राज्यसभा में 30 अगस्त, 2015 को मायावती ने सवर्ण गरीबों को आर्थिक आधार पर आरक्षण प्रदान करने की मांग करके, अवसरवादी राजनीति के घृणित चेहरे को आगे बढाया है। गरीब सवर्णों को आरक्षण की मांग करके मायावती वोट की राजनीति तो कर सकती हैं, लेकिन अनार्यों के संवैधानिक हकों की रक्षा करने का दावा नहीं कर सकती। अब मायावती को दलित, आदिवासी, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हितों की माला जपने का कोई नैतिक अधिकार शेष नहीं रह गया है। हजारों सालों से आर्यों के शोषण, विभेद, अन्याय, अत्याचार और मनमानी के शिकार वंचित—अनार्यों को सत्ता और प्रशासन में आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रदान करने के मकसद से संविधान निर्माताओं में ने सामाजिक न्याय की व्यवस्था की हुई है। जिसका मायावती मजाक उड़ा रही हैं। मायावती का बयान इस बात का जीता जागता प्रमाण है कि मायावती को संविधान और सामाजिक न्याय का प्राथमिक स्तर तक का ज्ञान नहीं है। उन्हें कांशीराम की शिष्या और उत्तराधिकारी कहलाने का कोई नैतिक हक नहीं है! कहीं ऐसा तो नहीं कि आगे चलकर मायावती भी भाजपा की नाव पर सवार होने की तैयारी कर रही हैं?
सवर्ण गरीब भी इस देश के नागरिक हैं और उनके विकास एवं उनकी उन्नति की चिन्ता करना भी देश का फर्ज है, लेकिन आरक्षण कोई गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं है। अत: सवर्ण—गरीबों को आरक्षण नहीं, बल्कि आर्थिक संरक्षण की जरूरत को तो जायज ठहराया जा सकता है, लेकिन संविधान निर्माताओं ने यह कल्पना भी नहीं की थी किे गरीबी आरक्षण का आधार हो सकती है? मायावती के असंवैधानिक बयान के बाद सबसे महत्वपूर्ण विचारणीय सवाल तो यह है कि सत्ता और प्रशासन में सवर्णों का प्रतिनिधित्व तो पहले से ही उनकी जनसंख्या से कई गुना अधिक है। ऐसे में गरीब सवर्णों को आरक्षण प्रदान करने की मांग के जरिये जाने-अनजाने मायावती आर्थिक आधार पर आरक्षण प्रदान करने के, संघ के संविधान विरोधी मनुवादी ऐजेण्डे को ही आगे बढा रही हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि अन्दरखाने संघ और मायावती का समझौता हो चुका हो? क्योंकि-
1. मायावती का यह अदूरदर्शी बयान ज्योतिराव फूले, डॉ. अम्बेड़कर, जयपाल सिंह मुण्डा और कांशीराम के सामाजिक न्याय के आन्दोलन को समाप्त करने की दिशा में आत्मघाती सिद्ध होगा।
2. मायावती का यह विचार सामाजिक न्याय की संवैधानिक अवधारणा की बेरहमी से हत्या करने के समान है।
3. मायावती के इस बयान के कारण यदि गरीब सवर्णों को आरक्षण की बात आगे बढती है तो आज नहीं तो कल आर्थिक आधार पर आरक्षण प्रदान करने की अवधारणा को बल मिलेगा। जिसका हाल भी वही होगा, जो बीपीएल योजना का हो रहा है।
4. मायावती की बात मानी ली तो आरक्षण प्राप्ति हेतु जाति—प्रमाण—पत्र नहीं, गरीबी के प्रमाण—पत्र बनेंगे, जो अन्य वस्तुओं की ही तरह बाजार में खरीदे और बेचे जाने लगेंगे।
5. मायावती के इस बयान के कारण अनार्यों के साथ हजारों सालों से जारी जन्तजातीय विभेद का समाधान हुए बिना आरक्षण आर्थिक ताकतों के कुचक्र में फंस जायेगा।
6. क्या मायावती नहीं जानती कि अभी तक मीडिया, उद्योग आदि सभी कुछ आर्थिक ताकतों के शिकंजे है, आगे आरक्षण भी आर्थिक ताकतों के हत्थे चढ जायेगा।
7. मायावती के इस बयान के कारण अन्तत: देश पर आर्यों का शिकंजा मजबूत हो जायेगा। आरक्षण व्यवस्था आर्थिक शक्तियों के हाथ का खिलोना बन कर रह जायेगी।
क्या देश की 90 फीसदी अनार्य आबादी ऐसी भयावह प्रशासनिक, सामाजिक और संवैधानिक स्थित का सामना करने को तैयार है, जिसमें सब कुछ आर्थिक शक्तियों के हवाले कर दिया जायेगा। यह बताने की जरूरत नहीं होनी चाहिये कि आर्थिक संसाधनों पर केवल आर्यों का कब्जा है। अनार्य में आर्यों के आर्थिक साम्राज्य के हिस्सेदार बनने का लालायित हैं। इस कारण अनार्यों का सम्पन्न, सुविधा प्राप्त और उच्च पदों पर आसीन तबका मायावती के बयान का समर्थन करे तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिये!
-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
राष्ट्रीय प्रमुख, हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन
(भारत सरकार की विधि अधीन दिल्ली से रजिस्टर्ड राष्ट्रीय संगठन).
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