भोपाल : 11 दिसंबर 2015 से म.प्र. सरकार के सानिध्य में आयोजित भोपाल में अंतराष्ट्र्रीय हर्बल मेले का आयोजन किया जा रहा है, इस मेले की वैसे तो नाम के हिसाब से बहुत उपयोगिता है, बहुत आवश्यकता है और प्रदेश के लिए गर्व की बात है, परंतु इसके विपरीत देखने में आ रहा है कि हर साल सरकार द्वारा इस तरह के आयोजन किए जाते हैं वे सिर्फ भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा योजनावद्ध तरीके से शासकीय धन का उपयोग करके इनको अपने नीजी लाभ साधने से अधिक कुछ नहीं है।
म.प्र. के जंगलों में अनमोल जड़ी बूटियों का अथाह भंडार है यहां के वनवासी तथा जंगलों के आसपास रहने वाले लोग यहां की वन संपदा से भलीभांति परिचित हैं। और समय-समय पर आवश्यकता अनुसार अपने निजी जीवन में उपयोग भी करते हैं। वहीं सरकार का नियम और वन विभाग का हर आयोजन जनहित पर कार्यान्वित होना दर्ज है परंतु देखने में और भौतिक सत्यापन करने पर परिस्थितियां इसके विपरीत हैं। प्रदेश के जंगलों की हालत यह है कि उनकी रात-रात भर कटाई होती है, सफाई होती है और वन संपदा को अंतरराज्यीय स्तर पर तस्करी के माध्यम से बाहर भेज दिया जाता है।
विरोध करने वाले इनके विरोधी ही नहीं बल्कि इनके दुश्मन माने जाते हैं। शासकीय अमले के माध्यम से परेशान करने से लेकर उनकी हत्याएं तक कराने के कई प्रमाण राज्य में मौजूद हैं। म.प्र. शासन के वन विभाग तथा संबंधित अनुभागों तथा निगम मंडलों में शिकायतों का अंबार भरा पड़ा है। लगभग 15 वर्ष पूर्व जिस आयुर्वेद संजीवनी का स्थापन कराया गया था इसके उद्देश्य बहुत ही पवित्र एवं जनहितकारी थे, लोगों को सही उपचार भी मिल सकता था। प्रदेश की वनोषधी का सही दोहन भी हो सकता था, तथा राष्ट्रीय तथा अंतराष्ट्र्रीय स्तर पर प्रदेश प्रतिस्पर्धा में शामिल भी हो सकता था। परंतु वन विभाग के भ्रष्ट आर्थिक अपराध की मानसिकता से पीडि़त अधिकारियों ने अपना मकडज़ाल ऐसा विछाया है कि संजीवनी स्वयं पीडि़त हो गई है। इस संस्थान को स्वयं उपचार की आवश्यकता है।
ये भ्रष्ट अधिकारी अपने दलाल रूपी वैद्यों और डॉक्टरों के माध्यम से जड़ी बूटियों वाली औषधियों के नाम पर कुछ भी घास फंूस दे रहे हैं, तथा पंचकर्म के नाम पर सरसों जैसे तेल को बार-बार उपयोगी बनाकर 1500 रूपए किलो तक मरीजों को बेच रहे हैं, अब यह तो कोई सामान्य आदमी भी जानता है कि एक बार किसी मरीज के ऊपर उपयोग किया हुआ तेल किसी दूसरे मरीज को नहीं दिया जा सकता। मगर यहां धन के भुखेरे भ्रष्ट अधिकारी धन पिपासा की पीड़ा से बाहर नहीं आ पा रहे हैं। ऐसे में यह अंतरराष्ट्र्रीय हर्बल मेला देश-विदेश से आने वाले मरीजों को क्या उपचार देगा इन अधिकारियों के कौन-कौन वैद्य होंगे उनकी क्या योग्यता होगी, क्या अनुभव होगा यह सब अंधकार में है।
ज्ञात हो कि इस संजीवनी संस्थान के कर्ताधर्ता श्री अनिमेष शुक्ला प्रबंध संचालक म.प्र. राज्य लघु वनोपज सहकारी संघ एवं श्री ए.पी. सिंह वन संरक्षक सामान्य जिला भोपाल की भ्रष्ट पालतू टीम एसडीओ जैन, प्रबंधक उपाध्याय, डॉ विजय सिंह, और इनका वैद्य कम चपरासीरूपी वैद्य खन्नूलाल बासरे जैसो की ही टीम को इस मेले के आयोजन के लिए व्यवस्था में लगाया गया है। हालांकि ऐसा नहीं है कि इस काले धंधे की जानकारी वन मंत्री श्री शेजवार को नहीं है अथवा मंत्रालय में प्रमुख सचिव को नहीं है बल्कि यह सब इस संबंध में अच्छी तरह बाकिफ हैं और यह कहना भी अतिशंयोक्ति नहीं होगा कि पूरे विभाग में भांग घुली है, अब यहां आवश्यकता इसी बात की है यहां आने वाले मरीज अपनी जिम्मेदारी पर ही औषधी खरीदें मेले में मौजूद स्वयं पहचाने यह वैद्य हैं अथवा भ्रष्ट मण्डली के पेट पालू चुगलखोर हैं।
लेखक पंडित एस.के भारद्वाज से संपर्क skbnews@gmail.com के जरिए किया जा सकता है.
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