सकती है लेकिन वह इतनी बुरी नहीं, जितनी धर्मांतरण की पिपासा! जुकरबर्ग का दान दुनिया के उन लोगों को कुछ राह जरुर दिखाएगा, जो सिर्फ पैसा इकट्ठा करने में अपना पूरा जीवन खपा देते हैं और जब वे दुनिया छोड़कर जाते हैं तो खाली हाथ चले जाते हैं। जुकरबर्ग की नवजात बेटी ‘मेक्सिमा’ कितनी भाग्यशाली है कि अभी उसने बस जन्म लिया ही है कि वह दुनिया के सबसे बड़े दान की भागीदार बन गई है। क्या मालूम वह बड़ी होने पर अपने पिता से भी आगे निकल जाए! जुकरबर्ग, चान और मेक्सिमा शतायु हों।

लेखक वेद प्रताप वैदिक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं. 

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